राफेल सौदे में नहीं मिला अनियमितता का कोई सबूत : उच्चतम न्यायालय

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                                         निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह करने का कोई कारण नहीं

उच्चतम न्यायालय ने फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमानों की खरीदी के मामले में कथित अनियमितताओं के लिए सीबीआई को प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश देने का अनुरोध करने वाली सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया।

प्रधान न्यायाधीश श्री रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति श्री संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति श्री केएम जोसेफ की पीठ ने 14 दिसंबर को कहा कि अरबों डॉलर कीमत के राफेल सौदे में निर्णय लेने की प्रक्रिया पर संदेह करने का कोई कारण नहीं है। ऑफसेट साझेदार के मामले पर तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि किसी भी निजी फर्म को व्यावसायिक लाभ पहुंचाने का कोई ठोस सबूत नहीं मिला है।

अदालत की निगरानी में राफेल सौदे की जांच कराने की मांग करने वाली विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने यह फैसला सुनाया। शीर्ष अदालत ने इन याचिकाओं पर 14 नवंबर को सुनवाई पूरी की थी।

राफेल लड़ाकू विमान के सौदे में अनियमितताओं का आरोप लगाते हुये इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने का सीबीआई को निर्देश देने और न्यायालय की निगरानी में इसकी जांच के अनुरोध के साथ ये याचिकायें दायर की गयी थीं।

शीर्ष अदालत ने कहा कि लड़ाकू विमानों की जरूरत है और देश इन विमानों के बगैर नहीं रह सकता है। तीन सदस्यीय पीठ की तरफ से फैसला पढ़ते हुए प्रधान न्यायाधीश श्री गोगोई ने कहा कि लड़ाकू विमानों की खरीद की प्रक्रिया में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं है।

पीठ ने कहा कि खरीदी, कीमत और ऑफसेट साझेदार के मामले में हस्तक्षेप के लिए उसके पास कोई ठोस साक्ष्य नहीं है। न्यायालय ने रेखांकित किया कि भारतीय वायुसेना को चौथी और पांचवीं पीढ़ी के लड़ाकू विमानों की जरूरत है।

पीठ ने कहा कि दोनों पक्षों ने राफेल लड़ाकू विमान सौदे की खरीद से जुड़े सभी पहलुओं पर स्पष्टीकरण दिया है। न्यायालय ने कहा कि सितंबर 2016 में राफेल सौदे को जब अंतिम रूप दिया जा रहा था, उस वक्त किसी ने इसकी खरीद पर सवाल नहीं उठाया।

उन्होंने कहा कि राफेल सौदे पर सवाल उस वक्त उठे जब फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद ने बयान दिया, यह न्यायिक समीक्षा का आधार नहीं हो सकता है। न्यायालय ने कहा कि वह सरकार को 126 या 36 विमान खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है।