ग्रामीण भारत : यूपीए और एनडीए सरकारों के प्रदर्शन का तुलनात्मक अध्ययन

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अरूण जेटली 

हाल में कई किसान संगठनों ने दिल्ली में एक विरोध मार्च आयोजित किया। इस मार्च में मुख्य रूप से विपक्षी दलों और वामपंथी मोर्चों से संबंधित संगठनों ने हिस्सा लिया। वे ग्रामीण इलाकों में संकटजनक हालात को लेकर अपनी चिंता व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने सरकार पर ग्रामीण भारत और कृषि क्षेत्र की अनदेखा करने का भी आरोप लगाया।

वस्तुस्थिति क्या है

नरेंद्र मोदी सरकार ने 26 मई, 2014 को पदभार संभाला था। इसके बाद कृषि क्षेत्र में दबाव पैदा नहीं हुआ। यह कांग्रेस द्वारा कृषि क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों की अपर्याप्तता थी, जिसने ग्रामीण इलाकों में कृषि संकट और अल्प गुणवत्ता दोनों को ही जन्म दिया था। एनडीए सरकार ने ग्रामीण जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने, निवेश बढ़ाने और किसानों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक बहुपक्षीय रणनीति बनाई, जिसमें राज्य पर किसानों की निर्भरता कम करने और कृषि को लाभकारी बनाने का प्रयास किया गया।

गांव के लिए मूलभूत सुविधाएं

ग्रामीण इलाकों के विकास में सड़कों की अहम् भूमिका रही है, यह सड़कें न केवल किसानों के उत्पाद को बाजार लाने ले जाने में सुगमता प्रदान करती हैं, वहीं ये सड़कें ग्रामीण आबादी को शहरों से भी जोड़ती हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने जब कार्यभार संभाला था, तो स्वतंत्रता के 67 वर्षों के बाद 3.8 लाख किमी सड़कों का ही निर्माण किया गया था। वहीं, नवंबर, 2018 तक, यह आंकड़ा 5.7 लाख किलोमीटर हो गया है। पिछले साढ़े चार सालों में ग्रामीण इलाकों में 1.9 लाख किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया गया है। ग्रामीण सड़कों में निवेश तीन गुना बढ़ गया है। बहुत जल्द हम प्रत्येक गांव को पक्की सड़क से जोड़ने के अपने लक्ष्य को हासिल कर लेंगे।

भारत में 16.53 करोड़ ग्रामीण परिवार हैं। आजादी के 67 वर्ष के बाद भी साल 2013-14 तक देश में केवल 70% ग्रामीण इलाकों का विद्युतीकरण किया गया था। वहीं, हमारी सरकार ने नवंबर, 2018 तक 16.53 करोड़ परिवार तक बिजली पहुंचाने का काम किया है, जिसके चलते यह आंकड़ा अब 95 प्रतिशत हो गया है और अगले कुछ हफ्तों में ग्रामीण विद्युतीकरण का यह लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा।

जहां तक ग्रामीण आवास का संबंध है, यूपीए सरकार के अंतिम वर्ष में ग्रामीण इलाकों में गरीबों के लिए एक वर्ष में करीब 10 लाख घर बनाए गए थे। यह आंकड़ा आज साढ़े चार गुना बढ़ गया है और अब लगभग 45 लाख घरों का निर्माण किया जा रहा है। ग्रामीण इलाकों में आवास योजना को अभूतपूर्व सफलता मिली है। हमें उम्मीद है कि साल 2022 तक ग्रामीण इलाकों में रहने वाले प्रत्येक नागरिक के पास पक्का मकान होगा।

ग्रामीण इलाकों में जहां 2 अक्टूबर, 2014 तक केवल 38.7% परिवार ही स्वच्छता कवरेज के दायरे में आते थे, वहीं प्रधानमंत्री मोदी के स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत के बाद यह आंकड़ा नवंबर, 2018 को 96.72% हो गया है।

ऐसे ही 21 नवंबर, 2018 तक 33.3 करोड़ जन धन खाते खोले गए हैं, जिसके माध्यम से आज लगभग सभी नागरिकों को बैंकिंग प्रणाली से जोड़ दिया गया है।

साल 2017 में गरीब परिवारों को गैस कनेक्शन प्रदान करने के लिए उज्ज्वला योजना शुरू की गई थी और लगभग डेढ़ वर्षों के दौरान 5.8 करोड़ परिवार को गैस कनेक्शन दिए जा चुके है। यह आंकड़ा 31.03.2019 तक 8 करोड़ तक पहुंचने की संभावना है।

आज लगभग तेरह करोड़ परिवार मुद्रा लोन का लाभ उठा रहे हैं और लोन प्राप्त करने वालों में 54% महिलाएं भी शामिल हैं।

भारत में गरीब परिवारों को स्वास्थ्य सुविधाए उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से सरकार ने आयुष्मान भारत योजना का शुभांरभ किया, इसमें भी ग्रामीण इलाकों में रहने वाले परिवारों का विशेष ध्यान रखा गया, क्योंकि आजादी के 67 सालों बाद भी देश के इस कमजोर तबके के लिए उपलब्ध स्वास्थ्य सेवाएं अपर्याप्त थी। इस योजना का लाभ भारत के सबसे गरीब 10 करोड़ (भारत की आबादी का 40%) परिवारों को होगा, जिसके तहत यह परिवार 5 लाख तक का स्वास्थ्य बीमा प्राप्त कर निर्दिष्ट बीमारियों का सही इलाज अस्पताल के माध्यम से करवा सकेंगे। इस योजना के शुभांरभ के बाद पिछले दो महीनों में लगभग 3.8 लाख लोगों इस योजना का लाभ उठा चुके हैं।

किसानों की आय

सरकार ने किसानों की उत्पादकता में वृद्धि और उनकी आय बढ़ाने के लिए पशुपालन, डेयरी और मत्स्यपालन पर अपने खर्च में वृद्धि की है। ऐसे ही कृषि अनुसंधान और शिक्षा में निवेश को बढ़ाया गया है। वहीं, सिंचाई में भी निवेश पर काफी वृद्धि हुई है। ग्रामीण रोजगार योजना ‘मनरेगा’ के तहत सबसे कमजोर तबके के लिए 60,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है, जो यूपीए सरकार द्वारा खर्च की गई राशि का लगभग दोगुना है। गरीब परिवारों के लिए खाद्य सब्सिडी के तहत 1.6 लाख करोड़ की राशि खर्च करने का प्रावधान किया गया है। कुछ चुनिंदा उत्पादों पर लागत का 50% अधिक एमएसपी दिया जा रहा है। ब्याज के संदर्भ में भी दी जाने वाली आर्थिक सहायता राशि को दोगुना कर दिया गया है। पिछले साल (2017-18) 3,96,831 करोड़ रुपये ग्रामीण इलाकों में खर्च किए गए थे। वहीं इस साल यह खर्च करीब 4,38,741 करोड़ रुपये रहने की संभावना है। जबकि यूपीए सरकार ने अपने अंतिम वर्ष में 2,41,602 करोड़ रुपये की राशि ही ग्रामीण इलाकों के लिए आवंटित की थी।

कृषि संकट को दूर करने और ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए केवल नारे देने से काम नहीं चलेगा। जैसाकि 1971 से कांग्रेस करती आयी है, कांग्रेस द्वारा बनाई गई नीतियों के संदर्भ में कहा जा सकता है कि यह संसाधन कम और नारे ज्यादा थे। एनडीए ने ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों का विस्तार किया है। इन संसाधनों ने हमारे बुनियादी ढांचे में सुधार किया है, स्थानीय निवासियों के जीवन में लगातार सुधार हो रहा है और कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई है। हमारा उद्देश्य एक ऐसी व्यवस्था बनाना है, जिसमें किसानों को उनकी फसल का लाभकारी मूल्य प्राप्त हो सके। पिछले साढ़े चार सालों में किए गए सुधार कार्य इस दिशा में केवल शुरुआत भर है। यदि हम इसी गति से अगले दो दशकों तक ग्रामीण इलाकों में निवेश को जारी रखने में कामयाब हो जाते है, तो हम ग्रामीण इलाकों में बेहतर जीवन स्तर और आवश्यक बुनियादी ढांचे को प्रदान करने के करीब होंगे, जो लगभग शहरी इलाकों जैसा होगा।

(लेखक केंद्रीय वित्त मंत्री है)