पत्र-पत्रिकाओं से…

| Published on:

सुधारात्मक पहलें

घुवर दास के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार ने एक हजार दिन पूरे कर लिए हैं। पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ गठित इस सरकार ने निश्चित रूप से कई ऐसे काम किए जो राज्य के विकास में मील के पत्थर साबित होंगे। कई महत्वपूर्ण नीतियां लागू हुईं। इनमें से कुछ तो लंबे समय से लटकी हुई थीं। स्थानीय नीति लागू करना इनमें से एक है। इससे राज्य में नियुक्तियों के दरवाजे खुल गए। न केवल सरकारी विभागों व कार्यालयों के रिक्त पद भरे जाने लगे, बल्कि युवाओं को नौकरियां मिलनी शुरू हुईं। इस सरकार ने कई सुधारात्मक पहल भी किए। विकास दर के मामले में झारखंड देश में दूसरे नंबर पर पहुंचा, तो नक्सलियों पर भी अंकुश लगा।
— दैनिक जागरण (23 सितंबर)

ममता सरकार को झटका

लकत्ता हाईकोर्ट ने विजयादशमी पर प्रतिमा विसर्जन से जुड़े मामले में पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार के फैसले को पूरी तरह पलटते हुए उसे बड़ा झटका दिया है। इस बार 30 सितंबर को विजयादशमी और 1 अक्टूबर को मोहर्रम पड़ रहा है। कानून-व्यवस्था पर संभावित खतरे की बात कहते हुए सरकार ने 30 सितंबर यानी दशमी को रात 10 बजे के बाद और एक अक्टूबर को पूरी तरह प्रतिमा विसर्जन पर रोक लगा दी थी। सरकार के इसी फैसले के खिलाफ दायर तीन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने मोहर्रम समेत हर दिन दोपहर 12 बजे तक प्रतिमा विसर्जन की इजाजत तो दी ही, साथ में सरकार को कड़ी फटकार भी लगाई। कोर्ट ने साफ तौर पर कहा कि सरकार के पास अधिकार है, इसका मतलब यह नहीं कि वह अधिकारों का बेजा इस्तेमाल कर सकती है। बिना किसी ठोस वजह के नागरिकों के अधिकार नहीं छीने जा सकते।
—नवभारत टाइम्स (23 सितंबर)

स्वस्थ भारत – सबल भारत

मृत स्टोर–कैंसर और हृदयवाहिनी बीमारियों की किफायती दवाइयां और इम्पलांट्स को बाजार मूल्य से 60 से 90 प्रतिशत कम कीमत पर उपलब्ध कराते हैं। अब तक 83 स्टोर खोले गए। इसके परिणामस्वरूप अब तक लाभान्वित रोगियों की कुल संख्या 17.97 लाख। 58 करोड़ रुपये से अधिक लागत की दवाओं और इम्पलांट को 23 करोड़ रुपये से कम राशि में बेचा गया। अब तक रोगियों को प्रदत्त कुल अधिकतम रिटेल मूल्य : 75.23 करोड़ रुपए। अब तक रोगियों को हुई कुल बचत : 103.55 करोड़ रुपए।
— पीआइबी

सफल ‘मन की बात’

न की बात कार्यक्रम को उल्लेखनीय सफलता मिली है। लाखों लोग प्रधानमंत्री की बात सुनते हैं और उन तक अपनी बात पहुंचाते हैं। पिछले तीन वर्षों में जिस तरह प्रधानमंत्री को आम लोगों ने करीब डेढ़ लाख चिट्ठियां भेजीं और छह लाख लोगों ने फोन किए। उससे यदि कुछ स्पष्ट होता है तो यही कि आम जनता संवाद की इस शैली की महत्ता को समझ चुकी है। आज यदि साफ-सफाई को लेकर लोगों में जागरूकता और सतर्कता बढ़ी है तो इसके पीछे मन की बात कार्यक्रम ही है। इसी तरह इस कार्यक्रम ने अन्य सामाजिक समस्याओं के मामले में भी जनता को सचेत करने का काम किया है।
— दैनिक जागरण (25 सितंबर)