पश्चिम बंगाल में विभाजन और झूठ की राजनीति से मुकाबला

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डॉ. अनिर्बान गांगुली

क अक्टूबर को अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद पहली बार कोलकाता में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) और एनआरसी पर एक सार्वजनिक बैठक को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा कि डॉ. मुखर्जी ने भारत की एकता को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। वह एक प्रेरणादायक क्षण था जब श्री शाह ने यहां मौजूद लोगों को डॉ. मुखर्जी की स्मृति में खड़े होने और भारत की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए अपने अंतिम संघर्ष के लिए कश्मीर को चुनने वाले श्री मुखर्जी को श्रद्धांजलि देने का आह्वान किया। यह एक भावनात्मक क्षण था, जब भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने डॉ. मुकर्जी को उनके ही शहर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद श्रद्धांजलि अर्पित की। यह वह क्षण था, जिसका सपना डॉ. मुखर्जी ने हमेशा देखा और इसके साथ जुड़ने की उम्मीद की। यह बंगाल और बंगालवासियों के लिए आनन्दित करने वाला और सच्चा क्षण था।

श्री शाह ने पश्चिम बंगाल के लोगों का भी आभार व्यक्त किया, जिनका समर्थन पार्टी को चुनाव में मिला। उन्होंने कहा कि यह बंगाल के लोगों का समर्थन ही है जिसने पार्टी को 300 का आंकड़ा पार करने में सक्षम बनाया। बंगाल में जारी राजनीतिक हिंसा और प्रतिशोध के बावजूद पार्टी का आधार बढ़ने के लिए श्री शाह ने अपने कार्यकर्ताओं के बलिदान को याद करते हुए कहा कि इन कार्यकर्ताओं के संघर्ष का ही नतीजा है कि पार्टी आज राज्य में इस ऊंचे मकाम पर जा पहुंची है। वास्तव में परिवर्तन की तेज लहर, राज्य में बिगड़ती स्थिति और पलायन ने लोगों को बदलाव के लिए वोट करने के लिए प्रेरित किया, लोगों ने न्यू इंडिया के कथन को आत्मसात किया है।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने यह भी बताया कि कैसे आजादी के बाद के दशकों में पश्चिम बंगाल राज्य के विकास में एक बहु-आयामी गिरावट को देखी गई है। कम्युनिस्ट शासन और अब तृणमूल कांग्रेस के शासन ने राज्य के आर्थिक और औद्योगिक विकास को भारी नुकसान पहुंचाया है, लोगों के लिए अवसर कम हुए है और कुल मिलाकर राज्य की स्थिति बेहद चिंताजनक बनी हुई है। इस परिस्थिति को तभी उलटा सकता है जब राज्य में विकासपरक भाजपा की सरकार बनेगी। तथ्यों और आंकड़ों के साथ श्री शाह ने जो दृष्टिकोण रखा, वह स्पष्ट रूप से उस ओर इशारा करता है जिस वास्तविक संकट का सामना आज पश्चिम बंगाल कर रहा है, यह एक ऐसी परिस्थिति है जिसको लेकर अब तक की सरकारें उदासीन ही रही हैं। वास्तव में इन सरकारों ने राज्य की स्थिति को केवल बद से बदतर ही किया है।

सत्तारूढ़ टीएमसी ने अपनी विभाजनकारी राजनीति के साथ अक्सर भाजपा को बाहरी लोगों की पार्टी के रूप में परिभाषित किया है। ऐसा करते वक्त यह लोग इस बात को भूल जाते है कि भाजपा की पूर्ववर्ती पार्टी जनसंघ के संस्थापक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अपने समय के सबसे बड़े बंगाली राष्ट्रीय नेताओं में से एक थे, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि ममता बनर्जी अभी भी अपने तर्कों में भाजपा को बाहरी लोगों की पार्टी के रूप में स्थापित करना चाहती है। वह नहीं जानती हैं कि आचार्य देवप्रसाद घोष, जो कि अपने समय की एक लोकप्रिय शख्सियत, शिक्षाविद् और बुद्धिजीवी थे, वह जनसंघ के सबसे लंबे समय तक सेवारत अध्यक्ष रहे। ममता बनर्जी यह भी भूल गई हैं कि लगभग दो दशक पहले भाजपा ने पश्चिम बंगाल से दो नेताओं को केंद्रीय मंत्रिमंडल में स्थान दिया था- सत्यव्रत मुखर्जी और तपन सिकदर, जिन्होंने राज्य की राजनीति में अपनी छाप छोड़ी और राज्य में पार्टी के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। ममता बनर्जी निश्चित रूप से इस बात को याद नहीं रखना चाहेंगी कि यह स्वयं भाजपा के नेतृत्व वाले अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल का हिस्सा रही, जो सरकार उन दिनों कम्युनिस्टों के खिलाफ लगातार ममता बनर्जी के समर्थन में खड़ी थी और जिस सरकार ने कम्युनिस्टों द्वारा उसके राजनीतिक पतन की साजिश को नाकाम करने में उनका साथ दिया।

श्री अमित शाह ने इन सभी तथ्यों को पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ पार्टी को याद दिलाया। उन्होंने जो मार्मिक प्रश्न पूछा, वह यह था कि ‘क्या वह श्यामा प्रसाद मुखर्जी नहीं थे, जिन्होंने बंगाल को बचाया और जिन्ना के पाकिस्तान में जाने से रोका?’ यह एक ऐसा सवाल है जिसे बंगाली मानस तक पहुंचना बेहद जरूरी है और यह एक ऐसा सवाल भी है जिसका जवाब पश्चिम बंगाल में भाजपा के विरोधियों के पास भी नहीं हैं। क्या श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने बंगाल के एक हिस्से को नुकसान पहुंचाने से नहीं बचाया, तो अब अगर ऐसा नहीं होता तो उनकी आलोचना करने वाले, या अतीत में उनकी विरासत को हाशिए पर रखने वालों को अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाए रखने में खासी परेशानी होती। जिन्ना का पाकिस्तान निश्चित रूप से उनके अस्तित्व के लिए एक कठोर स्थान होता। इसलिए, तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी द्वारा बार-बार कहा गया कि भाजपा एक बाहरी लोगों की पार्टी है, जो एक फर्जी तर्क है और इसे यदि इतिहास की पृष्ठभूमि में देखा जाए तो यह कहीं नहीं टिकता है।

लेकिन श्री शाह के संबोधन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा एनआरसी मुद्दे पर फैलाएं जा रहे दुष्प्रचार पर स्पष्टीकरण रहा। पिछले एक महीने से टीएमसी और पश्चिम बंगाल में वामपंथी दलों के लुप्तप्राय बुद्धिजीवियों और नेताओं ने एनआरसी के मुद्दे पर एक गलत प्रचार अभियान चलाया हुआ है। ऐसा जानबूझकर किया जा रहा है, जिससे राज्य में आम मतदाता, विशेष तौर पर राजनीतिक और धार्मिक शोषण के कारण पलायन करने वाले बंगाली हिंदू शरणार्थियों के बीच दहशत, भ्रम और भय का माहौल फैलाया जा सके। श्री शाह ने अपनी बात को स्पष्ट शब्दों में बयान करते हुए कहा है कि मोदी सरकार इस बात को लेकर स्पष्ट है कि राज्य में पहले नागरिकता संशोधन विधेयक पारित किया जाएगा और फिर एनआरसी को लागू किया जाएगा। उन्होंने इस बात का स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि कोई भी शरणार्थी – हिंदू, सिख, बौद्ध, ईसाई, जैन जो भारत के पड़ोसी देशों से आए हैं, उन्हें भारत छोड़ने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। उन्हें नागरिकता प्रदान की जाएगी। यह केवल अवैध घुसपैठियों के संदर्भ में हैं, जिनकी पहचान कर उनको वापिस भेजा जाएगा। श्री शाह ने सभी कार्यकर्ताओं से राज्य भर में इस संदेश को ले जाने की अपील की है।

केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में उनका संदेश स्पष्ट था, उन्होंने लोगों को यह भी याद दिलाया कि टीएमसी और सीपीएम जैसे दलों ने संसद में जब सीएबी का विरोध किया था, तो इसका मतलब था कि उन्होंने शरणार्थियों को नागरिकता देने का विरोध किया था। श्री शाह ने राज्य के लोगों को यह भी याद दिलाया कि 2005 में जब ममता बनर्जी ने अवैध घुसपैठियों के खिलाफ बात की थी, तो उन्होंने यह कहते हुए स्पीकर की कुर्सी पर कागज फेंके थे कि अवैध घुसपैठिए पश्चिम बंगाल की जनसंख्या को प्रभावित कर रहे हैं और इस क्षेत्र के माहौल को खराब कर रहे हैं। वहीं ममता बनर्जी अब एक नया राग गा रही हैं, वह केवल अपने वोट-बैंक (अवैध घुसपैठी) की रक्षा कर रही है। इसी क्रम में वह सीएबी के विरोध के साथ-साथ जानबूझकर एनआरसी मुद्दे पर आतंक फैला रही हैं।

इसका संदेश स्पष्ट है, टीएमसी और कम्युनिस्ट की भूमिका उजागर हो चुकी है और सीमावर्ती क्षेत्रों में शरणार्थियों आनन्दित है। केंद्रीय गृह मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि अवैध घुसपैठियों के लिए भारत में कोई स्थान नहीं है। उन्हें यहां रहने का कोई अधिकार नहीं है, जबकि शरणार्थी- हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई- जो दूसरे देशों से भारत में आए थे, उन्हें यहां रहने और नागरिकता हासिल करने का पूर्ण अधिकार है।

अमित शाह के इस दौरे से राज्य की हवा साफ हो गई है, अमित शाह का संवाद सीधे लोगों के साथ था, श्री शाह इस झूठ की हवा निकालने के लिए कोलकाता गए थे, उन्होंने ऐसा ही किया, उन्होंने अपनी बात को बेहद सहज अंदाज से जनता के समक्ष रखा और जनता ने भी इसका पूर्ण समर्थन किया। अब हमारा कार्य यह है कि इस अभियान के संदेश को जमीनी स्तर तक ले जाया जाए और पश्चिम बंगाल में टीएमसी और कम्युनिस्ट पार्टियों द्वारा विभाजन एवं भय की राजनीति का मुकाबला पूरी दृढ़ता से किया जाए।

       (लेखक डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन, नई दिल्ली के निदेशक हैं)