नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (सीएए), 2019 : महत्वपूर्ण बिन्दु

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नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 की जरूरत ही नहीं पड़ती, अगर देश का धार्मिक आधार पर बंटवारा न हुआ होता। कांग्रेस की नीतियों के कारण ही देश का धर्म के आधार पर बंटवारा हुआ। 1950 में हुए नेहरू-लियाकत समझौते में दोनों संप्रभु राष्ट्रों (भारत और पाकिस्तान) ने यह वादा किया कि वे अपने-अपने देश के अल्पसंख्यकों की रक्षा करेंगे। आजादी के बाद भारत में अल्पसंख्यकों की बढ़ी हुई जनसंख्या इस बात का प्रमाण है कि भारत अपने वादे पर खरा उतरा, लेकिन मजहबी राष्ट्र पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों की घटती आबादी यह बताती है कि ये राष्ट्र अपने वादे में असफल रहे।

पाकिस्तान द्वारा इस समझौते के उल्लंघन की बात भारतीय संसद में बार-बार उठायी गयी। 1966 में जन संघ के सांसद निरंजन वर्मा ने समझौते की स्थिति की जानकारी मांगी, तो तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्ण सिंह ने जबाव में कहा कि पाकिस्तान लगातार अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित कर रहा है। 1970 में तत्कालीन विदेश मंत्री दिनेश सिंह ने भी इस समझौते पर सरकार को असहाय बताया और कहा कि 20 साल बाद भी शरणार्थी पाकिस्तान से भारत आ रहे हैं, क्योंकि पाकिस्तान उनकी सुरक्षा का वादा पूरा नहीं कर रहा है। आज भी पाकिस्तान में यही स्थिति है। नागरिकता संशोधन अधिनियम की आवश्यकता क्यों पड़ी, इन बातों से ही स्पष्ट हो जाता है।

महत्वपूर्ण प्रश्न

1़ नागरिकता संशोधन कानून (CAA) क्या है?

नागरिकता संशोधन कानून की सहायता से पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के कारण वहां से विस्थापित हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। अब पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई धर्म के वे लोग जिन्होंने 31 दिसंबर 2014 की निर्णायक तारीख तक भारत में प्रवेश कर लिया है, वे सभी भारत की नागरिकता के पात्र होंगे।

2़ मुसलमानों को इससे बाहर क्यों रखा गया है?

पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश संवैधानिक मुस्लिम देश हैं। वहां धर्म के नाम पर मुस्लिम उत्पीड़ित नहीं होते, इसलिए उन्हें इस एक्ट में शामिल नहीं किया गया है। स्मरण रहे कि इस अधिनियम में उत्पीड़ित समुदायों के विशिष्ट वर्ग को लाभ दिया गया है, किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया गया है।

3़ क्या पूर्वोत्तर के राज्यों में यह लागू होगा?

नागरिकता संशोधन अधिनियम के प्रावधान, संविधान की 6वीं अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे। इनर लाइन परमिट के तहत विनियमित क्षेत्रों को भी इससे छूट दी गई है। मणिपुर को भी ILP के दायरे में लाया गया है।

4़ नागरिकता कानून, 1955 के अनुसार अवैध प्रवासी कौन हैं?

वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेजों के बिना भारत में प्रवेश करने वाले लोग, घुसपैठिये या वैध दस्तावेजों के साथ प्रवेश करने वाले वे लोग जो स्वीकृत अवधि के बाद भी वापस नहीं गए हैं, वे सभी अवैध प्रवासी हैं, घुसपैठिये हैं।

5़ इसके खिलाफ प्रदर्शन क्यों हो रहा है?

वोटबैंक की राजनीति करने के लिए विपक्ष भ्रम फैला रहा है। मुसलमानों में यह दुष्प्रचार किया जा रहा है कि यह मुसलमानों से देश की नागरिकता छीन लेने का कानून है। यह झूठ प्रचारित किया जा रहा है कि इस कानून से भारत के मुस्लिमों को घुसपैठिया बताया जायेगा। यह भ्रामक कुप्रचार किया जा रहा है कि इस कानून से NRC बनाया जायेगा। हताश विपक्ष मुसलमानों में भय व्याप्त कर कुत्सित राजनीति कर रहा है।

कांग्रेस का देश के साथ धोखा

इस ऐतिहासिक समय में कांग्रेस भारत विभाजन की अपनी ऐतिहासिक गलतियों पर प्रायश्चित करने से एक बार पुनः चूक गई। इस कानून का विरोध करके कांग्रेस ने एक बार पुनः सिद्ध कर दिया कि उसका गांधी जी के वचन, भावना और उनके दर्शन से अब कोई संबंध नहीं है। नेहरू-लियाकत समझौते के अंतर्गत जो भावना निहित रही है, उसी भावना का सम्मान नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 में किया गया है। यह भारत सरकार की धार्मिक कारणों से पीड़ित विस्थापितों को सुरक्षा देने की सुस्थापित नीति का अनुकरण है। किंतु यह कांग्रेस की दुर्भाग्यपूर्ण राजनीति है जो गांधी नेहरू के द्वारा स्थापित नीति का विरोध करके मानवाधिकारों को कुचलने का काम कर रही है। इसी को विनाश काले विपरीत बुद्धि कहा जाता है।

पूर्वोत्तर राज्यों के हित सुरक्षित

जो पूर्वोत्तर के राज्य हैं, उनके अधिकारों, भाषा, संस्कृति, सामाजिक पहचान को सुरक्षित करने के लिए, उनको संरक्षित करने के लिए भी इसमें पर्याप्त प्रावधान हैं। जनजातीय इलाकों पर यह बिल लागू नहीं होगा। पूर्वोत्तर के सभी राज्यों में जो सुरक्षा दी गई है। उसी को आगे बढ़ाते हुए, छठे भाग (6th Schedule) में असम, मेघालय, त्रिपुरा और अब मणिपुर को भी नोटिफाई किया जा चुका है।

विपक्ष: क्षुद्र स्वार्थों की राजनीति

विपक्ष समाज में भ्रम फैलाकर क्षुद्र स्वार्थों की राजनीति कर रहा है। उसका यह कहना है कि सरकार को यह अधिनियम बनाने का संवैधानिक अधिकार नहीं है। नागरिकता का मुद्दा संविधान के भाग II में अनुच्छेद 11 पर निर्भर था, जो संसद को भारतीय नागरिकता के लिए एक विस्तृत रुपरेखा तैयार करने का विशेषाधिकार देता है। इसके कारण नागरिकता अधिनियम, 1955 अस्तित्व में आया। इसीलिए, यह कहना गलत है कि संसद को नागरिकता के मानदंडों में बदलाव लाने का कोई अधिकार नहीं है, यह तर्क संविधान निर्माताओं के इरादों के विपरीत है। सच्चाई यह है कि संविधान सभा ने कभी भी नागरिकता के मानदंडों को अंतिम रूप नहीं दिया, बल्कि संविधान ने संसद को भारतीय नागरिकता के मानदंड को निर्धारित कर उसे अंतिम रूप देने का अधिकार दिया है।

कुछ प्रमुख वक्तव्य

इसमें कोई संदेह नहीं है कि जो विस्थापित भारत में रहने के लिए आए हैं, उन्हें नागरिकता मिलना ही है। यदि इस संबंध में कानून अपर्याप्त हो तो कानून को परिवर्तित किया जाना चाहिए।

जवाहर लाल नेहरू, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री
— (5 नवंबर, 1950 को संसद में दिया गया वक्तव्य)

जिन हालात के कारण मुझे इस्तीफा देना पड़ा वे मूलत: पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ बर्ताव से जुड़े हैं। बंगाल समस्या कोई प्रादेशिक नहीं है। यह अखिल भारतीय स्तर का मुद्दा है और इसके उचित समाधान पर ही शांति एवं संपन्नता टिकी है। पूरे देश की आर्थिक एवं राजनीतिक शांति व संपन्नता टिकी है।
श्यामा प्रसाद मुकर्जी
भारत के प्रथम अंतरिम मंत्रिमंडल में पूर्व मंत्री के रूप में
—(उद्योग और आपूर्ति मंत्री पद से इस्तीफा देने पर संबोधन,
19 अप्रैल, 1950)

जहां तक हमारे देश के विभाजन के बाद शरणार्थियों के प्रति व्यवहार का संबंध है, बांग्लादेश जैसे देशों में अल्पसंख्यकों ने उत्पीड़न सहा है और यह हमारा नैतिक दायित्व है कि यदि ये अभागे लोग हमारे देश में शरण मांगते हैं, इनको नागरिकता देने में हमारा रवैया उदार होना चाहिए।

— डॉ. मनमोहन सिंह, राज्य सभा में 18 दिसंबर, 2003

माकपा नेता प्रकाश करात ने बंगाली शरणार्थियों के नागरिकता के मुद्दे पर डॉ. मनमोहन सिंह को 22 मई, 2012 को पत्र लिखा और कहा– …अल्पसंख्यक बांग्लादेश जैसे देशों में उत्पीड़न का शिकार हुए हैं। यह शरणार्थी हमारे देश में शरण लेने के लिए बाध्य हैं। यह हमारा नैतिक दायित्व है कि इन दुर्भाग्यपूर्ण लोगों को नागरिकता देने में हमें उदार रहना चाहिए।

तरुण गोगोई, असम के मुख्यमंत्री के रूप में 20 अप्रैल, 2012 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ज्ञापन सौंपकर अनुरोध किया कि पड़ोसी देश के अल्पसंख्यक शरणार्थी भेदभाव और धार्मिक प्रताड़ना से बंटवारे के समय भारत आए हैं, उनके साथ विदेशियों की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए।

तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी ने 2005 में संसद के वेल में आकर विरोध करते हुए कहा था कि बंगाल में बांग्लादेशी घुसपैठ विनाशकारी हो चुका है।