वामपंथी हिंसा की राजनीति को परास्त करो

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जैसे-जैसे नये क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी मजबूती से उभर रही है, इसके कार्यकर्ताओं को विरोधी  जनैतिक दल निशाना बना रहे हैं। केरल में स्थिति अत्यंत गंभीर बन गई है। भाजपा कार्यकर्ताओं पर हिंसक हमले हो रहे हैं, उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है और निर्ममता से उनकी हत्या हो रही है। कुन्नूर में एक हृदयविदारक घटना में भाजपा कार्यकर्ता रेमिथ का बलिदान हो गया। जिस दिन केरल में कम्युनिस्टों ने चुनाव जीता, ठीक उसी दिन से भाजपा कार्यकर्ताओं पर हमले और भी तेज हो गये हैं। जीत के जुनून में कम्युनिस्टों ने सऊदी अरब से भाजपा को चुनाव में सहायता करने हेतु आये  प्रमोद की हत्या कर दी। यह और भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण है कि 12 अक्तूबर को रेमिथ की हत्या केरल के कम्युनिस्ट मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के गांव में हुई। कम्युनिस्टों के सरकार बनाने के बाद से अनेक भाजपा कार्यकर्ताओं का बलिदान हो चुका है। यह गंभीर चिंता का विषय है कि कम्युनिस्ट केरल में स्टालिनवाद के भयावह दौर को स्थापित करना चाहते हैं।

हाल ही में कोझीकोड ;केरलद्ध में संपन्न हुए राष्ट्रीय बैठक में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एक पुस्तक ‘आहुति’ का विमोचन किया, जिसमें भाजपा कार्यकर्ताओं पर हुए कम्युनिस्टों के कायरतापूर्ण हमले की बर्बतापूर्ण कहानी है। पुस्तक का विमोचन करते हुए प्रधानमंत्री ने इस बात पर दुःख व्यक्त किया कि वैचारिक मतभिन्नता पर कम्युनिस्टों ने हिंसा का रास्ता अपनाया है, जिसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जहां भी कम्युनिस्ट सत्ता में आये, हिंसा एवं आतंक के बल पर शासन चलाया है। केरल में कम्युनिस्टों की हिंसक राजनीति का विरोध करते हुए संघ-भाजपा के अनेकां कार्यकर्ताआें ने बलिदान दिया है। कार्यकर्ताओं को चुनकर निशाना बनाया गया, कायरतापूर्वक उन पर हमला किया गया एवं अनेकों की अब तक निर्ममतापूर्वक हत्या की जा चुकी है। ऐसे बलिदानियों की केरल में एक लंबी सूची है, जिन्होंने पूरी हिम्मत से कम्युनिस्टों की हिंसा एवं आतंक को चुनौती दिया। केरल में कम्युनिस्टों द्वारा हिंसा की शुरुआत 1960 के दशक से देखी जा सकती है, जब थनुर में 16 वर्षीय सुब्रह्मण्यम की हत्या इनके शह पर मुस्लिम लीग के गुंडों द्वारा की गई थी। छात्रों के सामने जयकृष्ण मास्टर की दर्दनाक हत्या तथा यशोदा एवं उसके पति की बर्बतापूर्ण हत्या से कम्युनिस्टों की हिंसक मानसिकता का पता चलता है। यह केवल हिंसा नहीं, बल्कि बर्बतापूर्वक की गयी हिंसा की बात है जिसे देखकर कोई भी भयाक्रांत हो जाये। सुब्रह्मण्यम एवं राजन के ऊपर पेट्रोल डालकर उन्हें जिंदा जला दिया गया, जबकि सत्यन का सिर धड़ से अलग कर दिया गया।

ऐसा शायद ही कभी होता है जब कम्युनिस्टों द्वारा किए गये इन हिंसक वारदातों को राष्ट्रीय मीडिया अपनी चर्चा के केन्द्र में रखता हो। कम्युनिस्टों के मीडिया में पकड़ के कारण इनके कुकृत्य अब तक पूरी तरह जनता के सामने नहीं आ पाये हैं। जैसे-जैसे भाजपा केरल में और अधिक जनसमर्थन प्राप्त कर रही है, लोग खुलकर राजनैतिक हिंसा का विरोध कर रहे हैं। भाजपा द्वारा आहूत बंद को मिला भारी जनसमर्थन कम्युनिस्टों के लिए खतरे की घंटी है। जब भी कम्युनिस्ट सत्ता का विरोध हुआ है, वे हिंसा पर उतारू हुए हैं। यह उनकी वैचारिक एवं नैतिक पराजय है। भाजपा ने राजनीति में कभी हिंसा का सहारा नहीं लिया। इसी कारण आज भाजपा को हर ओर समर्थन है। कम्युनिस्ट हिंसा में शहीद सभी को नमन करते हुए यह कहना उचित होगा कि अब समय आ गया है जब उन्हें बेनकाब कर कम्युनिस्टों की हिंसक राजनीति के विरू( लोकतांत्रिक संघर्ष तेज किया जाय।