पत्र-पत्रिकाओं से…

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बदलाव की ओर

क अच्छा विचार धीरे-धीरे कदम बढ़ा रहा है। चुनाव आयोग ने कहा है कि वह साल भर के भीतर इस स्थिति में होगा कि देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ करवा सके। आयोग के इस बयान से उस अभियान को बल मिला है, जो खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दिल के करीब है। उन्होंने एक से ज्यादा बार यह कहा है कि हमें रोज-रोज चुनाव के चक्कर से बचने के लिए ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए कि लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हो जाएं। इस पर कई मंत्रालयों की राय भी मांगी गई थी, वे भी इसके समर्थन में हैं। कुछ नागरिक संगठन तो न जाने कब से यह मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी बात अनसुनी ही की जाती रही, अब उन्हें भी उम्मीद बंधी होगी। भारत ने लोकतंत्र को जिस ढंग से अपनाया है, उससे राजनीतिक ही नहीं, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से लोकतंत्र उसकी एक ताकत बन गया है।
– जनसत्ता (7 अक्टूबर)

पुलिस की आंतरिक संरचना में बदलाव

लिस सुधार के लिए राज्यों को 25,000 करोड़ रुपए का पैकेज देने का केंद्र का एलान स्वागत योग्य है। प्रधानमंत्री पुलिस को चुस्त दुरुस्त, आधुनिक और स्मार्ट देखना चाहते हैं और उनकी इच्छा मुनासिब है।
– दैनिक भास्कर (29 सितंबर)

बढ़ती हुई मुहिम

धानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता के महत्व को स्वीकार किया है और इसे अपना प्रमुख अजेंडा बनाया है। देश में स्वच्छता को लेकर बने माहौल का ही असर है कि आज गांवों में कई लड़कियों ने अपनी ससुराल में शौचालय बनाने पर जोर दिया और इसके लिए डटी रहीं। कुछ ने तो लड़के के यहां शौचालय न होने के कारण शादी तक से इनकार कर दिया। गांवों में लोग अब खुद आगे आकर शौचालय बनवा रहे हैं। यह परिवर्तन निरंतर प्रचार की ही देन है।
– नवभारत टाइम्स (2 अक्टूबर)

आतंक के खिलाफ

छले कुछ समय के दौरान आम आबादी पर बमबारी से लेकर सैन्य शिविरों तक पर हमले करने वाले आतंकियों को सुरक्षा बलों की चौकसी की वजह से मुंह की खानी पड़ी और उनमें से कई मारे भी गए। इसी कड़ी में सोमवार को एक बड़ी कामयाबी तब मिली, जब शोपियां इलाके में सुरक्षा बलों ने एक मुठभेड़ में प्रमुख आतंकी जाहिद सहित हिज्बुल मुजाहिदीन के तीन आतंकियों को मार गिराया। इसके साथ ही बारामूला जिले में एक अन्य मुठभेड़ में जैश-ए-मोहम्मद का एक शीर्ष कमांडर सुरक्षा बलों के हाथों मारा गया।
– जनसत्ता (11 अक्टूबर)

जीएसटी में सुधार

एसटी काउंसिल ने ऐसे संशोधनों का ऐलान किया, जिनकी जरूरत जीएसटी लागू होने के बाद से ही महसूस की जाने लगी थी। वित्तमंत्री के मुताबिक, जीएसटी के तीन महीनों के अनुभव और लोगों से मिले फीडबैक के आधार पर ये बदलाव किए गए हैं। सरकार अपने अनुभव से सबक ले और लोगों के फीडबैक के आधार पर नीतियों में बदलाव करे, यह किसी भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए अच्छी बात ही कही जाएगी।
– नवभारत टाइम्स (अक्टूबर 9, 2017)