हिंदू परंपराओं को बचाने के लिए केरल में आक्रोश

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एम. राजशेखर पानिकर

सुप्रीम कोर्ट के 28 सितंबर, 2018 के फैसले ने सभी उम्र की महिलाओं को केरल के सबरीमाला अयप्पा मंदिर में प्रवेश करने की इजाजत दे दी है।

सबरीमाला एकमात्र मंदिर है जहां पांच करोड़ से अधिक भक्त दो महीने की सालाना तीर्थयात्रा के दौरान पहुंचते हैं। मंदिर के देवता भगवान अयप्पा को ‘नाइष्टिका ब्रह्मचारी’ (बारहमासी अविवाहित) माना जाता है। ब्रह्मचर्य व्रत से संबंधित सालों पुरानी मान्यता और रीति-रिवाज के मद्देनजर 10 से 50 वर्षों के बीच की महिलाओं का प्रवेश मंदिर में वर्जित माना जाता है। इस परंपरा का लिंग भेदभाव से कोई लेना देना नहीं है। केरल में सैकड़ों अन्य अयप्पा मंदिर भी है, जहां सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर कोई पाबंदी नहीं है। इस मंदिर में पूजा के दौरान भक्त रुद्राक्ष की माला पहनते हैं, 41-दिन की तपस्या करते हैं, और ‘इरुमुद्दीकेटु’ लेते हैं (जहां एक नारियल अयप्पा भगवान के अभिषेक के लिए घी से भरा होता है, वहीं अन्य में चावल और दूसरे प्रसाद होते है)।

अयप्पा भक्तों को अयप्पा के रूप में ही देखा जाता है। यह एक दूसरे को ‘स्वामी’ शब्द से संबोधित करते है, जिसका अर्थ होता है ‘भगवान’। जो लोग इस तपस्या को करते हैं, उन्हें ब्रह्मचर्य का प्रशिक्षण मिलता है। वहीं मंदिर की ओर जाने वाले मार्ग और मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर लिखा है, ‘ततत्वंअसि’ (“tat tvam asi”- “आप वह हैं”- “आप भगवान हैं”)।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद हिंदुओं को लगता है कि उनको अपने ही मंदिर में एक विशेष पूजा करने से वंचित किया जा रहा है, जो उनके मौलिक अधिकार के समझौता करने जैसा है। सीपीएम के नेतृत्व वाली वाम डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) सरकार ने अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए फैसले के विरोध में उठी अयप्पा भक्तों की आवाज को नजरअंदाज कर दिया है। यह मंदिर, जहां केरल राज्य की आबादी से लगभग दोगुनी संख्या में हिंदू तीर्थयात्री आते हैं, हमेशा से ही मार्क्सवादियों और तथाकथित सैद्धांतिक धार्मिक समूहों की नजरों में खटकता रहा है। यह मंदिर हमेशा ही मार्क्सवादी भौतिकवादी विचारधारा और धर्मांतरण के खिलाफ एक किले के रूप में खड़ा रहा है। 1957 में, कुछ अराजकवादी तत्वों ने मंदिर परिसर को आग के हवाले कर दिया था। इस घटना की जांच के लिए एक कमीशन को स्थापित किया गया था। इस दौरान हिंदुओं के क्रोध और पीड़ा का लाभ उठाकर पहली बार मार्क्सवादी सरकार सत्ता में आई। उन्होंने वादा किया कि सत्ता में आने पर वह कमीशन की रिपोर्ट को प्रकाशित करने और अपराधियों को दंडित के लिए वचनबद्ध है, लेकिन जब वे सत्ता में आए, तो उन्होंने राज्य के प्रभावशाली धर्मांतरण करने वाले समूहों की प्रतिक्रिया के डर से इस मुद्दे पर कोई कार्रवाई नहीं की।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आड़ में राज्य की पुलिस ने 17 अक्टूबर को पांच दिवसीय पवित्र पूजा के दौरान मंदिर परिसर में मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन, सीपीएम पोलित ब्यूरो के सदस्यों और पूर्व राज्य सचिव के आदेश पर कुछ ढोंगी महिलाओं को भक्तों के रूप प्रवेश करवाने का प्रयास किया। वहां मौजूद भक्त इस घटना को देखकर चौंक गए, पुलिस के साथ मंदिर जाने के लिए पहुंची यह वहीं महिला कार्यकर्ता थी जो पूर्व में ‘किस आॅफ लव’, ‘मंगलसूत्र ब्रेकिंग’ जैसे अभियानों का हिस्सा रह चुकी थी। पुलिस ने न केवल इन महिला को सुरक्षा प्रदान की, बल्कि लोगों की नजर में आने से बचाने के लिए पुलिस की वर्दी पहनाकर इन महिला कार्यकर्ता को अपने साथ लाई थी।

लेकिन हजारों श्रद्धालु ‘शरणम् अयप्पा’ का जप करते हुए एक मजबूत दीवार के रूप में पुलिस द्वारा समर्थित सरकारी मशीनरी और इन नास्तिक महिलाओं के सामने खड़े रहे और उन्हें पीछे हटने पर मजबूर कर दिया। इस दौरान पुलिस का संरक्षण प्राप्त इन महिला कार्यकर्ताओं ने कई अवसरों पर अयप्पा भक्तों को अपनी उत्तेजनापूर्ण फब्तियों से उकसाने का काम किया, लेकिन इन भक्तों ने लगातार अत्यधिक संयम बनाए रखा। शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे अयप्पा भक्तों पर पुलिस ने बड़ी ही क्रूरता से डंडे बरसाए और इस दौरान हजारों वाहन को नुकसान पहुंचा। इस पूरे घटनाक्रम के दौरान तकरीबन 3500 लोगों को हिरासत में लिया गया, जिनमें महिलाएं भी शामिल थीं। इस संदर्भ में 500 से अधिक मामले भी पुलिस ने दर्ज किए।

इन अयप्पा भक्तों को गिरफ्तार करने के लिए रात का समय चुना गया और उन्हें हत्यारों एवं डकैतों की तरह हाथ बांधकर ले जाया गया। इस मंजर ने वह मौजूद लोगों के जहन में आपातकाल की उस कुख्यात आधी रात को फिर से ताजा कर दिया, जिसमें ऐसे ही हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया था। पुलिस की बर्बरता के बाद से गायब साठ वर्षीय अयप्पा भक्त शिवदास का क्षय शरीर सबरी जंगल में मिला, जो सत्तावादी शासन के खिलाफ मौजूदा संघर्ष का पहला शहीद बन गया है। वहीं, सरकार भी कथित तौर पर जन भावनाओं के इतर अदालत के आदेश को मजबूती से लागू करने में लगी है। मुख्यमंत्री के व्यवहार की तुलना हिटलर या स्टालिन से की जा सकती है जो शांतिपूर्ण आंदोलन के दमन के लिए हर पैतरा अपना रहे हैं। वह स्थानीय सीपीएम कैडर के स्तर पर जाकर व्यवहार कर रहे है और यह भूल गए है कि वह राज्य के मुख्यमंत्री हैं।

जल्दबाजी में सबरीमाला के फैसले को लागू करने में लगी पिनारायी विजयन की सरकार का रवैया उनकी पार्टी के अत्यधिक पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण को जाहिर करता है। ऐसे भी कई मामले हैं, जिनकों लेकर सरकार ने अदालती आदेश के बावजूद भी कोई कार्रवाई नहीं की है।

चूंकि सरकार इस संघर्ष के पहले दौर में कामयाब नहीं हुई, इसलिए राज्य के मुख्यमंत्री का पूरा प्रयास है कि अगामी दिनों में वह अपने मंसूबों में कामयाब हो जाए। इस रिपोर्ट को फाइल करने के दौरान यह बात हमारे संज्ञान में आई है कि 12 सीपीएम समर्थित महिलाओं ने सबरीमाला में जाने के लिए पुलिस सुरक्षा मांगी है।

वही मुख्यमंत्री पिनारायी भी इन महिलाओं को पूरा सहयोग देने का मन बना चुके है। सबरीमाला मंदिर एक दिन के लिए नवंबर 5 को ‘चिथिरा अटविशेषम’ के अवसर में फिर खुलेगा। इस दिन त्रावणकोर शाही परिवार के मुखिया चिथिरा थिरुनल बलराम वर्मा की जयंती का जश्न मनाया जाता है। मुख्यमंत्री की सनक को पूरा करने के लिए पार्टी गांव—गांव से अपने कैडरों को संगठित कर रही है, ताकि इन महिलाओं को संरक्षण देने के लिए कैडर के लोगों और पुलिसकर्मियों का उपयोग किया जा सकें।

अयप्पा भक्तों ने भी यह निश्चिय कर लिया है कि ऐसा केवल उनकी लाश गिरने के बाद ही होगा। इसी मुद्दे पर कोट्टायम में हिंदूवादी संगठनों की एक बैठक हुई, जिसमें 120 हिंदू संगठनों ने सीपीएम की अगुवाई वाली सरकार के मंसूबों को नाकामयाब बनाने के लिए रणनीति तैयार की गई, ताकि मंदिर की पवित्रता और युग से चले आ रहे रीति-रिवाजों को नष्ट होने से बचाया जा सके।

पूरे केरल राज्य में इस मुद्दे को लेकर विरोध—प्रदर्शन, सार्वजनिक बैठकों और अयप्पा शरण मंत्र की गूंज को स्पष्ट देखा जा सकता है। लाखों श्रद्धालुओं, जिसमें विशेष तौर से महिलाओं की अच्छी खासी संख्या है स्वेच्छा से सड़कों आ गयी है।

मुख्यमंत्री शांतिपूर्ण आन्दोलनकारियों पर असामाजिक तत्व होने का आरोप लगा रहे है, जो कम्युनिस्ट आंदोलन द्वारा लादे गए सभी प्रगतिशील कदमों के भ्रम को तोड़ का काम कर रहे है। इतिहास भी गवाह है कि जब भी कोई सामाजिक आंदोलन हुआ है तो उसकी अगवानी नारायण गुरु, चट्टम्पी स्वामी और अयंकली जैसे समाज सुधारकों ने की है और फिर चाहें मंदिरों में प्रवेश का मुद्दा हो, सड़कों पर चलने का अधिकार, अस्पृश्यता के खिलाफ आंदोलन हो। यह सभी आंदोलन कम्युनिस्ट आंदोलन के आगमन से बहुत पहले ही राज्य में हो चुके है।

भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने 27 अक्टूबर को स्पष्ट रूप से कहा था कि पार्टी अयप्पा भक्तों के साथ खड़ी है। “आज केरल में, धार्मिक मान्यताओं और राज्य सरकार की क्रूरता के बीच एक संघर्ष चल रहा है। भाजपा, आरएसएस और अन्य संगठनों के 2,000 से अधिक कार्यकर्ता को गिरफ्तार कर लिया गया है। शाह ने कहा, हमारी पार्टी भक्तों के साथ चट्टान की तरह खड़ी हैं। उन्होंने कहा कि भगवान अयप्पा के भक्तों के आंदोलन को दबाने के लिए केरल सरकार के प्रयासों “आग के साथ खेलना” जैसे है। अमित शाह ने पार्टी के कन्नूर जिला मुख्यालय के उद्घाटन के दौरान यह बात कही।

शाह ने राज्य सरकार पर सबरीमाला मंदिर और “हिंदू परंपराओं” को नष्ट करने की कोशिश करने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि बीजेपी सीपीआई (एम) सरकार को हिंदू धर्म के साथ खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं देगी। राज्य में “महिलाओं के लिए किसी अन्य अयप्पा मंदिर में प्रार्थना करने पर कोई पाबंदी नहीं है। शाह ने कहा कि सबरीमाला मंदिर की विशिष्टता को संरक्षित किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार हिंदू मंदिरों के खिलाफ “षड्यंत्र” कर रही है। उन्होंने आगे कहा कि राज्य में आपातकाल जैसी हालात पैदा हो गए है। उन्होंने कहा कि सबरीमाला मंदिर पर अदालत के आदेश का पालन भक्तों की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए।

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने अपने विजयादशमी के भाषण में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट को निर्णय लेने से पहले भक्तों की भावनाओं पर भी विचार करना चाहिए था।

अब मार्क्सवादी एक नयी रणनीति पर काम कर रहे है। सबसे पहले वे यह दिखाना चाहते हैं कि वह लिंग समानता के सबसे बड़े हिमायती है। दूसरा, पिनारायी यह साबित करना चाहता है कि वह संघ परिवार के खिलाफ मजबूती से खड़े हुए है, जो पूरी तरह से भक्तों के शांतिपूर्ण आंदोलन का समर्थन करता है। वह अपने इस प्रयास से संघ परिवार का विरोध करने वाली सभी ताकत को एकजुट करना चाहते हैं, जिससे वह वामपंथ के अंतिम किले को बचा सके।

गौरतलब है कि मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश की मांग किसी भक्त के द्वारा नहीं की गई थी, बल्कि यंग एडवोकेट एसोसिएशन द्वारा इस मांग को उठाया गया था। जब मामला अदालत में आया, तो राज्य सरकार को इस मामले में कोई राजनीतिक लाभ दिखाई नहीं दिया और राज्य नियंत्रित मंदिर प्रशासन त्रावणकोर देवस्वाम बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मामले को प्रभावी रूप से प्रस्तुत नहीं किया, जो करोड़ों भक्तों के साथ धोखा करने जैसा था। दुर्भाग्यवश, इस मामले में, अभियोगी और आरोपी के हितों फैसला आते आते एक समान हो गए थे। इसलिए इस मामले में जब निर्णय आया तो दोनों ही पक्षों ने पुनर्विचार याचिका दायर करने से इंकार कर दिया, क्योंकि यह फैसले एक चर्चित तीर्थ केंद्र को नष्ट करने के पक्ष में था। वैसे भी उनका प्रसिद्ध उद्धरण है “जब एक पूजा स्थान नष्ट होता है, तो बहुत सारे अंधविश्वास भी खत्म हो जाते है”।

रिपोर्टों के मुताबिक इस फैसले के खिलाफ लगभग 40 पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई हैं और यदि 13 नवंबर को पुनर्विचार याचिकाओं पर कोई सकारात्मक निर्णय नहीं आया, तो 16 नवंबर से दो महीने लंबे तीर्थयात्रा के मौसम में एकत्र होने वाले लाखों भक्तों के बीच सरकार के लिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लागू करना एक चुनौती होगी।

“सीपीएम सरकार मंदिर को नष्ट करने की कोशिश कर रही है, जो हिंदूवादी सुधारों का एक प्रमुख केंद्र रहा है। यह सबरीमाला मंदिर के खिलाफ एक कम्युनिस्ट षड्यंत्र है”, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष पी एस श्रीधरन पिल्लई ने कहा कि बीजेपी चाहती है कि राज्य सरकार मंदिर की परंपराओं को बचाने के लिए एक अध्यादेश शीघ्र पारित करे।

प्रदेश की भापजा इकाई और उसके सहयोगियों ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करने के लिए राज्य सरकार और देवस्वाम बोर्ड को मजबूर करने के लिए सबरीमाला संचार यात्रा का आह्वान किया है। यात्रा पांडलम में अयप्पा के जन्मस्थान से शुरू हो कर तिरुवनंतपुरम तक पहुंचेगी, जिसमें लाखों अयप्पा भक्तों के शामिल होने की उम्मीद जताई जा रही है।

एनडीए ने अयप्पा भक्तों की गिरफ्तारी और राज्य सरकार के कठोर कदमों के खिलाफ शांतिपूर्ण उपवास आयोजन करने का आह्वान भी किया है। “कम्युनिस्ट पार्टी सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के बहाने सबरीमाला को युद्ध के मैदान में बदलना चाहती है। यह काम नहीं करेगा। बीजेपी इसका कड़ा विरोध करेगी। यात्रा का नेतृत्व कर रहे श्रीधरन पिल्लई ने कहा कि सरकार के संरक्षण में ढोंगी महिलाओं का मंदिर परिसर में प्रवेश अयप्पा भक्तों को उकसाने का काम कर रहा है। बीडीजेएस के प्रदेश अध्यक्ष थूशर वेल्लप्पाल्ली ने कहा, “इस संघर्ष को आगे बढ़ाने के लिए बहुसंख्यक समुदाय को एकजुट रहना चाहिए।”

इस मामले में उम्मीद की जा रही थी कि देवस्वाम बोर्ड भक्तों के पक्ष में खड़ा होगा, लेकिन सीपीएम और एलडीएफ सरकार की शह पर वह पांडलम रॉयल परिवार, सबरीमाला तांत्री और भक्तों के विरोध में खड़ा दिखाई देता है और उनको चुनौती दे रहा है। भाजपा के महासचिव एमटी रमेश ने कहा, भाजपा भक्तों के साथ खड़ी है।

“कुछ महीनों पहले जब पुलिस ने मुन्नार के पप्पथिचोला में अतिक्रमणियों द्वारा एक बड़े कंक्रीट क्रॉस को हटाने की कार्रवाई की थी, तो पिनारायी ने कहा था कि ‘सरकारी आदेश का पालन करते वक्त जन भावनाओं को प्रभावित किए बिना कार्रवाई किए जाने का प्रयास करना चाहिए। रमेश ने पूछा, “जब सबरीमाला की बात आती है तो सरकार दोहरा रवैया क्यों अपना रही है।”

पिनारायी ने इतिहास से सबक नहीं लिया है। इससे पहले दो अवसरों पर राजनेताओं को भक्तों की ताकत के आगे झुकना पड़ा था। पहला मामला मलप्पुरम में थाली मंदिर का था, जहां तत्कालीन कम्युनिस्ट के मुख्यमंत्री ई.एम.एस. नंबूदरिपाद ने पूर्व मैसूर शासक टिपू द्वारा बर्बाद मंदिर के नवीनीकरण की अनुमति नहीं दी थी। स्वतंत्रता सेनानी के. केलप्पन के नेतृत्व में इसके विरोध में निरंतर संघर्ष हुआ और अंत: थाली में एक शानदार मंदिर बनाने में सफलता प्राप्त हुई। वहीं के. करुणाकरन के शासनकाल के दौरान कुछ ईसाइ समूहों ने 18 हिल शृंखला में मौजूद सबरीमाला बाग में क्रॉस लगाने का प्रयास किया। जिसके विरोध में वर्तमान मिजोरम गवर्नर कुमानमान राजशेखरन के नेतृत्व में एक अभूतपूर्व संघर्ष हुआ, जिसके पश्चात उन्हें हिंदू तीर्थयात्रा क्षेत्र से बाहर होने पर मजबूर होना पड़ा।

सबरीमाला मुद्दे ने कांग्रेस के नेतृत्व में चल रहे यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के दोहरे चरित्र को जनता के सामने ला दिया है। विपक्षी नेता रमेश चेनिथला ने सुझाव दिया कि मंदिर का रखरखाव करने वाले देवस्वाम बोर्ड को फैसले के खिलाफ एक पुनर्विचार याचिका दायर करनी चाहिए। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने कहा, “इस आदेश ने भक्तों के बीच एक गंभीर चिंता को जन्म दिया है और सरकार को भी इस आदेश को लागू करने में जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए।” लेकिन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इन मतों से अपनी राय कुछ अलग रखते हैं। उन्होंने सबरीमाला में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश की हिमायत की है। इसके माध्यम से कांग्रेस दोनों पक्षों की हिमायती बनाकर सामने आना चाहती है, लेकिन भक्तों का मानना है कि पार्टी ने उन्हें बीच मंझधार में छोड़ दिया है।

सीपीएम द्वारा मनोनित देवस्वाम बोर्ड के अध्यक्ष ए. पद्मकुमार मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन के दबाव में पुनर्विचार याचिका दायर करने से इनकार कर दिया।

पांडलम रॉयल परिवार के सदस्य आरआर वर्मा ने कहा, “सबरीमाला पांडलम शाही परिवार का मंदिर था। हमने इसे सरकार को सौंप दिया। अदालत ने स्थिति का पूरी तरह से विश्लेषण नहीं किया है। इस फैसले से भक्तों का अपमान हुआ है।”

अयप्पा के भक्तों में से एक अभिनेता रजनीकांत ने कहा कि लंबे समय से पालन होने वाली मंदिर की परंपराओं में कोई “हस्तक्षेप” नहीं होना चाहिए। “जब आप एक मंदिर के बारे में बात करते हैं, तो हर मंदिर की अपनी परंपराएं और अनुष्ठान होते हैं। मेरी विनम्र राय यह है कि इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए अभिनेता ने कहा कि धर्म और संबंधित अनुष्ठानों के मामले में सावधानी बरती जानी चाहिए।

यह सीपीएम और उसकी सहयोगी संस्थाओं द्वारा हर हिंदू धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ विवाद फैलाने की श्रृंखला की एक और कड़ी है। हिंदू देवी—देवता, माथे पर चंदन या कुमकुम लगाना, मंदिर में पूजा, पारिवारिक बंधन, भारतीय संस्कृति यह सभी उनके उपहास का विषय रहे हैं। केवल वे लोग जो अराजकता और भारत-विरोधी विचार रखते है या लिखते हैं, उन्हें ही संरक्षण दिया जाता है। इस मामले में भी सरकार ने बड़ी ही चतुराई से इस तथ्य को छुपाया कि लाखों महिला भक्त हर साल सबरीमाला में दर्शन के लिए आते हैं और यहां लिंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं होता है।

अब, मार्क्सवादी पूजा की एक अनोखी जगह चाहते हैं जहां भक्त स्थान की विशिष्टता के लिए वहां नहीं आते हो, केवल एक झुंड के तौर पर उस स्थान पर जाए। मार्क्सवादियों को भी एहसास है कि जब तक इस स्थान में भक्तों का विश्वास दृढ़ रहेगा, तब तक उनकी भौतिक विचारधारा के अस्तित्व के लिए कोई जगह नहीं होगी। इसलिए वे इस केंद्र को निशाना बना रहे हैं।

इस मामले में कांग्रेस को पहले झटका तब लगा जब केपीसीसी कार्यकारी समिति के सदस्य और पूर्व देवस्वाम बोर्ड के अध्यक्ष जी. रमन नायर ने पांडलम में एनडीए के सबरीमाला संरक्षण मार्च का उद्घाटन किया और बाद में पार्टी से उनकों निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने चार अन्य दिग्गजों के साथ भाजपा में शामिल होने का निर्णय किया, जिसमें पूर्व इसरो के अध्यक्ष जी. माधवन नायर भी शामिल थे। अमित शाह की उपस्थिति इन लोगों को पार्टी में शामिल किया गया।

मंदिर मुद्दा पिनारायी विजयन के लिए आत्मघाती साबित होगा। यदि वह अपनी योजनाओं के साथ आगे बढ़ते है, तो परंपरागत हिंदू मतदाता जो अब तक सीपीएम के साथ खड़े थे, पार्टी का साथ छोड़ सकते हैं। पिनारायी सोच रहे है कि हिंदू वोटों की भरपाई वह एसडीपीआई, लोकप्रिय मोर्चा और ईसाई वोट के ध्रुवीकरण के माध्यम से पूरी कर लेंगे, लेकिन यह उनका एक सपना ही है। हजारों सीपीएम कार्यकर्ता पार्टी की गुटबाजी के चलते मंदिर आंदोलन में शामिल हो रहे हैं।

जब तक केरल के मुख्यमंत्री एक राजनेता की तरह व्यवहार नहीं करते हैं, तब तक सैकड़ों सालों की कड़ी मेहनत से अर्जित राज्य के सभी सांस्कृतिक मूल्यों के एक झटके में खत्म होने का खतरा लगातार मंडरा रहा है। एक बार ऐसा होने के बाद, इस महान परंपरा का पुनर्निर्माण बहुत कठिन कार्य होगा।

(लेखक केरल भाजपा पत्रिका ‘चिति’ के संपादक हैं)