अरुण जेटली
कांग्रेस पार्टी को कुछ ज्यादा ही शिकायतें हैं। वह भारतीय जनता पार्टी पर गोवा में जनादेश की अनदेखी करने का आरोप लगा रही है। कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर प्रक्रिया को बाधित करने का असफल प्रयास भी किया है। उसने लोकसभा में मुद्दा उठाने की भी कोशिश की है, लेकिन तथ्य क्या हैं?
गोवा में संपन्न हुए विधानसभा चुनाव अनिर्णायक रहे। चुनाव में किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला। जाहिर है ऐसी स्थिति में चुनाव के बाद सरकार बनाने के लिए गठबंधन के प्रयास होंगे।
बीजेपी ने गठबंधन के जरिए स्पष्ट बहुमत के आंकड़े को छुआ और 40 सदस्यीय विधानसभा में 21 विधायकों का समर्थन हासिल किया। सभी विधायकों ने राज्यपाल से मिलकर समर्थन पत्र सौंपा। कांग्रेस ने राज्यपाल के सामने सरकार बनाने का दावा भी पेश नहीं किया। उसके पास सिर्फ 17 विधायक ही हैं। कांग्रेस ने राज्यपाल के इस फैसले के खिलाफ प्रदर्शन किया कि उन्होंने श्री मनोहर पर्रिकर को 40 में से 21 विधायकों का समर्थन हासिल होने पर सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया। कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र की हत्या करार दिया।
श्री मनोहर पर्रिकर के नेतृत्व में 21 विधायकों के समर्थन की स्थिति में राज्यपाल 17 विधायकों के अल्पमत वाले दल को सरकार बनाने के लिए नहीं बुला सकते थे। राज्यपाल के इस फैसले को सही ठहराने के कई पूर्व आधार हैं। वर्ष 2005 में बीजेपी ने झारखंड की 81 में से 30 सीटें जीतीं। जेएमएम नेता श्री शिबू सोरेन जिनके पास उनके दल के 17 विधायक और अन्य विधायकों का समर्थन था, उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया। जम्मू कश्मीर में 2002 में नेशनल कांफ्रेंस के 28 विधायक जीते, लेकिन राज्यपाल ने पीडीपी और कांग्रेस के 15 और 21 विधायकों वाले गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया।
दिल्ली में 2013 में बीजेपी ने 31 सीटें जीतीं, लेकिन 28 विधायकों वाली आप पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया गया।
इस तरह के अन्य मामलों में 1952 में मद्रास, 1967 में राजस्थान और 1982 में हरियाणा में सरकार बनाने के लिए की गई प्रक्रिया भी शामिल है। अस्पष्ट बहुमत वाला सबसे बड़ा दल बनाम स्पष्ट बहुमत वाले गठबंधन की बहस में पूर्व राष्ट्रपति के आर नारायणन ने मार्च 1988 में अपने परिपत्र में इसका जवाब दिया था। जब उन्होंने 1998 में श्री अटल बिहारी वाजपेयी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था।
पूर्व राष्ट्रपति ने स्पष्ट किया था ‘‘जब कोई भी दल और चुनाव पूर्ण बना गठबंधन स्पष्ट बहुमत हासिल न कर पाया हो, तब राष्ट्र प्रमुख चाहे वो भारत के रहे हों या अन्य देशों के, पहली प्राथमिकता सबसे ज्यादा सीटें जीतने वाले दल या सबसे ज्यादा सीटों वाले गठबंधन को देते रहे हैं। प्रधानमंत्री को निर्धारित समय के अंदर सदन में अपना बहुमत साबित करना होता है। हालांकि यह प्रक्रिया हमेशा काम करने वाला फॉर्मूला नहीं हो सकती, क्योंकि ऐसी स्थिति आ सकती है जब ऐसे सांसद जो सबसे बड़े दल या गठबंधन में शामिल न हों, मिलकर सबसे बड़े दावेदार से संख्या में अधिक हों। राष्ट्रपति का प्रधानमंत्री के चयन का आधार प्रधानमंत्री के बहुमत हासिल होने के दावे पर निर्भर होता है।’’
गोवा के राज्यपाल के पास 40 में से 21 विधायकों के समर्थन का श्री मनोहर पर्रिकर की ओर से ही सिर्फ एक दावा प्रस्तुत किया गया। 17 विधायकों वाली कांग्रेस ने न अपना नेता चुना और न ही सरकार बनाने का दावा पेश किया। कांग्रेस को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित कैसे किया जा सकता था?
(लेखक केंद्रीय वित्त एवं रक्षा मंत्री हैं)