सुशासन की सबसे बड़ी प्रेरणा

| Published on:

भारत रत्न श्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिवस ( 25दिसंबर) पर विशेष

|वेंकैया नायडू|

चौराहे पर लुटता चीर/प्यादे से पिट गया वजीर/चलूं आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति सजाऊं/राह कौन सी जाऊं मैं/सपना जन्मा और मर गया/मधु ऋतु में ही बाग झर गया/तिनके टूटे हुए बटोरूं या नवसृष्टि सजाऊं मैं/राह कौन सी जाऊं मैं? यह कुछ विचार हैं जिसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी कविता ‘राह कौन सी जाऊं मैं’ में व्यक्त किए हैं। जब कोई व्यक्ति जनता के पास पहुंचने के लिए कठिन रास्ते को चुनता है तो उसे कई तरह की रुकावटों, उथल-पुथल और तूफान का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए। कभी न कभी प्रत्येक व्यक्ति इस दुविधा में पड़ सकता है कि क्या सभी बाधाओं का सामना करते हुए आगे बढ़ा जाए या पीछे लौट चला जाए। जिसके पास साहस नहीं होता वह पहली बाधा के सामने आते ही लौटना पसंद करेगा, लेकिन मजबूत इच्छाशक्ति वाला नेता प्रत्येक बाधाओं को पार करते हुए आगे बढ़ना चाहेगा और अंततोगत्वा अपना निर्धारित लक्ष्य हासिल कर लेगा। अटल बिहारी वाजपेयी इसी तरह के एक विजयी नेता हैं और इससे उन्हें देशवासियों के हृदय में अमिट जगह मिली। अटलजी के लिए प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचने का रास्ता आसान नहीं था। एक साधारण स्कूल शिक्षक के पुत्र वाजपेयी ने अपना कॅरियर पत्रकार के रूप में शुरू किया। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और गिरफ्तार हुए। आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी सरकार ने उन्हेंं गिरफ्तार किया और उन्हें उथल-पुथल भरे समय से गुजरना पड़ा। इसके बावजूद वह जनता के विकास के प्रति अपनी प्रतिबद्धता से नहीं डिगे।

1957 से 2009 तक वाजपेयी दस बार संसद के लिए चुने गए। जनता पार्टी सरकार में विदेश मंत्री के रूप में उन्होंने भारत की विदेश नीति पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। कड़े संघर्ष और चुनौतियों के बाद वह प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचे। प्रधानमंत्री बनने के बाद भी उन्हें हर कदम पर कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। अपने शासनकाल में वाजपेयी ने तुच्छ राजनीतिक हितों को साधने के बजाय देश के विकास के लिए कार्यक्रमों पर अमल को प्राथमिकता दी। कम ही समय में उन्होंने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जिससे जनता को लंबी अवधि तक लाभ मिला। उन्होंने विश्व को दिखाया कि कैसे एक देश दशकों के कुशासन के बाद एक कुशल नेता के नेतृत्व में नई दिशा और नया आयाम प्राप्त करेगा। उनके शासनकाल पर दृष्टि डालने पर समझ में आएगा कि वाजपेयी ने कैसे देश की प्रगति के लिए कई महत्वपूर्ण फैसले लिए। कोई भी व्यक्ति उनके इस योगदान को कैसे भूल सकता है कि उन्होंने देश के बड़े शहरों को चौड़े राष्ट्रीय राजमार्गों तथा गांवों को सड़कों से जोड़ने का जो निर्णय लिया उससे लाखों लोगों को बिना किसी बाधा के शहरी क्षेत्रों तक पहुंचने में मदद मिली। वाजपेयी सरकार द्वारा शुरू की गई स्वर्णिम चतुर्भुज राजमार्ग और ग्रामीण सड़क योजना नि:संदेह देश के विकास के इतिहास में मील का पत्थर है।

वाजपेयी ने पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव द्वारा शुरू किए गए आर्थिक सुधारों को और जोर-शोर से आगे बढ़ाया। वाजपेयी ने हमेशा अपना ध्यान आम जनता के कल्याण पर केंद्रित रखा। वाजपेयी सरकार ने लाखों निरक्षरों को साक्षर बनाने के लिए सर्व शिक्षा अभियान शुरू किया। प्रधानमंत्री बनने के बाद छोटी सी अवधि में ही वाजपेयी ने पोखरण में परमाणु परीक्षण कर विश्व को भारत की परमाणु शक्ति का परिचय दिया। हालांकि अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा ने कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगाकर भारत को अपने रास्ते से हटाने की कोशिश की, लेकिन प्रगति के रास्ते पर भारत को आगे बढ़ते देखकर वे प्रतिबंध हटाने पर विवश हो गए। उन्होंने जहां चीन के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत करने के लिए मित्रता का हाथ बढ़ाया, वहीं द्विपक्षीय वार्ताओं के जरिये उसके साथ सीमा विवाद के समाधान की भी कोशिश की। वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने से पहले अमेरिका के साथ हमारे संबंध मजबूत नहीं थे, लेकिन वाजपेयी के शासनकाल में इसमें गुणात्मक परिवर्तन आया। पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई छेड़ते हुए भी वाजपेयी ने लाहौर की बस यात्रा शुरू कर पड़ोसी देश के साथ मित्रता का हाथ बढ़ाया। लेकिन जब पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो कारगिल में उसे धूल भी चटा दी। यह उनका दृढ़ विश्वास था कि तेज विकास तभी संभव है जब उपमहाद्वीप में शांति हो। कवि होने के कारण उनके व्याख्यानों में कविता सहज रूप में प्रवाहित हुई। उनकी काव्यमय भाषा, अभिव्यक्ति और शैली आम आदमी तक को आकर्षित करती है।

सुशासन की अवधारणा का उद्भव कहीं और से नहीं है, बल्कि अटल बिहारी वाजपेयी ही इसके जनक हैं। न्यूयॉर्क में 7 सितंबर 2000 में एशिया सोसायटी को संबोधित करते हुए वाजपेयी ने कहा था कि हमारा विश्वास है कि व्यक्ति विशेष के सशक्तिकरण का अर्थ राष्ट्र का सशक्तिकरण है और यह तीव्र आर्थिक विकास और तीव्र सामाजिक परिवर्तन से आएगा। 25 दिसंबर यानी उनके जन्म दिवस को केंद्र सरकार ने सुशासन दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है। वाजपेयी की ही तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने कॅरियर की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता के रूप में की। यह भारतीय लोकतंत्र की ताकत है कि दोनों ही देश के प्रधानमंत्री बने। मोदी ने वाजपेयी की विरासत को आगे बढ़ाने का काम किया है और सुशासन के उनके सपने को पूरा किया है। आखिर सुशासन है क्या? सुशासन की अवधारणा के केंद्र में लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने की सरकारों की जिम्मेदारी है। देश के विकास की रूपरेखा को तय करने में समाज के सबसे कमजोर और असुरक्षित वर्गों की समान भागीदारी होनी चाहिए। इसका संबंध पारदर्शिता, क्षमता और उत्तरदायित्व से है। सुशासन के एक अंग के रूप में प्रधानमंत्री मोदी ने भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए ठोस पहल की है। इसमें कोई शक नहीं है कि मोदी वाजपेयी द्वारा जलाई गई सुशासन की मशाल को और आगे तक ले गए हैं।

(लेखक केंद्रीय सूचना-प्रसारण तथा शहरी विकास मंत्री हैं )