सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के बढ़ते कदम

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थावरचंद गहलोत

वर्ष 2017-18 की तुलना में वर्ष 2018-19 में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के बजट में 12.19% की वृद्धि हुई है। वर्ष 2017-18 में 6908.00 करोड़ रुपये का बजट था, जो बढ़कर वर्ष 2018-19 में 7750.00 करोड़ रुपये हो गया। यह 842.00 करोड़ रुपये की वृद्धि है यानी बजट में 12.19% की वृद्धि हुई है।

धीमी प्रगति को ध्यान में रखते हुए 18 राज्यों के 170 चिन्हित जिलों में सिर पर मैला ढोने पर राष्ट्रीय सर्वेक्षण किया गया है। एनएसकेएफडीसी द्वारा राज्य सरकार और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों के सहयोग से सर्वे का समन्वय और निगरानी किया जा रहा है। 125 जिलों में सर्वेक्षण शिविर पूरा हो चुके हैं और अब तक 5365 लोगों को सिर पर मैला ढोने वाले के रूप में पहचान की गई है।

मंत्रालय प्रत्यक्ष लाभ अंतरण रूप में 25 योजनाएं लागू कर रहा है। 2016-17 और 2017-18 के दौरान कार्यान्वयन एजेंसियों द्वारा क्रमशः 1.45 और 1.66 करोड़ रुपये लाभार्थियों को सहायता/लाभ प्रत्यक्ष लाभ अंतरण रूप में जारी किए गए थे। लाभार्थी डेटाबेस में आधार जुड़ाव 66% तक पहुंच गया है। अनुसूचित जातियों के कल्याण के लिए आवंटन में 2015-16 के 30850.88 करोड़ रुपये से वृद्धि करके 56618.50 करोड़ रुपये किया गया। यह 83.52% की वृद्धि है।

अनुसूचित जाति के छात्रों (पीएमएस-एससी) को पोस्ट-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना में प्रति वर्ष लगभग 60 लाख छात्रों को शामिल किया जाता है। 2014 से 2018 के बीच, 2,29,30,654 छात्रों ने पीएमएस-एससी छात्रवृत्ति का लाभ उठाया है और 10,388 करोड़ रुपये की राशि का उपयोग किया गया है। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राज्यों/संघ शासित प्रदेशों के लिए पीएमएस-एससी में 8737 करोड़ रुपये की एकत्रित बकाया राशि को मंजूरी दे दी है। वर्ष 2018-2019 में इस उद्देश्य के लिए 3000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं। 9वीं और 10वीं कक्षा में पढ़ने वाले अनुसूचित जाति के विद्यार्थियों के लिए मैट्रिक-पूर्व छात्रवृत्ति की दर तथा स्वच्छता के कार्य में शामिल लोगों के बच्चों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति 2017-18 से 50 प्रतिशत बढ़ा दी गई है।

अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप योजना के तहत अप्रैल, 2014 से मार्च 2018 के बीच 8000 मेधावी छात्रों को 770.80 करोड़ रुपये की फेलोशिप दी गई। 2018-19 में 2000 छात्रों को एमफिल/पीएचडी के लिए फेलोशिप मिलेगी। सभी मेरिट आधारित छात्रवृत्ति योजनाओं का लाभ लेने के लिए माता-पिता की आय सीमा को वर्ष 2017-18 से बढ़ाकर वार्षिक 6 लाख रुपये कर दिया गया है।

अंतरजाति विवाह जिसमें युगल में से एक अनुसूचित जाति का हो, के लिए वर्ष 2017-18 से ढाई लाख रुपये की केन्द्र प्रायोजित योजना के तहत मदद दी जा रही है। इस योजना के तहत जो राशि प्रदान की जाती है, वह संयुक्त खाते में किसी सरकारी/राष्ट्रीयकृत बैंक में तीन वर्ष के लिए सवाधि जमा खाते में रखी जाती है, जोकि तीन वर्ष से पहले नहीं निकाली जा सकती।

केन्द्र सरकार की ‘प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना’ को अनुसूचित जाति के एकीकृत विकास के लिए मद्देनजर रखते हुए 50 फीसदी से अधिक अनुसूचित जाति की संख्या वाले गांवों में लागू किया जा रहा है। इस योजना के तहत ऐसे 2500 गांवों को कवर किया गया है, जहां अनुसूचित जाति के लोगों की संख्या अधिक है। वर्ष 2017-18 से लेकर 2019-20 के लिए 300 करोड़ रुपये का अनुदान ‘प्रधानमंत्री आदर्श ग्राम योजना’ के लिए आवंटित किया गया है।
वर्ष 2014-15 में अनुसूचित जातियों के लिए ‘वेंचर कैपिटल फंड’ की शुरुआत की गई थी, जिसके तहत अब तक अनुसूचित जाति के 71 उद्यमियों को 255 करोड़ रुपये आवंटित किए गए। अन्य पिछड़ा वर्ग के कल्याण के लिए वर्ष 2018-19 में आवंटित राशि में 41.03 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। वर्ष 2017-18 में जहां इस वर्ग को 1237.30 करोड़ रुपये जारी किये गये थे, वहीं वर्ष 2018-19 में 1747 करोड़ रुपये आवंटित किए गए। अनुसूचित जाति की तरह अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए भी ‘वेंचर कैपिटल फंड’ शुरुआती 200 करोड़ रुपये के कोष के साथ शुरू किया जा रहा है। गैर-क्रीमीलेयर की आय सीमा को 01.09.2017 से बढ़ाकर आठ लाख रुपये कर दिया गया है। अन्य पिछड़ा वर्ग की उपश्रेणियों की जांच के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) जी. रोहिणी की अध्यक्षता में 02.10.2017 को आयोग का गठन किया गया, जिसने 11.11.2017 से काम करना शुरू कर दिया।

मद्यपान और मादक पदार्थ से बचाव के लिए योजना के तहत नशा मुक्त केन्द्रों के लिए मंत्रालय ने 01.04.2018 से लागत राशि में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर दी है। नशा मुक्त केन्द्रों में रसोइया और पूर्णकालिक चिकित्सक के अलावा एक चौकीदार की भी व्यवस्था की गई है। वरिष्ठ नागरिकों के लिए एकीकृत कार्यक्रम योजना के तहत लागत मानकों को 01.04.2015 को 110 फीसदी बढ़ाया गया था, जिसे आगे 01.04.2018 को फिर से 104 फीसदी बढ़ाया गया। योजना के तहत फिजियोथेरेपिस्ट परिचारक/परिचारिका और योग प्रशिक्षक की सेवाएं प्रदान की जा रही हैं। साथ ही घरों के पंजीयन, मानकीकरण और रेटिंग के लिए प्रावधान तैयार किए गए हैं। श्री गहलोत ने बताया कि लागत मानदंडों में अंतिम बार संशोधन 01.04.2015 को किया गया था।

राष्ट्रीय वयोश्री योजना के तहत, कुल 292 जिलों का चयन किया गया है, 52 जिलों में मूल्यांकन शिविर और 39 जिलों में वितरण शिविर आयोजित किए जा चुके है, जिनके माध्यम से 43865 वरिष्ठ नागरिक लाभान्वित हुए हैं। बीपीएल श्रेणियों के वरिष्ठ नागरिकों को कुल 99431 उपकरण प्रदान किए गए। पहली बार नशीली दवाओं के दुरुपयोग से होने वाले पीड़ितों की पहचान करने के लिए राष्ट्रीय सर्वेक्षण किया गया। सर्वेक्षण में 185 जिलों के 1.5 लाख परिवार और 6 लाख लोगों को शामिल किया गया। सर्वेक्षण अभी चालू है और जल्द ही इसके पूरा होने की उम्मीद है।

दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (डीईपीडब्ल्यूडी) का उद्देश्य दिव्यांगों को सशक्त बनाना है। इसमें विभिन्न प्रकार के दिव्यांगजों को सहायता और उपकरण प्रदान करना; भवन, परिवहन और वेबसाइटों के मामले में बाधा मुक्त माहौल तैयार करना; शुरुआती उपाय, स्कूली शिक्षा, एनजीओ के माध्यम से बच्चों के व्यावसायिक प्रशिक्षण; स्कूलों, कॉलेजों में छात्रवृत्ति, पेशेवर शिक्षा और कौशल विकास के प्रति सहायता प्रदान करने पर जोर दिया जा रहा है।
1995 के पुराने कानून को निरस्त कर 2016 में नया कानून लाया गया जिसका नाम ‘दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016’ है। यह कानून समानता के अधिकार, भेदभाव रहित, सामुदायिक जीवन का अधिकार, न्याय तक पहुंच, शिक्षा, रोजगार इत्यादि की गारंटी देता है। अभी तक 21 प्रकार के दिव्यांगता की पहचान की गई है, जो पहले केवल 7 प्रकार की थीं।

2014 से अभी तक एडीआईपी योजना के तहत 622.45 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं, जिससे देश भर में 6459 शिविरों के माध्यम से 9.97 लाख लाभार्थियों को लाभ पहुंचा। 172 अस्पतालों को कर्णावर्त तंत्रिका प्रत्यारोपण सर्जरी के लिए सूचीबद्ध किया गया है और अभी तक 1142 कर्णावर्त तंत्रिका प्रत्यारोपण सर्जरी की जा चुकी हैं। दिव्यांगों के लिए मोटर चालित तिपहिया साइकिल की पात्रता उम्र 18 साल से घटाकर 16 वर्ष कर दी गई है। पिछले 4 वर्षों में, 80% से अधिक दिव्यांगजनों को 5693 मोटर चालित तिपहिया साइकिल दी गई। वर्ष 2013-14 में 95.36 करोड़ रुपये के बजट को बढ़ाकर 2018-19 के लिए दोगुने से ज्यादा 220 करोड़ कर दिया गया है।

सुगम्य भारत अभियान एक लक्षित कार्यक्रम है और यह सार्वजनिक भवनों, परिवहन, सड़क और वेबसाइटों को सुगम्य बनाने के लिए राज्य सरकारों को पैसा प्रदान करता है। 1662 इमारतों का ऑडिट किया गया है, 613 भवनों के लिए 160.3 लाख रुपये जारी किए गए हैं। सभी 34 अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डों को सुगम्य कर दिया गया है, 48 घरेलू हवाई अड्डों को सुगम्य बनाया गया है। 709 ए और बी श्रेणी के रेलवे स्टेशनों में से 667 स्टेशनों को सुगम्य बनाया गया है, 13613 बसों को सुगम्य बनाया गया है। राज्यों की 917 वेबसाइटों में से 205 वेबसाइटों को सुगम्य बनाया गया है।

(गत 26 जून को केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री श्री थावरचंद गहलोत द्वारा प्रेस कॉन्फ्रेंस में प्रस्तुत विचार पर आधारित)