रामनाथ कोविंद देश के 14वें राष्ट्रपति

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भारतीय लोकतंत्र कितना मजबूत एवं परिपक्व है इसका एक उदाहरण श्री रामनाथ कोविंद का देश का 14वां राष्ट्रपति के रूप में चुना जाना है। उनका चुना जाना इस बात को रेखांकित करता है कि भारतीय लोकतंत्र में यह क्षमता है कि समाज के अत्यंत कमजोर पृष्ठभूमि का भी व्यक्ति देश के सर्वोच्च पद को सुशोभित कर सकता हैं। इससे भारतीय लोकतंत्र के समावेशी चरित्र का पता चलता है, जो सामाजिक परिवर्तन एवं समाज-सुधार के प्रति प्रतिबद्ध है। श्री रामनाथ कोविंद का उत्तर प्रदेश के एक छोटे गांव के गरीब दलित परिवार से राष्ट्रपति भवन तक की यात्रा एक चमत्कार लगता है, परन्तु यह लोकतंत्र की शक्ति से ही संभव हो सकता है। जब कोई रामनाथ कोविंद राष्ट्रपति बनता है और कोई नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री तब इस देश का गरीब से गरीब आश्वस्त महसूस करता है कि देश सही दिशा में बढ़ रहा है और हर वर्ग का सशक्तिकरण हो रहा है। इससे भाजपा के अंत्योदय एवं समाज के अंतिम छोर पर खड़े व्यक्ति के विकास के प्रति गहरा समर्पण भी प्रमाणित होता है।

राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद वे अपने संबोधन में श्री कोविंद ने भारत की अनूठी विविधता को ही देश की शक्ति बताया। महात्मा गांधी एवं पं. दीनदयाल उपाध्याय को याद करते हुए उन्होंने देश के सर्वांगीण विकास तथा समरस-समावेशी समाज के निर्माण की आवश्यकता पर बल दिया। श्री रामनाथ कोविंद को 65 प्रतिशत मतों के साथ एक बड़े अंतर से चुना गया है। पर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उनके चुनाव पर भी कांग्रेस अपने संकीर्ण राजनीति से ऊपर नहीं उठ सकी और तर्कहीन बातों पर उनकी आलोचना करने का प्रयास किया। कांग्रेस को श्री प्रणव मुखर्जी से सीख लेना चाहिए, जिन्होंने इस सर्वोच्च पद की गरिमा को बनाये रखा। जिस प्रकार की विदाई उन्हें प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी एवं अन्य मंत्रियों से मिली उससे उनका प्रतिष्ठित व्यक्तित्व एवं सार्वजनिक जीवन में उनके कद का पता चलता है। श्री रामनाथ कोविंद के फूस की झोपड़ी से राष्ट्रपति भवन तक की यात्रा इस देश के गरीब से गरीब को यह आश्वस्त करता है कि उनका एक प्रतिनिधि उनके हितों की रक्षा तथा उनकी चिंता करने के लिए अब राष्ट्रपति भवन में भी मौजूद है।

बिहार में फिर एनडीए सरकार

बिहार में पुनः एक बार मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार तथा उप मुख्यमंत्री श्री सुशील कुमार मोदी के नेतृत्व में एनडीए सरकार ने शपथ ले ली है। महागठबंधन सरकार में लालू यादव एवं उनके परिवार के कारनामों से सरकार की स्थिति दिनोंदिन बद से बदतर होती जा रही थी। एक ओर जहां बड़े-बड़े भ्रष्टाचार के मामलों की जांच देश की विभिन्न एजेंसियां कर रही थी, वहीं दूसरी ओर विकास एवं सुशासन के पैमाने पर भी बिहार निरंतर पिछड़ रहा था। अपने विरुद्ध लगे आरोपों तथा अपने परिवार के कारनामों पर लालू यादव द्वारा कोई सफाई न देने के जिद से नीतीश कुमार के लिये असमंजस की स्थिति बन गई थी। इससे सरकार की विश्वसनीयता लगातार मिटती जा रही थी। इससे बिहार के सरकारी कामकाज पर असर पड़ रहा था और एक संकट का वातावरण बना हुआ था।

अपनी अंतरात्मा की आवाज पर तथा बिहार की जनता के हितों के पक्ष मंे खड़े हाने के लिये नीतीश कुमार बधाई के पात्र हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई में उनका स्वागत कर फिर से लूट-खसोट की राजनीति पर चोट की है। बिहार पूर्व की एनडीए सरकार की उपलब्धियों को लोग याद करते हैं जब विकास एवं सुशासन के पैमाने पर बिहार ने अपनी मजबूत स्थिति दर्ज की थी। लालू यादव एवं कांग्रेस के साथ मिलकर बनी सरकार में बिहार की स्थिति बदतर होने लगी थी और फिर से प्रदेश पर जंगल राज का खतरा मंडराने लगा था। महागठबंधन से निकलकर एवं अपने निर्णायक कदम से नीतीश कुमार ने बिहार को बचा लिया। इसमें कोई संदेह नहीं कि अब बिहार पुनः विकास एवं सुशासन की राह पर मजबूती से चल पड़ेगा। कई वर्षों के बाद ऐसा होने जा रहा है कि केन्द्र और प्रदेश में एक ही गठबंधन की सरकारें हैं जो कि बिहार के लिये एक सुनहरा अवसर है। बिहार अनेक संभावनाओं से भरा हुआ प्रदेश है और अब एनडीए सरकार के नेतृत्व में यह नई ऊंचाइयों पर उड़ान भरने को तत्पर है।

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