अब हर भारतीय ‘वीआईपी’

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लालबत्ती’ पर रोक लगने से देश में वर्षों से पनपती ‘वीआईपी कल्चर’ को बड़ा झटका लगा है। ‘स्टेटस सिंबल’ बन चुकी ‘लालबत्ती’ लगातार दुरुपयोग के कारण सुर्खियों में छाई रहती थी। वास्तव में यदि देखा जाए तो ‘लालबत्ती’ के पीछे वही औपनिवेशिक मानसिकता थी, जो ब्रिटिश राज के लिए एक विशेषाधिकार प्राप्त समर्थक वर्ग को खड़ा करने के पीछे थी। यह बड़ी विडंबना है कि लोकतंत्र में भी वही मानसिकता किसी न किसी रूप में अब तक छाई रही। दरअसल, जहां वंशवाद, भाई-भतीजावाद एवं जातिवाद लोकतंत्र के लिए जहर बन गया है, वहीं ‘वीआईपी कल्चर’ लोकतंत्र की आत्मा पर कुठाराघात है। ‘लालबत्ती’ पर रोक लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ठीक ही कहा कि ‘हर भारतीय विशिष्ट है, हर भारतीय वीआईपी है।’

लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को अपने पहले संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जब स्वयं को देश का ‘प्रधान सेवक’ घोषित किया, तब ही यह स्पष्ट हो गया था कि वह लोकतांत्रिक भावना के अनुरूप कार्य-संस्कृति में परिवर्तन चाहते हैं। संदेश साफ था – लोकतंत्र में कोई ‘शासक वर्ग’ नहीं हो सकता, सब जनता के ‘सेवक’ हैं। शासक वर्ग का होने का अहंकार कहीं न कहीं औपनिवेशिक विरासत की देन है, जो स्वतंत्रता के बाद भी राजनेताओं एवं अफसरशाहों को अपने चपेट में लेती रही है। क्या लोकतंत्र में ‘शासक’ एवं ‘शासित’ जैसे वर्गीकरण का स्थान है? ‘शासक’ होने का भाव न केवल लोकतांत्रिक भावना के विपरीत है, बल्कि इससे वंशवाद, भाई-भतीजावाद एवं जातिवाद जैसे कुवृत्तियों का जन्म होता है, जो दिन-प्रतिदिन लोकतंत्र को अंदर से खोखला कर देती है। किसी परिवार, जाति या गुट का ‘राज’ कायम करने के लिए विशेषाधिकार प्राप्त किसी वर्ग का गढ़ा जाना कुछ और नहीं बल्कि लोकतंत्र का विकृतिकरण है। भारतीय राजनीति में भी ऐसे कई उदाहरण हैं जब किसी परिवार ने पार्टी पर अपनी सत्ता कायम रखने के लिए अपने विशेषाधिकार प्राप्त समर्थकों को भ्रष्टाचार एवं लूट करने की खुली छूट दे दी। यदि गहराई से देखा जाए तो इसमें किसी को शायद ही संशय हो कि ‘वीआईपी कल्चर’ कहीं न कहीं व्यवस्था मंे व्याप्त भ्रष्टाचार से जुड़ा हुआ है। यदि राजनीति को सत्ता हथियाने तथा लोगों पर राज करने के उपकरण रूप में देखा जाने लगे, तब देश कभी उन्नत एवं समृद्ध नहीं हो सकता।

भारतीय जनता पार्टी का जन्म ‘राजनीति’ को एक नया अर्थ देने के लिए हुआ है। स्वतंत्रता पश्चात् जैसे-जैसे कांग्रेस वंशवाद की पर्याय बनती गई, इसके नेता राजनीति को सत्ता हथियाने एवं जनता पर राज करने के माध्यम के रूप मंे देखने लगे। कांग्रेस मंे व्याप्त ऐसी ही मानसिकता के कारण इसकी आज यह दुर्गति हुई है और लोग अब इसे कुशासन, भ्रष्टाचार एवं वंशवाद के लिए याद करते हैं। जनता को अब भाजपा के रूप मंे एक ऐसा विकल्प मिल चुका है, जिसके कंधों पर देश की लोकतांत्रिक भावना तथा जनाकांक्षाओं को पूरा करने का दायित्व है। एक ओर जब देश तेज गति से विकास की ओर बढ़ रहा है, तो सच्चे लोकतंत्र को स्थापित करना भाजपा की प्राथमिकता है। भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने बार-बार कहा है की देश की अपेक्षा हमसे केवल सुशासन की नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की है। प्रधानमंत्री ने स्वयं उदाहरण प्रस्तुत कर सरकारी अधिकारियों एवं राजनैतिक नेताओं में दायित्व बोध जगाया तथा देश में एक नई कार्य संस्कृति का मार्ग प्रशस्त किया है। राजनीति सत्ता और पद के लिए नहीं बल्कि जनसेवा तथा देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए होनी चाहिए। यह बात समझनी पड़ेगी कि राजनीति स्वार्थी, भ्रष्ट तथा सत्तालोलुप लोगों की शरणस्थली नहीं, बल्कि मां भारती को उच्च सिंहासन पर आरूढ़ करने का स्वप्न देखने वाले निःस्वार्थ कर्मयोगियों की साधना है। ‘लालबत्ती’ बंद करने का निर्णय ‘वीआईपी कल्चर’ पर एक कड़ा प्रहार तो है ही, साथ ही यह सुशासन को सही अर्थों में परिभाषित करता है जिसका अर्थ अब ‘राज’ करना नहीं, बल्कि ‘सेवा’ करना है। व्यवस्था मंे जब तक ‘सेवा’ की भावना एक मिशन नहीं बन जाती, तब तक मां भारती परम् वैभव को प्राप्त नहीं कर पायेगी।

                                                                                                                                                                        shivshakti@kamalsandesh.org