मजबूत अर्थव्यवस्था के साथ महंगाई भी काबू में

| Published on:

केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने 24 अक्टूबर को देश की अर्थव्यवस्था पर एक रिपोर्ट जारी की। इस रिपोर्ट के अनुसार देश की अर्थव्यवस्था न केवल मजबूत हुई है, बल्कि इसमें स्थिरता भी आई है। यहां प्रस्तुत है रिपोर्ट के प्रमुख अंश का प्रथम भाग:

देश का मजबूत आर्थिक विकास

2014-17 के तीन वर्षों में भारत का विकास 7.5 प्रतिशत प्रति वर्ष की बड़ी मजबूत दर पर हुआ और 2015-16 में वृद्धि दर 8 प्रतिशत से अधिक हो गई। विमुद्रीकरण और माल एवं सेवा कर के परिवर्ती प्रभाव के कारण अंतिम दो तिमाहियों में विकास में अस्थायी मंदी आई। वह प्रभाव अब खत्म हो चुका है और सभी संकेतक-औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी), केन्द्रीय क्षेत्र, सूचकांक, आटोमोबाइल, उपभोक्ताओं द्वारा किए जा रहे खर्च आदि मजबूत उछाल की ओर संकेत करते हैं और चालू वर्ष की दूसरी तिमाही में ही बहुत अच्छे विकास की संभावना है।

वर्तमान वैश्विक आर्थिक संभावनाओं की मुख्य विशेषता उन्नत अर्थव्यवस्थाओं एवं उभरते बाजार तथा विकासशील अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में अपेक्षाकृत सुदृढ़ आर्थिक गतिविधि के रूप में दिखाई दे रही है। वैश्विक आर्थिक गतिविधि धीरे-धीरे सुधार के मार्ग पर बढ़ रही है और वैश्विक जीडीपी वर्ष 2016 में 3.2 प्रतिशत के स्तर पर रहने के बाद वर्ष 2017 और 18 में क्रमश: 3.6 प्रतिशत और 3.7 प्रतिशत की दर पर बढ़ने की संभावना है। इस पुनरुद्धार में कारोबारी और उपभोक्ताओं के विश्वास में मजबूती के साथ-साथ निवेश, व्यापार और औद्योगिक उत्पादन में हुए उल्लेखनीय सुधार से मदद मिली है। इससे निर्यातों की वृद्धि में भी मदद मिलेगी, जो अप्रैल-सितम्बर के दौरान औसतन लगभग 12 प्रतिशत की वृद्धि के साथ सितम्बर, 2017 में 25.6 प्रतिशत की जबरदस्त निर्यात वृद्धि में दिखाई देती है।

महंगाई पर काबू

सरकार द्वारा उठाए गए निर्णायक कदमों के साथ-साथ कच्चे तेल की कीमतों में 2013-14 के ऊंचे स्तरों से आई गिरावट और विक्रेय वस्तुओं की लाभकर वैश्विक कीमतों ने अर्थव्यवस्था को स्फीतिकारी चक्र से निकालकर अपेक्षाकृत स्थिर कीमतों के दौर में ला खड़ा किया है। मुद्रास्फीति 2012-13 और 2013-14 के लगभग दो अंकीय स्तर से गिरकर 5 प्रतिशत से कम की औसत पर आ गई है। जुलाई, 2016 और जुलाई, 2017 के बीच मुद्रास्फीति दर 2 प्रतिशत के आसपास थी। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित मुद्रास्फीति इस समय लगभग 4 प्रतिशत के लक्ष्य के भीतर है और वित्त वर्ष 2017-18 के लिए इसके लगभग 3.5 प्रतिशत होने की संभावना है। इस समय मुद्रास्फीति 4 प्रतिशत के लक्ष्य की परिधि के भीतर है। तथापि, भारतीय रिजर्व बैंक चालू वित्त वर्ष के उत्तरार्ध में इसके बढ़कर 4.2-4.6 प्रतिशत हो जाने का अनुमान लगा रहा है, जो 4 प्रतिशत के लक्ष्य से थोड़ा अधिक है, लेकिन 4+/-2 प्रतिशत की परिधि में है।

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (संयुक्त) पर आधारित हेडलाइन मुद्रास्फीति 2014-15 के 5.9 प्रतिशत की तुलना में 2015-16 में औसतन 4.9 प्रतिशत रही। 2016-17 के लिए सीपीआई मुद्रास्फीति औसतन 4.5 प्रतिशत रही। अप्रैल-सितम्बर, 2017 में वर्षानुवर्ष मुद्रास्फीति 2.6 प्रतिशत थी, जबकि पूर्ववर्ती वर्ष की तदनुरूप अवधि में यह 5.4 प्रतिशत थी।

चालू खाता घाटा सुरक्षित परिधि में

अपेक्षाकृत कम मुद्रास्फीति के साथ-साथ चालू खाता घाटे के कम स्तर के कारण भी पिछले तीन चार वर्षों में काफी अधिक वृहत आर्थिक स्थिरता आई है। चालू खाता घाटा 2 प्रतिशत से कम की सुरक्षित परिधि में बना हुआ है। 2011-12 और 2012-13 में चालू खाता घाटा 4 प्रतिशत से अधिक के खतरनाक और ऊंचे स्तर पर था, जिसके चलते रुपये की विनिमय दर में काफी अस्थिरता पैदा हो गई थी। चालू खाता शेष में आए उल्लेखनीय सुधार जो चालू खाता घाटे के अपेक्षाकृत कम स्तरों में दिखाई देता है, से विनिमय दर की अस्थिरता में भी काफी कमी आई है।

चालू खाता घाटा (सीएडी-कैड) 2015-16 में जीडीपी का 1.1 प्रतिशत था, जबकि 2014-15 में यह जीडीपी का 1.3 प्रतिशत था। 2016-17 में कैड और अधिक कम होकर जीडीपी का 0.7 प्रतिशत रह गया जिसकी वजह व्यापार घाटे में आया संकुचन था जो 2015-16 के 130.1 बिलियन अमरीकी डालर से कम होकर 2016-17 में 112.4 बिलियन अमरीकी डालर हो गया था।

भारत का जिंस व्यापार

वर्ष 2015-16 में निर्यातों में गिरावट हुई जिसकी मुख्य वजह मंद हो गई वैश्विक मांग थी और आयातों में गिरावट हुई, जिसकी वजह कच्चेतेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों में आई तीव्र गिरावट और अन्य वस्तुओं की कीमतों में आई कमी थी। 2016-17 के दौरान निर्यातों में 5.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि आयातों में 0.9 प्रतिशत की वृद्धि हुई जिससे व्यापार घाटे को कम करने में मदद मिली। अप्रैल-सितम्बर, 2017 के दौरान जिंस निर्यातों और आयातों में डालर मूल्य में क्रमश: 11.5 और 25.1 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप व्यापार घाटा अप्रैल-सितम्बर, 2016 के 43.4 बिलियन अमरीकी डालर से बढ़कर अप्रैल-सितम्बर, 2017 में 73.1 बिलियन अमरीकी डालर हो गया।

वैश्विक व्यापार की मात्रा (माल और सेवाएं) की वृद्धि में गिरावट जारी रही और यह 2015 के 2.8 प्रतिशत से कम होती हुई 2016 में 2.2 प्रतिशत के स्तर पर आ गई (आईएमएफ की डब्ल्यूईओ, अक्तूबर, 2017)। यह संभावना है कि इसमें गति आएगी और यह 2017 में 4.2 प्रतिशत और 2018 में 4.0 प्रतिशत की दर पर रहेंगे।

भारी विदेशी प्रत्यक्ष निवेश

2016-17 में भारत में सकल एफडीआई आगम 60.2 बिलियन अमरीकी डालर रहा, जबकि 2015-16 में यह 55.6 बिलियन अमरीकी डालर और 2014-15 में 45.1 बिलियन अमरीकी डालर रहे थे जो भारतीय अर्थव्यवस्था के संबंध में बेहतर वैश्विक विश्वास का संकेत है। अप्रैल-अगस्त, 2017 के दौरान अर्थव्यवस्था में सकल एफडीआई आगम 30.4 बिलियन अमरीकी डालर रहा जो पिछले वर्ष की तदनुरूप अवधि में 23.3 बिलियन अमरीकी डालर के आगम की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक थे।

विदेशी मुद्रा भंडार

विदेशी मुद्रा भंडार मार्च- अंत 2017 में 370 बिलियन अमरीकी डालर के स्तर पर थे, जबकि मार्च- अंत 2016 में 360.2 बिलियन अमरीकी डालर के स्तर पर थे। 13 अक्तूबर, 2017 की स्थिति के अनुसार, विदेशी मुद्रा भंडार 400 बिलियन अमरीकी डालर से अधिक हो गए। पिछले दो-एक वर्षों में विदेशी मुद्रा भंडार में इस वृद्धि के चलते मुद्रा भंडार पर आधारित वैदेशिक क्षेत्र के अधिकतर असुरक्षा संबंधी संकेतकों में सुधार हुआ है।

राजकोषीय स्थिति और राजकोषीय समेकन में सतत सुधार

पिछले कुछ वर्षों में राजकोषीय घाटे में सतत समेकन हुआ है। केन्द्र सरकार का राजकोषीय घाटा 2011-12 में लगभग 6 प्रतिशत के खतरनाक रूप से उच्च स्तर पर पहुंच गया था और 2011-12 तथा 2013-14 के बीच लगभग 5 प्रतिशत की औसत पर रहा। सरकार राजकोषीय समेकन के पथ पर चलने के लिए प्रतिबद्ध है तथा इसने राजकोषीय घाटे को 2016-17 में जीडीपी के 3.5 प्रतिशत तक लाने और 2017-18 में बजट अनुमानों के अनुसार इसे और कम करके 3.2 प्रतिशत तक लाने की दृढ़ता दर्शायी है।

जीडीपी के अनुपात के रूप में केन्द्र सरकार का राजकोषीय घाटा 2015-16 में 3.9 प्रतिशत था और 2016-17 (संशोधित अनुमान) में 3.5 प्रतिशत था और 2017-18 में इसके 3.2 प्रतिशत होने की बजटीय व्यवस्था है। व्यय को युक्तिसंगत बनाने पर ध्यान देकर तथा सरकारी व्यय में व्याप्त दोषों को दूर करके और राजस्व जुटाने के नवीन प्रयासों ने यह स्थिति हासिल करने में मदद की है।

आंतरिक और वैदेशिक सरकारी ऋण स्टाक की दृष्टि से भारत को राजकोषीय शोधन क्षमता संबंधी गंभीर मुद्दों का सामना नहीं करना है। भारत सरकार का कुल बकाया देयताओं और जीडीपी अनुपात 2016-17 (सं.अ.) के अंत तक 46.7 प्रतिशत के स्तर से गिरकर 2017-18 के अंत तक 44.7 प्रतिशत हो जाने की बजटीय व्यवस्था है।

कर राजस्व (केन्द्र को निवल) में 2016-17 में 16.8 प्रतिशत की वृद्धि की गई (अनंतिम वास्तविक) और 2017-18 में इसमें 11.3 प्रतिशत की वृद्धि की बजटीय व्यवस्था है।

अप्रैल-अगस्त के दौरान राजकोषीय घाटा व्यय की फ्रंट लोडिंग के कारण पूरे वर्ष के बजटित राजकोषीय घाटे का 96 प्रतिशत है, लेकिन हमें पूरा विश्वास है कि जीडीपी के 3.2 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे के पूरे वर्ष के बजटित अनुपात की सीमा लांघी नहीं जाएगी।

माल और सेवा कर (जीएसटी) के रूप में क्रांतिकारी सुधार

अनेक केन्द्रीय और राज्य अप्रत्यक्ष करों को समाप्त करने वाला जीएसटी एक ऐसा क्रांतिकारी सुधार है जो 1 जुलाई, 2017 से कार्यान्वित किया गया है। जीएसटी का शुभारम्भ एक ऐतिहासिक आर्थिक और राजनीतिक उपलब्धि का द्योतक है, जो भारतीय कर और आर्थिक सुधारों की प्रक्रिया में अभूतपूर्व घटना है। इसने ढांचागत सुधारों के लिए नई आशा जगाई है। इसके परिणास्वरूप देश भर में एकीकृत कर प्रणाली शुरू हुई है और इसमें माल की आवाजाही में लगी परिवहन संबंधी अड़चनों को हटाने में मदद की है, जिसके परिणामस्वरूप उनकी आवाजाही में तेजी आई है और एक साझा बाजार सृजित करने में, भ्रष्टाचार और हेराफेरी कम करने में तथा मेक इन इंडिया कार्यक्रम में और सहायता मिली है। आशा है कि इससे राजस्व, निवेश और मध्यावधिक आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा। सरकार और जीएसटी परिषद द्वारा सुलझाई जा रही आरंभिक समस्याओं के बावजूद, जुटाए गए राजस्व के रूप में आरंभिक परिणाम उत्साहवर्धक प्रतीत होते हैं।

माल और सेवा कर: एक राष्ट्र एक कर के लाभ

-भ्रष्टाचार और हेराफेरी में कमी

-उत्पादन और बिक्री का संगठित रूप

-सहकारी राजकोषीय संघवाद

-सभी जांच चौकियां समाप्त। खपत आधारित कराधान

-अनेकानेक करों की समाप्ति। मेक इन इंडिया को प्रोत्साहन

-छोटे कारोबारियों और निर्यातकों पर अनुपालन के बोझ को कम करने के उपाय किए गए।

शोधन अक्षमता और दिवालियापन संहिता

दूसरा महत्वपूर्ण सुधार शोधन अक्षमता और दिवालियापन संहिता, 2016 (संहिता) है, जिसका लक्ष्य कंपनियों और सीमित देयतावाली संस्थाओं (सीमित देयतावाली भागीदारी और अन्य सीमित देयता वाली संस्थाओं सहित), सीमारहित देयतावाली भागीदारियों और व्यक्तियों जो विभिन्न कानूनों के तहत डील होते हैं, की शोधन अक्षमता से संबंधित कानूनों को एकीकृत करके एकल विधान में लाना है। यह संहिता वैश्विक स्तर की और कुछ मामलों में उससे भी बेहतर स्तर की समग्र, आधुनिक और सुदृढ़ शोधन अक्षमता और दिवालियापन व्यवस्था प्रदान करती है।

शोधन अक्षमता और दिवालियापन व्यवस्था

4भारत में संस्थापित एक प्रभावी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वोत्तम कार्यप्रणाली पर आधारित शोधन अक्षमता व्यवस्था।

4सुदृढ़ समयबद्ध प्रक्रिया को सुनिश्चित करने वाला त्वरित समाधान।

4जून तक एनसीटीएल के समक्ष 2050 आवेदन दायर किए गए।

-30 सितंबर, 2017 की स्थिति के अनुसार कारपोरेट शोधन अक्षमता समाधान प्रक्रिया के लिए 237 आवेदन स्वीकार किए गए।

-22 स्वेच्छिक परिसमापन।

-1054 शोधन अक्षमता कार्मिकों का पंजीकरण।

-समाधान भी प्रारंभ किया गया है।

-निधारित समयावधि में समाधान प्रक्रिया सफल नहीं होती है, तो परिसमापन प्रक्रिया प्रारंभ होती है।

-इस चक्र को पूरा करने के लिए वित्तीय समाधान और निक्षेप बीमा विधेयक, 2017 पेश किया गया।

सरकार ने इस संहिता के कार्यान्वयन के लिए त्वरित गति से कार्रवाई की है। अभी तक एनसीएलटी को लगभग 2050 आवेदन प्राप्त हुए हैं, जिनमें से 112 आवेदन स्वीकार किए गए हैं और 146 आवेदन खारिज किए गए अथवा वापस लिए गए हैं। स्वीकृत आवेदन के अंतर्गत कुछ लाख रुपए से लेकर कुछ हजार करोड़ रुपये की चूक अंतर्ग्रस्त है। आरबीआई द्वारा 12 बड़े चूककर्ताओं की घोषणा करने से इसका दायरा और बढ़ जाएगा।