डॉ़ मुखर्जी का मानना था कि मूल संस्कृति से मेल खाती शिक्षा पद्धति होनी चाहिए : अमित शाह

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भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह ने 15 जुलाई को नई दिल्ली के नेहरू मेमोरियल में ‘श्यामा प्रसाद मुखर्जी-हिज विजन ऑफ़ एजुकेशन’ पुस्तक का लोकार्पण किया। इस पुस्तक का संपादन डॉ़ श्यामा प्रसाद मुखर्जी शोध अधिष्ठान के निदेशक श्री अनिर्बान गांगुली और श्री अवधेश कुमार सिंह ने की है। इस किताब में देश की शिक्षा व्यवस्था और विकल्पों पर डॉ़ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के विचारों का संकलन है।

इस अवसर पर भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री अमित शाह ने कहा कि डॉ. मुखर्जी जी का मानना था कि भारत में लोगों की नैसर्गिक प्रतिभा और देश की मूल संस्कृति से मेल खाती शिक्षा पद्धति होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि श्री मुखर्जी का मानना था कि देश की प्राथमिक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा या फिर उच्च शिक्षा, सभी एक दूसरे की पूरक होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि डॉ. मुखर्जी कोई समझौता किये बगैर शिक्षा की गुणवत्ता को अक्षुण्ण रखते हुए इसे जन सुलभ बनाना चाहते थे, साथ ही वे शिक्षा, व्यापार जगत, देश की जरूरत और रिसर्च के बीच पारस्परिक संबंध की भी पुरजोर वकालत करते थे।

उन्होंने कहा कि श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, केवल 53 वर्ष के अपने जीवन में उन्होंने कई ऐतिहासिक कार्य किये। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक में श्री मुखर्जी जी के कई महत्वपूर्ण भाषणों को प्रकाशित किया गया है, लेकिन मैं उनके द्वारा दिए गए दो भाषणों, एक बंगाल विधानसभा में और दूसरा देश की संसद में दिए गए ऐतिहासिक भाषण का जिक्र अवश्य करना चाहूंगा, जिसने देश में बहुत बड़े अनर्थ को रोका था। उन्होंने कहा कि 1940 में बंगाल विधानसभा में एक बिल पेश किया गया था, जो शिक्षा का इस्लामीकरण करने का प्रस्ताव था जिसको केवल डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की दूरदर्शिता के कारण लागू नहीं किया जा सका। उन्होंने कहा कि 1951 में केंद्र सरकार विश्व भारती अधिग्रहण बिल लेकर आई थी, उस वक्त भी श्री श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अकेले आवाज बुलंद की थी जिसके कारण ही शिक्षा को देश की संस्कृति के साथ जोड़ने वाले संस्थान बच पाए।