मोदी सरकार की नीतियों से गरीब और मध्यम वर्ग को सबसे ज्यादा फायदा कैसे हुआ?

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अरुण जेटली

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए आरक्षण

आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आरक्षण देने के लिए संवैधानिक संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया गया है। यह जल्द ही भारत के संविधान का एक हिस्सा बन जाएगा। जैसा कि हम जानते है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के मामले में जाति को सामाजिक उत्पीड़न के प्रमुख कारकों के रूप में देखा जाता रहा है। ऐसे ही पिछड़ा वर्ग के मामले में सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन का कारक भी जाति को ही माना जाता है। हालांकि, गरीबी को एक धर्मनिरपेक्ष मानदंड माना जा सकता है। इस मापदंड को देखा जाए तो इसमें समुदाय और धर्मों के नाम पर अंतर नहीं किया जा सकता। गरीबी का मापदंड किसी भी तरह से संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन नहीं करता है। मूल संविधान (गैर—संशोधित) की प्रस्तावना में राजनीतिक, सामाजिक या आर्थिक मामलों के तहत सभी के लिए अवसर और न्याय की समानता को राज्य द्वारा सुनिश्चित किए जाने का उल्लेख मिलता है। यह प्रस्तावना संविधान के निर्माताओं की मंशा को व्यक्त करती है। यह संविधान की मूल संरचना की व्याख्या करती है। सामान्य गैर-आरक्षित श्रेणियों के गरीबों को 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किसी भी प्रकार से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तय 50 प्रतिशत आरक्षण का उल्लंघन नहीं करता है। इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि 50 प्रतिशत मानदंड संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में परिकल्पित जाति आधारित आरक्षणों पर ही लागू होता है। बहरहाल, प्रधानमंत्री द्वारा गरीबी आधारित आरक्षण को लागू करने का निर्णय सामान्य वर्ग में मौजूद गरीब परिवारों के प्रति उनकी चिंता को दर्शाता है और इसे समय की मांग कहना भी गलत नहीं होगा। इस मुद्दे पर प्रमुख विपक्षी दलों ने केवल सहानुभूति दिखाई और आधे—अधूरे मन से इसमें खामियां गिनाते हुए इस निर्णय का समर्थन किया।

गरीबों के लिए आर्थिक कदम

मोदी सरकार ने हर ग्रामीण गरीब परिवार को घर देने का वादा किया है। वर्तमान में ग्रामीण भारत में प्रति वर्ष लगभग 50 लाख घर बनाए जा रहे हैं। 2022 तक हर गरीब परिवार के सिर पर छत होगी। अधिकांश भारतीय गांवों को पक्की सड़क से जोड़ा गया है। एनडीए सरकार के शासन में राज्य के वित्त पोषण को प्रति वर्ष 9,000 करोड़ रुपये (यूपीए) से बढ़ाकर 27,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है। प्रत्येक गांव का विद्युतीकरण किया गया है और सभी ऐसे इच्छुक परिवारों, जो बिजली के कनेक्शन का खर्च वहन नहीं कर सकते थे, उनको भी कनेक्शन दिया गया है। ग्रामीण स्वच्छता 39% से बढ़कर 98% हो गई है। परंपरागत तौर पर कोयले और लकड़ी पर खाना बनाने के तरीके को रसोई गैस से बदल दिया गया है। गरीबों को उज्जवला योजना के तहत गैस कनेक्शन उपलब्ध कराया जा रहा है। मनरेगा योजना के लिए 60,000 करोड़ रुपए से अधिक आवंटित किया गया है, जो यूपीए द्वारा खर्च की गई राशि का दोगुना है। सार्वभौमिक स्वास्थ्य योजना – ‘आयुष्मान भारत’ के तहत भारत की 40% आबादी को स्वास्थ्य लाभ देने का लक्ष्य रखा गया है। इसमें उनको रखा गया है, जो आर्थिक ढांचे के सबसे निचले पायदान पर मौजूद हैं। ऐसे परिवारों को प्रति परिवार प्रति वर्ष 5 लाख रुपये तक का कवरेज और अस्पताल में मुफ्त इलाज का लाभ इस योजना के माध्यम से दिया जा रहा है।

सरकार ने ब्याज सबवेंशन पर खर्च को दोगुना करने के साथ ही 99 अधूरी सिंचाई योजनाओं को पूरा करने और किसान को फसल बीमा योजना देने का काम किया है। वहीं, अधिसूचित फसलों के लिए लागत से 50% अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करके किसान की मदद की अपनी प्रतिबद्धता को जाहिर किया है। बेशक, किसानों को अधिक सहयोग की आवश्यकता है और हमारी सरकार उसके लिए प्रतिबद्ध है।

मैंने अपने एक हालिया लेख में, सरकार द्वारा लेबर, ग्रेच्युटी, बोनस, न्यूनतम मजदूरी में वृद्धि, ईएसआई, सामाजिक क्षेत्र पेंशन, आंगनवाड़ियों और आशा कार्यकर्ता आदि के प्रावधानों में सुधार/उदार बनाने के संदर्भ में उठाए गए कदमों पर प्रकाश डाला है। पढ़ें ब्लॉग दिनांक (9.1.2019)।

मध्यम वर्ग

भारत के मध्यम वर्ग की बात करे तो पिछले पांच वर्षों कोई भी नया टैक्स नहीं लगाया गया है। अप्रत्यक्ष करों को GST में एक समावित कर एक टैक्स बना दिया गया है। GST भारत में सबसे महत्वपूर्ण ‘उपभोक्ता अनुकूल उपाय’ है। अधिकांश वस्तुओं के करों में कमी लाई गई है। दरों को सस्ता कर दिया गया है, भले ही इन संशोधन से सरकार के राजस्व में कमी आयी हो। इन कदमों के बाद सरकार को लगभग एक लाख करोड़ राजस्व का नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसी तरह, हर बजट में छोटे करदाताओं को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में राहत मिली है। भले ही 2.5 लाख रुपये की आय पर टैक्स का प्रावधान रखा गया है, लेकिन 3 लाख रुपये तक की आय वालों को कोई टैक्स नहीं देना होता है। इसके लिए सभी कर्मचारियों को रु 40,000/- टैक्स बचत का प्रावधान किया गया है। इसी तरह, आवास, बीमा और अन्य बचत स्कीमों में निवेश पिछले चार वर्षों में बढ़ाए गए हैं। इसके चलते सरकारी खजाने पर लगभग 97000 करोड़ रुपए प्रतिवर्ष अतिरिक्त भार वहन करना पड़ रहा है। यह पहली बार है कि किसी सरकार के पांच वर्ष के कार्यकाल के दौरान मध्यम वर्ग के कर दाता का टैक्स बोझ बढ़ाए बिना प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों टैक्सों में रु 2 लाख करोड़ की वार्षिक छूट दी गई है।

आवास के लिए मध्यम वर्ग को मिलने वाली सब्सिडी को उदार बनाया गया है। हमारी सरकार के पांच साल के कार्यकाल के दौरान मुद्रास्फीति को 3-4% पर बनी रही, जो यूपीए—2 में 10.4% थी। सरकारी कर्मचारियों को सातवें वेतन आयोग के त्वरित कार्यान्वयन से लाभ हुआ है, सैनिकों को ओआरओपी के कार्यान्वयन से लाभ हुआ है, पेंशनधारियों को नई पेंशन योजना से लाभ हुआ है। सरकार के योगदान को 10% से बढ़ाकर 14% किया जा रहा है, वहीं सेवा निवृत्ति पर मिलने वाली 60% राशि पर भी रियायत दी जा रही है।

यह सभी उपाय गरीबों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने का एक तरीका है। उनकी क्रय शक्ति में सुधार हुआ है। यह तरीका व्यापारियों के लिए भी मददगार साबित होता है, जो अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। हमारा पांच वर्ष का कार्यकाल किसी भी सरकार का पहला कार्यकाल है, जिसमें भारत लगातार दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हुआ है। यह वास्तव में हर भारतीय – गरीब, नव-मध्यम वर्ग, मध्य वर्ग और निश्चित रूप से बड़े व्यापारिक समुदाय की मदद करता है।

(लेखक केंद्रीय वित्त मंत्री है)