मनरेगा को अब तक का सर्वाधिक 61,084 करोड़ रुपया दिया गया

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                                   परिसंपत्ति निर्माण, स्थायी आजीविका और गरीबों को रोजगार मिला

 

भाजपानीत केंद्र की राजग सरकार द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून (मनरेगा) के िलए 6,084 करोड़ रुपये के अतिरिक्त आवंटन के साथ कुल आवंटन 2018-19 में 61,084 करोड़ रुपया किया गया, जो अब तक का सबसे अधिक है। दरअसल, शासन में सुधार और स्थायी परिसंपत्तियों के माध्यम से चिरस्थायी आजीविका पर जोर देकर मजदूरी, आय और स्थायी परिसंपत्तियों के माध्यम से गरीबों के लिए बेहतर जीवन सुनिश्चित किया गया।
गौरतलब है कि ‘मनरेगा’ ग्रामीण विकास मंत्रालय का एक प्रमुख कार्यक्रम है जो कि सामाजिक विषमताओं पर काबू पाने और सतत और दीर्घकालिक विकास के लिए एक आधार तैयार करके पूर्ण रूप से गरीबी को खत्म करता है। ‘मनरेगा’ ग्रामीण भारत को अधिक उत्पादक, न्यायसंगत और संयुक्त समाज में बदल रहा है। इसने पिछले तीन वर्षों में प्रत्येक वर्ष लगभग 235 करोड़ मानव दिवस कार्य प्रदान किया है।

इस वर्ष भी यह लगभग समान रहेगा, जिससे चिरस्थायी आजीविका के लिए स्थायी परिसंपत्तियों के साथ वेतन रोजगार के मामले में यह लगातार चार वर्ष तक उच्च प्रदर्शन कायम रख सकेगा।

पिछले 4 वर्षों में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा में बड़े सुधार किए, हैं जिससे कि इसे गरीबों के लिए चिरस्थायी आजीविका प्रदान करने वाला संसाधन के रूप में परिवर्तित किया जा सके। 2014-15 में केवल 26.85 प्रतिशत मामलों में ही 15 दिनों के अंदर भुगतान किया गया था और उस वर्ष में मुश्किल से 29.44 लाख परिसंपत्तियां ही पूरी की गई थी। इन अंतरों को खत्म करने के लिए राज्यों से साझेदारी करके एक राष्ट्रव्यापी अभ्यास शुरू किया गया। अब इस निरंतर प्रयास के उल्लेखनीय परिणाम दिखने लगे हैं। 2014-15 और 2017-18/ 2018-19 के दौरान मनरेगा की उपलब्धियां निम्न हैं :

 

.                                                                             वित्तीय वर्ष   2014-15                   वित्तीय वर्ष 2017-18/वित्तीय वर्ष 2018-19

.अब तक उत्पन्न किए गए मानव दिवस                      166.21 करोड़                            236.41 करोड़

.पूर्ण किए गए कार्यों की संख्या                                     29.44 लाख                             61.9 लाख

.व्यक्तिगत लाभार्थी योजनाएं                                        21.4%                                      66.7%*

.धन की कुल उपलब्धता                                           37,588.03 करोड़ रुपये               68,107.86 करोड़ रुपये

.ईएफएमएस के माध्यम से कुल व्यय                        77.35%                                         99.6%*

.15 दिनों के भीतर किया गया भुगतान                        26.85%                                       91.82%*

  .                                                                                                                    *वित्तीय वर्ष 2018-19 के आंकड़े

 

सबसे पहली और महत्वपूर्ण आवश्यकता वेतन भुगतान, परिसंपत्ति निर्माण और सामग्रियों के लिए भुगतान में पूर्ण पारदर्शिता को सुनिश्चित करना था। इस कारण से ही संपत्ति की 100 प्रतिशत जियो-टैगिंग, बैंक खातों को आधार से जोड़ना, सभी प्रकार के वेतनों और सामग्री हेतु भुगतानों के लिए आईटी/डीबीटी स्थानान्तरण और भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) आधारित कार्य योजना शुरू किए गए। इनका उद्देश्य यह था कि सार्वजनिक डोमेन में काम दिखाई दे और लाभार्थियों को उनके सत्यापित खातों में भुगतान प्राप्त हो सके।

08.01.19 तक जियो मनरेगा को 31 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में लागू किया जा चुका है और कार्यक्रम की स्थापना के बाद से 4.08 करोड़ पूर्ण कार्यों में से 3.40 करोड़ पूर्ण कार्य को जियो-टैग किया जा चुका है और यह सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध है।

सामाजिक परीक्षण बहुत ही सीमित रूप में था और इसके कार्यान्वयन को बढ़ाकर पूरे देश में फैलाने की आवश्यकता थी। सामाजिक परीक्षण मानकों को विकसित किया जाना था, प्रमाणित सोशल ऑडिटर्स को प्रशिक्षित किया जाना था और महिलाओं के स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) के सदस्यों को तेजी से रोल आउट को करने के लिए तैयार किया जाना था।

तकनीकी रूप में जल संरक्षण कार्यों पर पैसा खर्च किया जा रहा था, जबकि कर्मचारियों का तकनीकी प्रशिक्षण अपर्याप्त था और कई बार ऐसी संरचनाएं बनायी गई जिसने अपेक्षित परिणाम नहीं दिया। इस कारण से ही 2015-16 में जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय और भूमि संसाधन विभाग के साथ साझेदारी में मिशन जल संरक्षण दिशानिर्देश तैयार किया गया, जिससे भूजल स्तर पर ध्यान केंद्रित किया जा सके जो कि तेजी से गिर रहा था।

इस साझेदारी से हमें एक मजबूत तकनीकी नियमावली का निर्माण करने और अग्रिम पंक्ति के श्रमिकों के लिए क्षमता विकास कार्यक्रम को लागू करने के लिए केंद्रीय भूजल बोर्ड के इंजीनियरों और वैज्ञानिकों के तकनीकी ज्ञान का लाभ उठाने की अनुमति मिली। बेहतर तकनीकी प्रबंधन सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष बेयरफुट तकनीशियनों के कार्यक्रम को शुरू किया गया।

केंद्र सरकार द्वारा इस कार्यक्रम के लिए बजट आवंटन में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है, इस कार्यक्रम के लिए वित्तीय वर्ष 2014-15 में 32,977 करोड़ रुपये के मुकाबले वित्तीय वर्ष 2017-18 में 55,167 करोड़ रुपये का आवंटन प्रदान किया गया। इस कार्यक्रम में लोगों की बढ़ती आस्था का यह स्पष्ट प्रमाण है। इस कार्यक्रम की शुरुआत होने के बाद से मनरेगा ने 2017-18 में अब तक का सबसे ज्यादा 63,644 करोड़ रुपये का रिकॉर्ड व्यय हुआ है। इस वर्ष यह व्यय और भी अधिक होने वाला है।

स्थायी परिसंपत्तियों के निर्माण का मुद्दा बहुत महत्वपूर्ण था। ग्राम पंचायत स्तर पर 60:40 अनुपात अनिवार्य था, जिसके कारण अधिकांशत: रूप से गैर-उत्पादक परिसंपत्तियों का निर्माण सिर्फ इसलिए किया जाता था, क्योंकि उस ग्राम पंचायत में अकुशल मजदूरी पर 60 प्रतिशत खर्च किया जा सके। 60:40 अनुपात के सिद्धांत को कमजोर किए बिना, इसे ग्राम पंचायत स्तर के स्थान पर जिला स्तर पर 60:40 अनुपात की अनुमति देकर पहला बड़ा सुधार किया गया। इस सुधार के बावजूद अकुशल मजदूरी पर व्यय,कुल व्यय के अनुपात में 65 प्रतिशत से अधिक है। इसने आय पैदा करने वाली स्थायी परिसंपत्ति पर एक नया जोर पैदा किया है। गौरतलब है कि यह लचीलापन केवल उन परिसंपत्तियों को ग्रहण करने की अनुमति देता है जो उपयोगी हैं।