पड़ोसी देशों से संबंध सुधार के प्रयास

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डॉ. दिलीप अग्निहोत्री

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दूसरे कार्यकाल की पहली विदेश यात्रा के लिए मालद्वीप और श्री लंका का चयन किया। यह उनकी पड़ोसी देशों से अच्छे संबंध रखने की नीति का ही हिस्सा था। पाकिस्तान इसका अपवाद है। मोदी ने कहा भी है कि पाकिस्तान आतंकवाद से तौबा करेगा, तभी उसके साथ वार्ता हो सकती है। नरेन्द्र मोदी ने अपने शपथ ग्रहण में बिम्सटेक देशों को बुलाया था। आठ देशों के नेता शपथ ग्रहण में शामिल हुए। इन सभी के साथ नरेन्द्र मोदी ने द्विपक्षीय व क्षेत्रीय विषयों पर वार्ता की। इसमें आपसी संबन्ध सुधारने के साथ साथ बिम्सटेक देशों के बीच सहयोग बनाने पर सहमति बनी।

शपथ ग्रहण के फौरन बाद मोदी ने बांग्लादेश, भूटान, नेपाल के शासकों से वार्ता की थी। भारत इन देशों में कई योजनाएं चला रहा है। मोदी ने इसकी भी समीक्षा की। उन्होंने यह भी कहा कि बिम्सटेक के बीच सहयोग बढ़ाने की व्यापक संभावना है। इस संगठन में पाकिस्तान शामिल नहीं है। ऐसे में आपसी संबंधों के बीच आतंकवाद की बाधा नहीं है। पाकिस्तान की आतंकी गतिविधियों की वजह से ही सार्क निष्फल हुआ था। इसीलिए नरेन्द्र मोदी ने उसमें समय लगाना व्यर्थ समझ लिया था। इसके बाद उन्होंने बिम्सटेक के साथ सहयोग बढ़ाने का निर्णय लिया था। मोदी ने श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना, मॉरिशस के प्रधानमंत्री प्रविंद कुमार, बांग्लादेश के राष्ट्रपति मोहम्मद अब्दुल हामिद, नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली और भूटान के प्रधानमंत्री लोटे शेरिंग से वार्ता की थी। इसके अलावा किर्गिस्तान के राष्ट्रपति सोरोनबाय जेनेबकोव से भी मुलाकात हुई। इस समय किर्गिस्तान शंघाई कॉरपोरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) का अध्यक्ष है। मध्य एशिया में भारत का प्रमुख सहयोगी है। राष्ट्रपति ने जेनेबकोव एससीओ सम्मेलन में शामिल होने के लिए मोदी को आमंत्रित किया है। 1997 में बैंकाक में बंगाल की खाड़ी से जुड़े देशों ने बांग्लादेश, इंडिया, श्रीलंका ऐंड थाइलैंड इकनॉमिक कोऑपरेशन अर्थात बीसटेक का गठन किया था। कुछ महीने बाद म्यांमार भी इसमें शामिल हो गया। 2004 में नेपाल और भूटान इसके पूर्ण सदस्य बन गए। इसके बाद इसका नाम बिम्सटेक हो गया।

मालद्वीव बिम्सटेक का सदस्य नहीं है। यही कारण है कि नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण में उसको आमंत्रित नहीं किया गया था। मोदी ने स्वयं मालद्वीप जाकर दोस्ती का पैगाम दिया है। यहां भी नरेन्द्र मोदी ने आतंकवाद की समस्या को प्रमुखता से उठाया। उनका स्पष्ट मानना है कि आतंकवाद आपसी सहयोग को आगे बढ़ाने और मुक्त व्यापार की राह में सबसे बड़ा बाधक है। इसलिए इसके मुकाबले की साझा रणनीति बनानी होगी। मालद्वीप चीन की कुटिल हस्तक्षेप नीति को भी समझ चुका है। वह भारत से सहयोग बढ़ाने को उत्सुक है। इसलिए भी मोदी ने मालद्वीप जाने का निर्णय लिया था। उन्होंने कहा कि आतंकवादियों को धन और हथियारों की आपूर्ति एक देश से ही होती है। मोदी का स्पष्ट इशारा पाकिस्तान की तरफ था।

ऐसे मुल्क पर अन्तरराष्ट्रीय दबाव होना चाहिए। आतंकवाद का प्रत्येक रूप खराब होता है। इसी से विश्व को निपटना है। नरेन्द्र मोदी के भाषण को मालद्वीव की संसद में गर्मजोशी के साथ सुना गया। उन्होंने कहा कि मालदीव में आजादी, लोकतंत्र, खुशहाली और शांति के समर्थन में भारत उसका सहयोगी रहेगा। मालदीव के साथ कई प्रमुख बातों पर सहमति भी कायम हुई है। वहां के राष्ट्रपति के साथ मोदी की वार्ता उपयोगी रही। दोनों देशों के बीच जल परिवहन पर भी सहमति बनी है।

पर्यावरण के बिगड़ने का प्रतिकूल प्रभाव मालदीव पर पड़ रहा है। नरेन्द्र मोदी ने इस पर चिंता व्यक्त की। कहा कि भारत उसके संकट को दूर करने में पूरा सहयोग करेगा। देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार बढ़ाने पर भी सहमति बनी है। मोदी ने कहा कि इंडो पैसिफिक क्षेत्र हमारी जीवन रेखा है। यह व्यापार का हाईवे भी है। इसमें खुलापन और संतुलन स्थापित करने के प्रयास किये जाएंगे। नरेन्द्र मोदी को मालदीव ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान निशान इज्जुद्दीन से विभूषित किया। इसे उन्होंने केवल अपने ही नहीं पूरे भारत का गौरव बताया।

वह राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के निमंत्रण पर मालद्वीप गए थे। यह यात्रा भारत और मालदीव के बीच उच्च स्तरीय आदान प्रदान में नई गति को दर्शाती है। प्रधानमंत्री मोदी की मालदीव यात्रा के दौरान दोनों देशों को द्विपक्षीय संबंधों में हाल के समय में हुई प्रगति की समीक्षा करने का अवसर मिलेगा। नरेन्द्र मोदी की मालद्वीप के राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह से सहयोग के अनेक विषयों पर वार्ता हुई। यह यात्रा भारत और मालदीव के रिश्तों को मजबूत बनाने वाली साबित हुई। इस यात्रा से दोनों देशों को द्विपक्षीय संबंधों में हाल के समय में हुई प्रगति की समीक्षा करने का अवसर मिला।

इसी प्रकार नरेन्द्र मोदी की श्रीलंका यात्रा भी बहुत उपयोगी रही। श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना के साथ वार्ता में अनेक विषयों पर सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी। मालदीव और श्रीलंका की प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा पड़ोस प्रथम नीति और सागर सिद्धांत के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है। सागर सिद्धांत का मतलब क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा एवं विकास है। यह सागर के माध्यम से आर्थिक समृद्धि प्राप्त करने के भारत की भरतीय रणनीति का हिस्सा है। कोलंबो में नरेन्द्र मोदी ने भारतीय समुदाय के लोगों को संबोधित किया। उन्होंने विश्व में भारत की छवि बदलने का श्रेय दुनिया के अलग-अलग कोने में रहने वाले भारतीयों को दिया। अब भारत को देखने का दुनिया का नजरिया बदला है। भारत में लोकतंत्र लोगों के संस्कारों में है। भारत का गौरव बढ़ाने में विश्व में फैले हुए भारतीयों ने बड़ी भूमिका निभाई है।

मोदी की विदेश यात्रा में औपचारिक समझौते भी हुए। भारत और मालदीव के बीच एमओयू का आदान प्रदान किया गया। जलमार्ग क्षेत्र में सहयोग, स्वास्थ्य सेवा, समुद्र द्वारा यात्री कार्गो सेवा की स्थापना के लिए दोनों देशों के बीच एमओयू हुआ। इसके साथ ही मालदीव में सिविल सेवक के लिए सीमा शुल्क क्षमता निर्माण, प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण में सहयोग और व्हाइट शिपिंग जानकारी साझा करने के लिए दोनों देशों के बीच समझौता किया गया। मोदी मालदीव में रूपे कार्ड जारी करने से मालदीव में भारतीय पर्यटकों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी। भारत इस दिशा में प्रयास करेगा। इसके अलावा रक्षा सेवाओं को मजबूत बनाने और कोच्चि से मालदीव तक नौकासेवा शुरू करने पर भी सहमति बनी। जाहिर है कि मोदी की विदेश यात्रा में कई उपलब्धि शामिल हुई है।

(हि.स.) (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)