स्वामी विवेकानंद की राष्ट्र-निर्माण संबंधी संकल्पना एवं उसका मार्ग

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तरुण चुघ

दि आप सहज ही किसी भी छात्र, विद्वान या बुद्धिजीवी से पूछें कि भारतीय जीवन शैली, दर्शन और अध्यात्मवाद का प्रतीक एक अकेला भारतीय व्यक्तित्व कौन है? तो उत्तर होगा, स्वामी विवेकानंद। स्वामी विवेकानंद के विचारों ने न केवल भारत में बल्कि दुनिया भर में लाखों युवाओं को प्रभावित किया है। एक सच्चे कर्मयोगी के रूप में स्वामी विवेकानंद से अधिक किसी अन्य व्यक्ति ने पश्चिमी दुनिया को भारतीय दर्शन से प्रभावित नहीं किया है। वर्ष 1893 के उनके प्रसिद्ध शिकागो (अमेरिका) भाषण ने पश्चिमी दुनिया को भारतीय जीवन और जीवन शैली की ओर उन्मुख किया। यह भारत के लिए एक महान क्षण था, क्योंकि इसने वेदांत-दर्शन में पश्चिम की स्थायी रुचि को जगाया और पुनर्जीवित किया।
स्वामी विवेकानंद का नव-वैदांतिक दर्शन इस प्रश्न से शुरू होता है कि ‘मानव-जीवन का उद्देश्य क्या है?’ जहां वह बताते हैं कि जीवन का उद्देश्य है- एक सार्थक, नि:स्वार्थ और सेवा-भाव रखने वाला जीवन। उनका विचार है कि जीवन केवल एक अस्तित्व नहीं है, बल्कि एक ऐसा जीवन है जिसमें दूसरों की मदद करने और उनकी सेवा करने का दृढ़ संकल्प हो। उनके अनुसार, एक सफल जीवन तब तक सार्थक नहीं है, जब तक उसमें दूसरों के लिए सेवा भाव न हो। स्वामी जी के अनुसार, मनुष्य भीतर से तभी विकसित हो सकता है, जब वह बाहर दूसरों को विकसित करे। जीवन ऐसा नहीं होना चाहिए जो एकांत और सक्रिय जीवन से दूर हो। बल्कि उनका दर्शन एक ऐसे कर्मयोगी का है, जो नि:स्वार्थ कर्म से मानवता की सेवा में सक्रिय हो।
स्वामी विवेकानंद का राष्ट्र-निर्माण का मार्ग व्यक्ति-निर्माण से शुरू होता है। उनके अनुसार, राष्ट्रीय चरित्र और कुछ नहीं बल्कि उसके नागरिकों का चरित्र है। अत: राष्ट्र निर्माण का कार्य अपने नागरिकों के व्यक्तित्व-विकास और चरित्र-निर्माण से प्रारंभ होता है। उनके अनुसार, राष्ट्र को महान बनाने के लिए हमें राष्ट्र को महान बनाने वाले नागरिकों को महान बनाना होगा। इसके लिए चरित्र निर्माण जरूरी है। उनके अनुसार, चरित्र में 4 पहलू होते हैं, जो शारीरिक, मानसिक-भावनात्मक, सामाजिक-राष्ट्रीय और आध्यात्मिक हैं।
शारीरिक शक्ति, जिसमें देशवासियों की फिटनेस और स्वास्थ्य शामिल है, को उन्होंने उस आधार के रूप में बताया है, जिस पर मानव-व्यक्तित्व की इमारत टिकी हुई है। उन्होंने कहा, “गीता के अध्ययन की तुलना में आप फुटबॉल के माध्यम से स्वर्ग के अधिक निकट होंगे।”
स्वामी जी के फिटनेस और स्वास्थ्य संबंधी उपरोक्त दर्शन से प्रेरित प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू किए गए फिट इंडिया मूवमेंट का उद्देश्य नागरिकों और युवाओं को अपने दैनिक जीवन में शारीरिक गतिविधियों और खेलों को शामिल करके स्वस्थ और फिट रहने के लिए प्रोत्साहित करना है।
उसी तरह योग की प्राचीन भारतीय परंपराओं का अमूल्य उपहार, जो शरीर और मन की एकता का प्रतीक है, से दुनिया को परिचित कराने का काम प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा ‘योग दिवस’ के माध्यम से किया गया। जिसकी शुरुआत वर्ष 2014 में संयुक्त राष्ट्र में इस संबंध में प्रधानमंत्री द्वारा दिए गए प्रेरक भाषण से हुआ।
शारीरिक रूप से स्वस्थ होने के अलावा स्वामी विवेकानंद चाहते थे कि नागरिक बौद्धिक और मानसिक रूप से भी स्वस्थ और रचनात्मक हों। उनके अनुसार, ब्रह्मांड की सभी शक्तियां पहले से ही हमारी हैं। यदि मन तीव्र रूप से उनके प्रति उत्सुक है, तो सब कुछ पूरा किया जा सकता है। बड़े-बड़े पहाड़ों को परमाणुओं में तोड़ दिया जा सकता है। उन्होंने कहा- एक विचार आत्मसात करो, उस विचार को व्यक्त करो, उस विचार के बारे में चिंतन करो और उस विचार के अनुसार जीवन जीएं। इस प्रकार उस विचार को अपने जीवन का हिस्सा बना लें। उस विचार में स्वयं को लीन कर लें। अपने जीवन के प्रत्येक क्षण और प्रत्येक न्यूरॉन को उस विचार पर केंद्रित किया जाना चाहिए। आप कर्मयोगी तभी हो सकते हैं, जब आपका मन उन चुने हुए विचारों के प्रवाह में लीन हो और तभी जीवन की सफलता प्राप्त की जा सकती है।
स्वामी विवेकानंद ने देशवासियों, अधिकारियों और नेताओं के लिए ‘राष्ट्र-सेवा’ को अपने प्रमुख कर्तव्य के रूप में अपनाने का सुझाव दिया। राष्ट्रवाद के पुनरुत्थान के लिए विवेकानंद का ध्यान युवाओं पर केंद्रित था। वह युवाओं को सलाह देते हैं कि जो कुछ भी उन्हें शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से कमजोर बनाता है, उसे जहर के रूप में अस्वीकार कर दें। एक महान राष्ट्र बहादुर एवं साहसी लोगों से बनता है। उनके अनुसार, एक राष्ट्र युवाओं से जो चाहता है, वह है- रक्त में जोश, नसों में ताकत, लोहे जैसी मांसपेशियां और विचारों में नरम। स्वामी जी के अनुसार, यौवन जीवन का सर्वोत्तम समय होता है। जिस तरह से युवा इस अवधि का उपयोग करते हैं, वह उनके आगे आने वाले वर्षों की प्रकृति को तय करता है। उन्होंने कहा, यदि तुम्हे महान कार्य करना है तो किसी भी चीज से मत डरो। जिस क्षण तुम डरोगे, तुम कुछ भी नहीं रहोगे, अस्तित्व विहीन हो जावोगे। भय संसार में दु:ख का सबसे बड़ा कारण है। जो कुछ भी करो, उसमें निडर रहो एवं उस पर विश्वास करो। इस बात में विश्वास मत करो कि तुम कमजोर हो, बल्कि तुम खड़े हो जाओ और अपने भीतर की दिव्यता को व्यक्त करो। इसलिए “उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।”
स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रेरित होकर मोदी सरकार ने “मिशन कर्मयोगी (युवा सिविल सेवकों के लिए), स्किल इंडिया मिशन, मेक इन इंडिया, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ, डिजिटल इंडिया मिशन, स्टार्ट-अप इंडिया और ऐसे कई मिशन शुरू किए। मोदी सरकार द्वारा इन सब क्रियाकलापों के माध्यम से राष्ट्र और मानव जाति की सेवा के उद्देश्य के साथ ही साथ राष्ट्र-निर्माण के लिए युवाओं की क्षमता का उपयोग करना है। संस्कृति के उत्थान के लिए एवं बौद्धिक कौशल सीखने और उसे विकसित करने के लिए स्वामी विवेकानंद ने मूल्य आधारित शिक्षा पर जोर दिया। उनके लिए शिक्षा केवल तथ्य, आंकड़े और जानकारी नहीं है, बल्कि विचार है। शिक्षा जीवन-निर्माण, मानव-निर्माण, चरित्र-निर्माण के विचारों को आत्मसात करने का साधन है। उनके अनुसार, एक राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली होनी चाहिए तथा हमारे देश की संपूर्ण शिक्षा, आध्यात्मिकता और धर्मनिरपेक्षता संबंधी क्रियाकलाप हमारे अपने हाथों में एवं राष्ट्रीय पद्धतियों के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर होनी चाहिए।
‘नई शिक्षा नीति 2020’, वास्तव में स्वामी जी के दर्शन को उन्मुख करती है और मूल्य आधारित शिक्षा इसका लक्ष्य है। जो छात्रों में राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण के अंतर्निहित उद्देश्य के साथ, भारत की समृद्ध संस्कृति और इतिहास के बारे में जागरूक करने वाली है। ‘नई शिक्षा नीति 2020’ मूल्य आधारित शिक्षा के साथ ही व्यावहारिक जीवन के सिद्धांत, समृद्ध पारंपरिक ज्ञान के साथ आधुनिकता को जोड़ने का भी प्रयास है।
आध्यात्मिक-राष्ट्रवाद
आधुनिक भारतीय-राष्ट्रवाद के पिता के रूप में सम्मानित स्वामी विवेकानंद ने ‘आध्यात्मिक-राष्ट्रवाद’ के विचार की व्याख्या की। स्वामी जी के अनुसार, राष्ट्रवाद का जड़ अध्यात्मवाद से ही निकलता है। उनके अनुसार, राष्ट्रीय जागृति के लिए धर्म ही मुख्य मार्ग है। उनके लिए धर्म राष्ट्र की नसों का खून है। उन्होंने कहा, “मैं धन्य हूं कि मैंने ऐसे महान हिंदू धर्म में जन्म लिया जो सभी धर्मों को आत्मसात करता है।’’ स्वामी विवेकानंद का मानना था कि भारत में धर्म स्थिरता और राष्ट्रीय एकता के लिए एक रचनात्मक शक्ति रहा है। उन्होंने आध्यात्मिकता को भारत के विविध धार्मिक पहचानों के बीच उन्हें एक राष्ट्रीय प्रवाह में एकीकृत करने में सक्षम अभिसरण बिंदु के रूप में देखा। उन्होंने भारतीयों को शक्ति और निडरता का विचार दिया। उन्होंने घोषणा की, ‘मेरे धर्म का सार शक्ति है’। उनके लिए पूजा का सबसे अच्छा तरीका था, गरीबों, दलितों, बीमारों और अज्ञानियों में भगवान को देखना और उनकी सेवा करना।
स्वामी जी के अनुसार, राष्ट्रवाद और सार्वभौमिकता शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के दो स्तंभ हैं। लेकिन राष्ट्रवाद संकीर्णता नहीं है और न ही हमारी अपनी सीमाओं तक ही सीमित है। हमारा राष्ट्रवाद सार्वभौमिक शांति के लिए खतरा नहीं है। उन्होंने कहा, “प्रत्येक राष्ट्र के पास अपने को पूर्ण करने के लिए एक नियति होती है, प्रत्येक राष्ट्र के पास देने के लिए एक संदेश होता है तथा प्रत्येक राष्ट्र को अपने आप को पूर्ण करने का एक मिशन होता है। इसलिए हमें अपनी खुद के मिशन को समझना होगा, इसे किस नियति को पूरा करना है, राष्ट्रों की यात्रा में इसे किस स्थान पर पहुंचना है। इसके लिए आपसी सद्भाव में योगदान देना होगा। मोदी सरकार का ‘सबका साथ, सबका विकास’ के बाद ‘एक भारत, श्रेष्ठ भारत’ के विचार का उद्देश्य स्वामी विवेकानंद के राष्ट्रवाद संबंधी आदर्श विचारों के साथ एक आधुनिक और मजबूत भारत बनाना है। उन्होंने आत्मनिर्भर भारत का सुझाव दिया था, जिसकी भौतिक समृद्धि शिक्षा और मानव-पूंजी के माध्यम से प्राप्त की जा सकती है।
स्वामी जी ने महसूस किया था कि भारत की ताकत इसके कृषि में निहित है और किसानों की आय में सुधार के लिए उन्होंने कृषि के व्यावसायीकरण का समर्थन किया था। हाल के कृषि सुधार और कृषि-क्षेत्र पर बजट-2021 का फोकस इस तथ्य की गवाही देता है कि मोदी सरकार का जोर भारत के कृषि क्षेत्र के आधुनिकीकरण पर है ताकि किसानों की आय बढ़ाई जा सके।
भारत तभी एक विश्व-गुरु हो सकता है जब वह आध्यात्मिकता के मार्ग का अनुसरण करे और उसका राष्ट्रवाद ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ के सिद्धांत पर आधारित हो।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री हैं)