दक्षिणपंथ व वामपंथ के आधार पर दलों का विभाजन अनुचित

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दीनदयाल उपाध्याय

विभिन्न राजनीतिक दलों के घोषणा-पत्रों का विवेचन करने से पूर्व उचित होगा कि उनके आधारभूत आदर्शों एवं मान्यताओं पर विचार कर लिया जाए। इससे हमें उनके घोषणा-पत्रों में दिए गए विषय को समझने में भी आसानी होगी और हम उनके कार्यक्रम और वायदों का मूल्यांकन भी उचित ढंग से कर सकेंगे। परंतु जैसे एक गणितज्ञ की दृष्टि में शून्य का अर्थ साधारण अर्थ से भिन्न हुआ करता है, उसी तरह विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा प्रयुक्त एक समान शब्द के भी अलग-अलग अर्थ होते हैं। इसी भांति आनुसंगिक बातों की जानकारी भी हमें विभिन्न राजनीतिक दलों के पुराने कार्यकलापों आदि के द्वारा प्राप्त हो सकती है, क्योंकि दलों के घोषणा-पत्रों में विस्तार से कुछ भी नहीं दिया रहता।

भ्रामक वर्गीकरण

पश्चिमी देशों में राजनीतिक दलों का वर्गीकरण दक्षिणपंथी और वामपंथी कहकर किया जाता है। भारतवर्ष में भी भिन्न-भिन्न राजनीतिक दलों के लिए इसी शब्दावली का प्रयोग कर उनकी विशेषताएं और उद्देश्य बताए जाते हैं, किंतु इस देश की राजनीति का सही चित्रण इस शब्दावली द्वारा असंभव है। हमारे यह कहने का कारण यही है कि इस देश में उग्र दक्षिणपंथी या उग्र वामपंथी दलों के अतिरिक्त ऐसे दल भी हैं, जिनके न केवल मिले-जुले सिद्धांत हैं बल्कि उनके द्वारा स्वीकार किए गए कार्यक्रम भी इस प्रकार के हैं, जो इस रूढ़िवादी विभाजन को गलत सिद्ध कर देते हैं।

कांग्रेस को एक वामपंथी संस्था कहा जाता है, क्योंकि यह देश में समाजवादी ढांचे के आधार पर देश की रचना करना चाहती है। परंतु यह जिनका समर्थन करती है और जहां से जीवन पाती है, वह निहित स्वार्थ वाला वर्ग तो इसे एक अनुदार दल बना देता है। इसी भांति जनसंघ को दक्षिणपंथी कहा जा सकता है, क्योंकि वह काल्पनिक समाजवाद में विश्वास नहीं करता। फिर भी उसका कार्यक्रम और ढांचा इतना सुधारवादी है, जो उसे इस देश की अन्यान्य सुधारवादी संस्थाओं से मौलिक रूप से पृथक कर देता है।

विदेशों का अंधानुकरण

यदि हम इस पाश्चात्य वर्गीकरण को अस्वीकृत कर दें तो भारतवर्ष के राजनीतिक दलों का विश्लेषण उनके प्रेरणास्रोत के आधार पर किया जा सकता है और यह कहा जा सकता है कि देश के अधिकांश राजनीतिक दल भारत की राजनीति को विदेशी ढांचे के आधार अथवा कल्पनाओं एवं मान्यताओं के सहारे ही चलाना चाहते हैं। अपने देश के कांग्रेस, स्वतंत्र, प्र.स., समाजवादी और कम्युनिस्ट दल इसी श्रेणी के अंतर्गत आते हैं।

कम्युनिस्ट रूस के पिछलग्गू

इन राजनीतिक दलों में पारस्परिक कितनी भी भिन्नता क्यों न हो, पर वे सभी देश की राजनीति राज्यशास्त्र के विदेशी सिद्धांतों के आधार पर ही चलाना चाहते हैं। इसीलिए इस देश के मौलिक राजदर्शन को अपनाना तो दूर उसके विषय में सोचने तक को वे तत्पर नहीं हैं। यदि कुछ दल सोचते भी हैं तो वे पश्चिमी दर्शन और आदर्शों को भारतीय संस्कृति में मिलाकर एक खिचड़ी तैयार कर देना चाहते हैं। इसीलिए भारत की राजनीतिक परिस्थिति का विश्लेषण करते समय वे नि:संकोच पाश्चात्य मापदंडों का सहारा ले बैठते हैं। जहां तक कम्युनिस्टों का प्रश्न है, वह विशुद्ध मार्क्सवादी दर्शन को, जैसाकि रूस में उसका विकास होपाया है, अक्षरशः स्वीकार कर डालना चाहते हैं।

त्रिशंकु की अवस्था

कांग्रेस, प्र.स. और समाजवादी ऐसे दल हैं, जो राष्ट्रीय वफादारी और समाजवादी आदर्शों के बीच त्रिशंकु के समान लटके रहते हैं। वे प्रजातांत्रिक व्यवस्था को भी छोड़ना नहीं चाहते और किसी प्रकार लोकतंत्र और समाजवाद को मिला देना चाहते हैं। इसके विपरीत स्वतंत्र पार्टी समाजवाद की विरोधी है। किंतु उसकी दृष्टि में हेय पूंजीवाद के अतिरिक्त समाजवाद का स्थान दूसरा कोई राजदर्शन नहीं ले सकता।

जनसंघ और रामराज्य परिषद्

दूसरी ओर ऐसे राजनीतिक दल भी हैं, जो पाश्चात्य आदर्शों और जीवन-प्रणाली का अंधानुकरण करने को तत्पर नहीं हैं तथा भारतीय संस्कृति एवं भारतीय जीवन के शाश्वत सिद्धांतों से प्रेरणा ग्रहण करते हैं। इन दोनों में रामराज्य परिषद् अधिक रूढ़िवादी है और वह किसी भी प्रकार के सामाजिक और आर्थिक सुधारों के विरुद्ध है। इसके विपरीत जनसंघ स्वामी दयानंद और लोकमान्य तिलक के मार्ग पर चलते हुए न केवल सामाजिक सुधार करना चाहता है वरन् उन्हें आर्थिक क्षेत्र में भी लागू करने का इच्छुक है।

सुधारवादी और रूढ़िवादी

इस प्रकार दूसरे ढंग से किए गए वर्गीकरण की दृष्टि से इनमें एक को अपरिवर्तनवादी या रूढिवादी और दूसरे को परिवर्तनवादी या सुधारवादी कहा जा सकता है। रामराज्य परिषद् और स्वतंत्र रूढ़िवादी श्रेणी के अंतर्गत आते हैं और वे गत चौदह वर्षों में हुए परिवर्तन को उलटकर पूर्ववर्ती ढांचा कायम करने की इच्छा रखते हैं। उनके अनुसार आज जो ढांचा बना हुआ है अथवा अंग्रेजों के काल में था, वह श्रेष्ठ है और इसलिए उसे बनाए रखना चाहिए। वे उसे पवित्र समझते हैं, यद्यपि दोनों के दृष्टिकोण भिन्न-भिन्न हैं। रामराज्य परिषद् उसे हिंदुत्व का प्रतिरूप समझती है तो स्वतंत्र पार्टी उदारवादी दृष्टिकोण के नाम पर उसे बनाए रखते हुए अपनी रूढ़िवादिता का परिचय देती है।

अन्य दलों की वर्तमान स्थिति

अन्य दल वर्तमान स्थिति से संतुष्ट नहीं हैं। वे समाज की आर्थिक व्यवस्था और अन्य संस्थानों में परिवर्तन इसलिए आवश्यक समझते हैं, क्योंकि न तो वे आदर्श रूप हैं और न ही वे समाज की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम हैं। परंतु समाजवादी अथवा साम्यवादी समाजवाद के उपासक पाश्चात्य विद्वानों द्वारा प्रतिपादित आदर्शों की नकल करने को इच्छुक हैं, जबकि जनसंघ उसकी दिशा अपने पूर्वजों द्वारा प्रतिपादित संपूर्ण मानव जाति के लिए सब कालों के लिए उपयुक्त सिद्धांतों और आदर्शों की ओर मोड़ देना चाहता है।

निश्चय करें

इसलिए यदि आप ‘यथास्थिति’ के समर्थक हैं तो स्वतंत्र पार्टी को अपना मत दें और यदि आप पाश्चात्य ढांचे पर राष्ट्र को ढालना चाहते हों तो किसी भी एक समाजवादी को चुन लें; किंतु यदि आप देश की प्राचीन संस्कृति के आधार पर राष्ट्र-जीवन का सुधार और परिष्कार करना चाहते हों तो जनसंघ में सम्मिलित हो जाएं।

-पाञ्चजन्य, फरवरी 12, 1962, संघ शिक्षा वर्ग, बौद्धिक वर्ग : लखनऊ