जनसंख्या वृद्धि: समस्या एवं समाधान

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शिवप्रकाश

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार विश्व जनसंख्या दिवस पर नई जनसंख्या नीति (2021 -2030) लेकर आई है। नीति के उद्देश्यों को घोषित करते हुए कहा है कि इस नीति से संसाधनों की आपूर्ति, जनसंख्या विस्फोट में रोकथाम, मूलभूत सुविधाओं रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य का जन सामान्य तक सहज वितरण, लिंग में समानता लाने में सुविधा होगी।
1968 में पॉल आर एहरिच ने अपने शोध पत्र ‘The Population Bomb’ में जनसंख्या विस्फोट को अनियंत्रित कैंसर के समान बताया है। अधिक जनसंख्या गरीबी, पर्यावरण में क्षरण एवं राजनीतिक अस्थिरता निर्माण करती है। साथ ही साथ बेरोजगारी एवं अपराधों में वृद्धि भी निर्माण करती है।
जनसंख्या नियंत्रण नीति के लागू करने के साथ ही कुछ लोगों के द्वारा विरोध का स्वर भी दिखाई देने लगा। कुछ लोगों ने नीति को विधि के विधान में व्यवधान भी बताया। हम सभी को ज्ञात है कि प्राकृतिक संसाधन एवं पर्यावरण जो मनुष्यों के जीवन को बचाने के लिए आवश्यक है वह भी विधि का विधान ही है। जल, जंगल,जमीन को नष्ट करने से मनुष्य भी नहीं बचेगा। बढ़ती जनसंख्या इन सभी को प्रभावित करती है। आवास के लिए कृषि योग्य भूमि का उपयोग भी धीरे-धीरे कृषि योग्य भूमि को कम कर रहा है।
बेतहाशा वृद्धि के कारण सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली सरकारी सुविधाए भी अपर्याप्त होती है। गत दिनों कोरोना महामारी के समय पर सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं पर्याप्त प्रयास करने के बाद भी अपर्याप्त ही थी। ऐसा नहीं है कि ये चुनौती केवल स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में ही उभरी है। ये चुनौतियां शिक्षा के क्षेत्र में भी हैं जिसकी वजह से विद्यार्थियों को शिक्षा के लिए प्रवेश में मारा-मारी से जूझना पड़ता है। बस और ट्रेन जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम पर बड़ी आबादी का कितना दबाव बढ़ गया है ये भी किसी से छिपा नहीं है। ये चुनौतियां तेजी से बढ़ती आबादी के मुकाबले बुनियादी ढाचे के विकास में भी हैं।
ऐसा नहीं है कि ज्यादा जनसंख्या से केवल उन्हीं चीजों पर बोझ बढ़ रहा है जो सरकार की तरफ से दी जानी हैं। प्राकृतिक संसाधनों की बात करें तो दाना, पानी, ईंधन की चुनौती भी लगातार देश के सामने बड़ी होती जा रही है और यही वजह है कि इन चीजों के दामों में बेतहाशा बढ़ोतरी जारी है। सामाजिक असमानता का दायरा भी देश में बढ़ता जा रहा है।
प्रत्येक पार्टी चुनाव घोषणा पत्र जारी करते समय रोजगार देने का वायदा करती है, लेकिन बेरोजगार को रोजगार देने में सफल नहीं हो पाती, कारण रोजगार सृजन सीमित है एवं बेरोजगारों की संख्या वृद्धि दोनों का समन्वय ही नहीं हो पाता। जब बेरोजगार व्यक्ति अपने जीविकोपार्जन का कोई साधन नहीं पाता तब उसमें से अनेक लोग अपने मार्ग से भटकते हैं एवं अपराध समूह उनका उपयोग करते है। जिससे अपराधों में वृद्धि होती है।
भारत में जनसंख्या विस्फोट की विकराल समस्या को समझने के लिए पहले आकंड़ों पर ध्यान देना होगा। जनगणना 2011 के मुताबिक भारत में जनसंख्या वृद्धि की दर 17.2 फीसदी रही है। इन्हीं आंकड़ों को अगर वार्षिक वृद्धि समझना है तो इसका जिक्र संयुक्त राष्ट्र की जनसंख्या रिपोर्ट में मिलता है। यूएन की रिपोर्ट के मुताबिक 2010 से लेकर 2019 के बीच भारत की आबादी की वृद्धि दर 1.2 से बढ़कर 1.36 हो गई है जो चीन के मुकाबले दोगुनी है। इस आंकड़े के मुताबिक 2020 में भारत की आबादी लगभग 138 करोड़ को छू चुकी है।
जनसंख्या नियंत्रण नीति को अनेक लोग आस्थाओं के साथ भी जोड़ कर देखते हैं और समर्थन एवं विरोध इसी आधार पर करते हैं। बढ़ती जनसंख्या का धार्मिक असुंतलन एक वर्ग के लोगों के मन में आशंका भी उत्पन्न करता है। घटनाओं पर संगठित प्रतिक्रिया एवं चुनाव में सामूहिक मतदान इस आशंका को और भी पुष्ट करते हैं। अनेक लोगों को यह भी आशंका है कि असंतुलित जनसंख्या वृद्धि राजनीतिक अस्थिरता एवं लोकतान्त्रिक व्यवस्था को पंगु बनाएगी।
हमें जनसंख्या नीति का समर्थन या विरोध लिंग, भाषा, क्षेत्र अथवा आस्था के आधार पर करने के बजाय समाज हित एवं भविष्य की चुनौतियों को आधार मानकर करना चाहिए। उत्तर प्रदेश सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण नीति में सहायक तत्वों को प्रोत्साहन एवं अनुपालन न करने वालों को हतोत्साहित करने की व्यवस्था की है। प्रोत्साहन एवं दंड की व्यवस्था के साथ साथ समाज में जन-जागरण का प्रयास भी करना होगा। समाज की जागरूक संस्थाओं एवं व्यक्तियों को इस दिशा में पहल करनी चाहिए|

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री हैं)