कांग्रेस को है बिचौलियों की चिंता, इसलिए किसानों को कर रही गुमराह

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राकेश सिंह

कृषि सुधार कानून में कुछ भी किसानों के विरोध में नहीं है। देश का किसान पूरी तरह से इस कानून के साथ है। लेकिन कुछ राजनैतिक दल किसानों के नाम पर आंदोलनरत हैं, हालांकि यह ज्यादा दिन तक चलेगा नहीं। देश का अन्नदाता जागरूक है और अपना अच्छा-बुरा समझता है। उसने समझ लिया है कि यह कानून उसके अधिकारों की रक्षा करता है और उसे समृद्धि की दिशा में आगे ले जायेगा।

वर्ष, 2011 में कांग्रेस सत्ता में थी, जब सदन में कृषि सुधार पर बोलते हुए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सिब्बल ने जो कहा था, “जब किसान बोता है और उसे बेचना चाहता है तो उसके पास कोई मार्केट नहीं है। उसे मालूम नहीं है किस मार्केट में जाना है। अगर मंडी जाता है तो पैतीस से चालीस फीसदी सामान खराब हो जाता है। इस बीच आठ लोग कमीशन एजेंट होते हैं। बेचारे किसान का जो सामान बिकता है, उसका 15-17 फीसदी ही उसे मिलता है। बाकी बिचौलियों को चला जाता है। विपक्षी दलों को तय करना है कि वे किसान के साथ हैं या बिचौलियों के साथ।”

यह बयान कपिल सिब्बल का है। वे उस समय कृषि सुधारों पर बोलते हुए विपक्ष से पूछ रहे थे कि वे किसके साथ हैं। यही सवाल आज उनकी पार्टी से पूछा जा रहा है कि वे किसान के साथ हैं या बिचौलियों के साथ।
जाहिर है कांग्रेस बिचौलियों के साथ है। अगर वह किसानों के साथ होती तो हंगामा नहीं करती। सड़क से संसद तक कृषि कानून का समर्थन करती। लेकिन वह तो विरोध का बिगुल बजा रही है और बिचौलियों के लिए काम कर रही है। यह उसका स्वभाव भी रहा है। बिचौलिए हमेशा उसके प्रिय रहे हैं। फिर चाहें बात खेती-बाड़ी की हो या किसी और क्षेत्र की। इनका तो वास्ता ही इन्हीं से रहा है। तभी तो वह किसानों को गुमराह कर रही है। नहीं तो जो विधयेक उनके लिए है, उसे सदन से पास कराती। लेकिन वह तो विरोध पर उतर आई है। विरोध ऐसा कि उप सभापति पर हमला कर दिया जाता है, जो संसदीय मर्यादा के अनुकूल नहीं है। मगर जिसे बिचौलियों की चिंता हो, उसके लिए संसदीय मर्यादा कहां मायने रखती। रही बात कृषि सुधार की तो कांग्रेस का घोषणा पत्र, उसके दोहरे चरित्र का गवाह है।

2019 के आम चुनाव में कांग्रेस ने जो घोषणा पत्र जारी किया था, वही कृषि सुधार कानून कह रहा है। वही कानून जिसका कांग्रेस विरोध कर रही है। देशव्यापी आंदोलन चला रही है। सोशल मीडिया पर अफवाह फैला रही है। किसानों को बता रही है कि यह कानून किसान विरोधी है। जाहिर है वह किसानों की हितैषी नहीं है। अन्नदाता को ऐसे दलों के बहकावे से बचना चाहिए। उन्हें समझना होगा कि सरकार कृषि सुधार के लिए जो तीन कानून लेकर आई है, वह उनके हित में हैं। इससे जहां किसानों की आय दोगुना होगी वहीं बिचौलियों से मुक्ति मिलेगी। किसान अपना उत्पाद देश के किसी कोने में बेच सकेगा। 2022 तक कृषि निर्यात को दोगुना बढ़ाकर 60 अरब डालर करने का लक्ष्य है। राष्ट्रीय कृषि निर्यात नीति की मूल भावना इसी में समाहित है। किसानों की आय दोगुनी हो, किसान समृद्ध हो और साहूकारी के मकड़जाल से बाहर निकल सके।

कुछ लोग ऐसा मानते हैं कि नए कृषि सुधारों से किसानों की जमीन भेंट चढ़ जाएगी। पूंजीपतियों का आधिपत्य हो जाएगा और किसान मात्र मजदूर बनकर रह जाएगा, परन्तु ऐसा है ही नहीं। बल्कि इस कानून में सारे अधिकार किसानों के ही पास है। साथ ही अधिनियमों में कुछ ऐसे प्रावधान किए गए हैं ताकि किसान के हित सुरक्षित रहें। कृषि सुधार कानून मोदी जी की नेतृत्व वाली भाजपा सरकार की एक उदारवादी नीति है। इससे किसान को अब बिचौलियों की चौखट पर सिर नहीं झुकाना पड़ेगा।

यह कृषि सुधार विधेयक किसान के आत्मसम्मान की भी रक्षा करता है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश के 52 प्रतिशत लोग कृषि से जुड़े हैं। यानी कि भारत की आधी जनसंख्या कृषक है। बावजूद इसके जीडीपी में कृषि का योगदान 17-18 प्रतिशत मात्र है। किसान को अब तक एक किलो का दाम लगभग 20 रुपए मिलता है और बाजार में जाते-जाते इसकी कीमत 65-100 रुपए हो जाती है। बीच के पैसे कहां गए, उसी को रोकने के लिए कानून बनाया गया है। आवश्यक अधिनियम के अन्तर्गत किसान अब प्याज, दालें, आलू एवं अन्य चीजों का भंडारण कर सकता है।

यह कानून किसान को अधिकार देता है कि वह किसी भी कंपनी से सीधे अनुबंध कर सकता है। इसका लाभ छोटे और सीमांत किसानों को मिलेगा। हमारे देश में लगभग 78 फीसदी ऐसे किसान हैं, जिनके पास दो हेक्टेयर से कम जोत है। उनको नई तकनीकी देना कम्पनियों की जिम्मेदारी होगी। नई तकनीक के जरिए किसान अपनी खेती को ज्यादा उपजाऊ बना पाएगा। वर्तमान सरकार का यह एक ऐतिहासिक कदम है। देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने में यह कानून कारगर साबित होगा। किसान को किसानी छोड़कर पलायन नहीं करना होगा।

वर्तमान सरकार के इस कदम से यह साबित हो रहा है कि देश का किसान भगवान है और वह पुनः नायक बनेगा, जिसके बल पर हमारा देश ‘सोने की चिड़िया’ बोला जाता था। 1970 के दशक में एग्रीकल्चर प्रड्यूट्सन मार्केटिंग एक्ट लाने के बाद कृषि विपणन समितियां बनी थीं। इन समितियों का उद्देश्य बाज़ार की अनिश्चितताओं से किसानों को बचाना था। किन्तु केंद्रीय स्तर पर आने के बावजूद इसका मकसद पूरा नहीं हो पाया। मंडी ढांचे में बढ़ोतरी तो हुई, लेकिन इसका प्रभाव सीधे किसानों पर पड़ा। दूसरी ओर इनके आधुनिकीकरण करने और प्रतिस्पर्धी माहौल गढ़ने की भी कोई कोशिश नहीं हुई।

समय बीतने के साथ कई राज्यों ने एपीएमसी मंडियों में शुल्क को हद से ज्यादा बढ़ा दिया। जैसे मंडियों में ग्रामीण विकास निधि, कृषि कल्याण उपकर, विकास उपकर लगा दिए गए। इसी तरह कुछ मंडियों में फलों एवं सब्जियों के कमीशन एजेंटों पर 4-8 फीसदी शुल्क लगा दिए गए। इस समय पंजाब में मंडी कर 6.5 और 2.5 फीसदी आढ़ती चार्ज है।

इसके अलावा कई तरह के सेस है। कुल मिलाकर 14.5 फीसदी का चार्ज किसानों को सहन करना पड़ता है। वहीं हरियाणा में यह 11.5 फीसदी है। एक तरह जहां किसान अपनी फसल को बचाने की गुहार लगाता रहता है, वहीं किसान के सिर पर इन भारी करों का बोझ भी होता है। कृषि सुधार कानून सराहनीय इसलिए भी है, क्योंकि किसान को इन करों के बोझ तले अब दबना नहीं होगा।

नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद कहते हैं- यह कानून देखा जाए तो सभी मंडी व्यापारियों या आढ़तियों के संघ जैसा बन गया है। इस वजह से किसानों को अपना उत्पाद सीधे किसी को भी बेचने की छूट होगी। इससे प्रतियोगिता बढ़ेगी और किसानों को बेहतर दाम मिलेगें। अब कानूनी रूप से मान्य बिचौलियों के न होने से किसान सीधे अपना उत्पाद बेच सकेंगे। जहां तक बात अनुबंध कृषि की है तो वह नई नहीं है। देश के तमाम राज्यों में की जा रही है।

देश के कई राज्यों के किसानों ने अनुबंध कृषि द्वारा अपनी किस्मत चमकाई है। जिस पंजाब में इन दिनों किसान आंदोलनरत हैं, उसी राज्य के (मोगा जनपद स्थित गांव इन्द्र गढ़) किसान मजिंदर सिंह हैं। उनके पास 20 एकड़ ज़मीन थी, फिर भी वे कर्ज में डूबे रहते थे। 2005 में जब खेती से निराशा होने लगी, तब उन्होंने खेती छोड़ने का फैसला किया। तभी उनके किसी मित्र ने कृषि अनुबंध की जानकारी दी। उन्होंने अपनी ज़मीन का अनुबंध एक कंपनी से किया और सफलता की नई इबारत लिखी।

आज वे 100 एकड़ जमीन के स्वामी बन चुके हैं। सामान्य किसान जहां प्रति एकड़ चालीस से पचास हजार रुपए कमाता है। वहीं मंजदिर सिंह 1.50 लाख रुपए कमा रहे हैं और किसानों के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए हैं। किसान अपना हित और अहित अच्छी तरह समझता है। सचाई यह है कि इस कानून में कुछ भी किसानों के विरोध में नहीं है।

     (लेखक लोकसभा सांसद हैं)