भारत में व्यापार करना हुआ सुगम

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अरुण जेटली

विश्व बैंक प्रत्येक वर्ष अक्टूबर महीने में आगामी वर्ष के लिए ‘व्यवसाय की सुगमता’ पर अपनी रैंकिंग जारी करता है। यह रैंकिंग किसी भी देश में व्यापार करने के लिए मिलने वाले माहौल पर आधारित होता है और इसका विश्लेषण करने के लिए प्रत्येक वर्ष 1 मई की तिथि को निर्धारित किया गया है। इस रैंकिंग को विश्व बैंक के स्वतंत्र शोध के तौर पर देखा जाता है और इसके लिए तय 10 मानकों के आधार पर ग्रेड दिए जाते है। इस आकलन में सामान्यताओं के लिए कोई जगह नहीं है। इन सुधारों को विशिष्ट होना चाहिए और अपने विशिष्ट प्रयासों की बदौलत भारत अब इस रैंकिंग में 190 देशों की सूची में 77वें स्थान पर पहुंच गया है।

यूपीए सरकार के दौरान भारत की स्थिति

यूपीए सरकार के दस वर्षों के शासनकाल के दौरान देश ने भ्रष्टाचार के सभी रिकार्डों को टूटते हुए देखा। वहीं देश नीति पक्षाघात और कांग्रेस की गैर सुधारवादी नीतियों से भी जूझता रहा। यही कारण है कि यूपीए-2 के पांच सालों के कार्यकाल में भारत वैश्विक रैंकिंग में 134, 132, 132, 134 और आखिरकार 142 स्थान पर लुढ़क गया। यह यूपीए सरकार की बड़ी नाकामयाबी थी। इस दौरान भारत के साथ व्यापार करना सबसे ज्यादा मुश्किल माना जाने लगा था। निवेशक भारत आने में सावधानी बरत रहे थे। इसके विपरीत मौजूदा निवेशक भारत को छोड़ने का मन बना रहे थे और कुछ छोड़ भी चुके थे।

एनडीए सरकार का प्रदर्शन

साल 2014 में प्रधानमंत्री ने घोषणा कर कहा था कि हमारी सरकार का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत ‘व्यवसाय करने में सुगमता’ इस रैंकिंग में पहले पचास देशों में अपनी जगह बनाए। उनकी यह घोषणा एक बड़ी चुनौती थी, क्योंकि हमें इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए इस रैंकिंग में 92 स्थानों की छलांग लगानी थी। वहीं, इस रैंकिंग में शामिल शीर्ष देशों के साथ प्रतिस्पर्धा बेहद ही कठिन साबित होने वाली थी, जिसके लिए निर्धारित दस श्रेणियों में सुधार करने की आवश्यकता थी और यह प्रतिस्पर्धा जब और कठिन होने वाली थी जब यह देश निरंतर अपने देश में विशिष्ट परिवर्तन के साथ आगे बढ़ रहे थे। इन परिवर्तनों के लिए कानून, विनियमन, नीति निर्णय और प्रशासनिक सुधारों में बदलाव की आवश्यकता होती है। वहीं, तकनीकी नवाचारों को भी इसमें शामिल किया जाता है। इस रैंकिंग में 92 स्थानों की छलांग लगाना एक कठिन काम है। हमारे इस लक्ष्य को लेकर देश में बहुत से लोग आशावादी नहीं थे और उन्होंने इसे एक अविश्वसनीय लक्ष्य के रूप में लिया।

हमारी सरकार ने साल 2014 से इस रैंकिंग के प्रत्येक मानदंडों पर काम करना शुरू किया। इसके लिए केवल परिवर्तन की घोषणा या कोई कानून या नीति निर्धारण कर देना पर्याप्त नहीं था, बल्कि इसका असर जमीन पर दिखाई देना बेहद जरूरी था। विश्व बैंक केवल घोषणाओं को सुधार के रूप में नहीं मान्यता देता है। इन सुधारों को एक समयबद्ध सीमा के अंदर करना बेहद जरूरी था।
वहीं, विरासत में हमें मिली 142वीं रैंकिंग के साथ हम आगे बढ़े, पहले दो वर्षों में हमारी रैंकिंग में कुछ सुधार देखा गया और हम 130वें स्थान पर आने में कामयाब रहे। वहीं, तीसरे वर्ष में, हमने 30 पदों की एक लंबी छलांग लगाई और 100वें स्थान पर जा पहुंचे। ऐसे ही चौथे वर्ष में, हम 77वें स्थान पर आसीन होने में कामयाब हुए। तो कुल मिलाकर इन चार वर्षों के दौरान भारत इस रैंकिंग में 65 स्थानों की छलांग के साथ आज 77वें स्थान पर आसीन है। हमारा लक्ष्य अभी भी 27 स्थान दूर हैं, पर पहले असंभव माने जाने वाला लक्ष्य अब सभी को संभव लग रहा है।

सुधारों की स्थिति

‘व्यापार शुरू करने’ की श्रेणी में हमने पिछले चार वर्षों में 21 अंकों का सुधार देखा है। ‘निर्माण गतिविधि’ में चार साल में 132 अंक का भारी सुधार हुआ है। निर्माण संबंधित अनुमति पत्र अब ऑनलाइन हासिल किए जा सकते है, जिसके लिए एक समय सीमा का निर्धारण भी किया गया है। अगर उस समय के भीतर यह अनुमति पत्र प्राप्त नहीं होता हैं, तो उसे स्वीकृति के तौर ही देखा जाता है। ‘बिजली प्राप्त करने’ की श्रेणी में हमने एक असाधारण 132 पदों की छलांग लगाई है। संपत्ति पंजीकरण के मामले में हम अभी भी 166 स्थान पर बने हुए हैं। ‘क्रेडिट प्राप्त करने’ की श्रेणी में हम 22वें स्थान पर हैं। ‘अल्पसंख्यक निवेशकों की रक्षा’ की श्रेणी में हम 7वें स्थान पर हैं, जो किसी भी श्रेणी में हमारी सर्वोच्च स्थिति है। ‘सीमा पार व्यापार’ श्रेणी में हम 146 वें स्थान से बढ़कर 80वें स्थान पर पहुंच गए हैं।

जीएसटी और दिवालियापन संबन्धित कानून के लागू होने के बाद हमने ‘करों का भुगतान’ श्रेणी में 37 स्थानों का सुधार देखा है, लेकिन अभी भी हम 121वें स्थान पर हैं। ‘दिवालियापन को हल करने’ संबन्धित श्रेणी में हमने 29 पदों का सुधार किया है, लेकिन अभी भी हम 108वें स्थान पर हैं। ‘अनुबंधों के प्रवर्तन’ श्रेणी में हमने 23 स्थानों को सुधार किया है और हम 163वें स्थान पर हैं।

आगे की राह

मौजूदा व्यवस्था में ‘करों का भुगतान’ और ‘दिवालियापन’ के मामलों से निबटने के लिए जीएसटी और एनसीएलटी तंत्र मौजूद हैं। इनके शुरुआती परिणाम काफी उत्साहजनक हैं और जब इस पूरे वित्तीय वर्ष के प्रदर्शन आकलन होगों, तो यह मानना तार्किक है कि हम इन दो श्रेणियों में ठोस रूप से आगे बढ़ेंगे। इसी प्रकार ‘अनुबंधों के प्रवर्तन’ के संबंधित मामलों से प्रभावी तौर से निबटने के लिए ‘स्पेसिफिक रेलीफ़ एक्ट’ (विशिष्ट राहत अधिनियम) में संशोधन किया गया है। देश के विभिन्न जिलों में वाणिज्यिक अदालतें स्थापित की गई हैं। न्यायिक हस्तक्षेप को कम करने के और इस प्रक्रिया को गति प्रदान करने के उद्देश्य से मध्यस्थता अधिनियम में भी संशोधन किया गया है।

इसके अतिरिक्त ‘व्यवसाय शुरू करने’ से संबंधित नियमों को सुगम बनाने के लिए भारत निरंतर प्रयास कर रहा है। पिछले चार वर्षों में हमारी रैंकिंग में 21 स्थानों को इजाफा हुआ है और आज हम 137वें स्थान पर बने हुए हैं। हालांकि इसे संतोषजनक स्थिति नहीं कही जा सकती है। अभी केंद्र और राज्यों के स्तर पर बहुत से सुधारों की गुंजाइश बनी हुई है।

इन मानदंडों को हासिल करने के लिए जरूरी है कि व्यावसायिक गतिविधि में लगने वाली समय अवधि को कम किया जाए। लागत में कमी और विभिन्न प्रक्रियाओं की संख्या को कम करने पर जोर दिया जाए। यह कोई असंभव कार्य नहीं है। यदि हम वर्तमान गति को बनाए रखने में सक्षम होते हैं, तो प्रधानमंत्री द्वारा निर्धारित लक्ष्य को जल्द ही हासिल कर पाएगें। एक लक्ष्य केंद्रित और उद्देश्य उन्मुख सरकार ही इसे हासिल कर सकती थी।

(लेखक केंद्रीय वित्त मंत्री हैं)