‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ योजना के पांच वर्ष पूरे

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वर्ष 2015-17 के दौरान 10.74 करोड़ और 2017-19 के दौरान 11.74 करोड़
मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को वितरित

19 फरवरी 2020 को महत्वपूर्ण ‘मृदा स्वास्थ्य कार्ड’ योजना के पांच वर्ष पूरे हो गए। इसी दिन प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में राजस्थान के सूरतगढ़ में मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की शुरुआत की थी। इस योजना के तहत वर्ष 2015-17 (चक्र-1) के दौरान 10.74 करोड़ और वर्ष 2017-19 (चक्र-2) के दौरान 11.74 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड किसानों को वितरित किए गए। पांच साल पहले इसे शुरू करने के बाद से सरकार इस योजना पर 700 करोड़ रुपये से अधिक खर्च कर चुकी है।

इस योजना के तहत 2014-15 से लेकर अब तक 429 नई स्टैटिक सॉयल टेस्टिंग लैब्स (एसटीएल), 102 नई मोबाइल एसटीएल, 8752 मिनी एसटीएल और 1562 ग्राम स्तरीय एसटीएल मंजूर की जा चुकी है। इन स्वीकृत प्रयोगशालाओं में से 129 नई स्टैटिक सॉयल टेस्टिंग लैब्स (एसटीएल), 86 नई मोबाइल एसटीएल, 6498 मिनी एसटीएल और 179 ग्राम स्तरीय एसटीएल अब तक स्थापित की जा चुकी हैं।

मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना का उद्देश्य हर दो साल में किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करना है, ताकि खाद डालने के तरीकों में पोषण संबंधी कमियों को दूर करने के लिए एक बुनियाद प्रदान की जा सके। पोषक तत्व प्रबंधन के आधार पर मिट्टी के परीक्षण को बढ़ावा देने के लिए ही मृदा परीक्षण को विकसित किया गया है। उर्वरकों का सही मात्रा में उपयोग करवाकर मृदा परीक्षण खेती की लागत को कम करता है। यह पैदावार में वृद्धि करके किसानों की अतिरिक्त आय सुनिश्चित करता है और टिकाऊ खेती को भी बढ़ावा देता है।

देश के सभी किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी करने में राज्य सरकारों की सहायता करने के लिए ये योजना शुरू की गई है। ये कार्ड किसानों को उनकी मिट्टी की पोषक स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करता है और साथ ही मिट्टी के स्वास्थ्य और इसकी उर्वरता में सुधार के लिए पोषक तत्वों की उचित खुराक भी सुझाता है। गौरतलब है कि मिट्टी के रासायनिक, भौतिक और जैविक स्वास्थ्य की गिरावट को भारत में कृषि उत्पादकता में ठहराव के कारणों में से एक माना जाता है।

सरकार पोषण आधारित सब्सिडी (एनबीएस) योजना को भी लागू कर रही है और उर्वरकों के संतुलित उपयोग के लिए अनुकूलित और मज़बूत बनाए हुए उर्वरकों को बढ़ावा दे रही है। अब तक 21 उर्वरकों को एनबीएस योजना के तहत लाया जा चुका है। वर्तमान में सरकार द्वारा अधिसूचित 35 अनुकूलित और 25 मज़बूत बनाए हुए उर्वरक उपयोग में हैं।

2019-20 के दौरान ‘मॉडल ग्रामों का विकास’ नाम की पायलट परियोजना शुरू की गई, जहां मिट्टी के नमूनों का संग्रह ग्रिड में करने के बजाय किसान की भागीदारी के साथ उसके खेत में किया जाता है। इस पायलट परियोजना के अंतर्गत प्रत्येक ब्लॉक से एक गांव को गोद लिया जाता है ताकि मृदा परीक्षण किया जा सके और बड़ी संख्या में प्रदर्शनों का आयोजन किया जा सके, जिसमें प्रदर्शनों की अधिकतम सीमा 50 प्रति हेक्टेयर है।

राज्यों के द्वारा अब तक 6,954 गांवों की पहचान की जा चुकी है, जहां 26.83 लाख नमूनों/मृदा स्वास्थ्य कार्डों के लक्ष्य के मुकाबले 21.00 लाख नमूने एकत्र किए जा चुके हैं। 14.75 लाख नमूनों का विश्लेषण किया जा चुका है और 13.59 लाख कार्ड किसानों में वितरित किए जा चुके हैं। इसके अलावा, राज्यों द्वारा 2,46,979 प्रदर्शनों और 6,951 किसान मेलों को मंजूरी प्रदान की गई है।

अगले पांच वर्षों में चार लाख गांवों को व्यक्तिगत रूप से खेती करने के लिए मिट्टी का नमूनाकरण करने और परीक्षण करने के लिए प्रस्तावित किया गया है। 2.5 लाख प्रदर्शनों का आयोजन, गांव के स्तर पर 250 मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना, 200 मिट्टी परीक्षण प्रयोगशालाओं को युग्मित प्लाज्मा (आईसीपी) के साथ मजबूती प्रदान करना और 2 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में स्पेक्ट्रोफोटोमीटर और सूक्ष्म पोषक तत्त्वों को बढ़ावा देना शामिल किया गया है।

2017 में राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद् (एनपीसी) के द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि एसएचसी योजना के माध्यम से टिकाऊ खेती को बढ़ावा दिया गया है और इसके द्वारा 8-10 फीसदी तक रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में कमी आई है। इसके अलावा मृदा स्वास्थ्य कार्ड में उपलब्ध सिफारिशों के अनुसार, उर्वरक और सूक्ष्म पोषक तत्वों का उपयोग करने के कारण फसलों की उपज में 5-6 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।