2017-18 के दौरान औसत मुद्रास्फीति दर पिछले छह सालों में सबसे कम

| Published on:

आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 के अनुसार उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) पर आधारित महंगाई दर 3.3 फीसदी रही, जो कि पिछले छह वर्षों में सबसे कम है। दरअसल, हाउसिंग, ईंधन और लाइट को छोड़कर सभी बड़े कमोडिटी क्षेत्रों में मुद्रास्फीति दर में यह कमी दर्ज की गई। नवबंर 2016 से अक्टूबर 2017 यानी पूरे 12 महीने के दौरान मुख्य मुद्रास्फीति दर 4 फीसदी से नीचे दर्ज की गई, जबकि चालू वित्त वर्ष अप्रैल-दिसंबर के दौरान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक औसतन करीब एक फीसदी रहा।

यही नहीं, पिछले चार सालों में अर्थव्यवस्था में क्रमिक बदलाव देखा गया, जिसमें एक अवधि के दौरान मुद्रास्फीति काफी ऊपर चढ़ने या काफी नीचे गिरने के बजाय स्थिर बनी रही। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के जरिये मापी जाने वाली प्रमुख मुद्रास्फीति दर पिछले चार सालों में नियंत्रित ही रही है। जाहिर है कि चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीने में मुद्रास्फीति दर में जो गिरावट देखी गई वह खाद्य पदार्थों में रही। इसकी दर (-) 2.1 से 1.5 प्रतिशत रही। दरअसल, यह कृषि के क्षेत्र में बेहतर उत्पादन के चलते ही मुमकिन हो पाया है। सरकार ने मूल्यों को लेकर लगातार निगरानी बनाए रखी है।

आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार हालांकि हाल के महीनों में खाद्य पदार्थों के मूल्यों में चढ़ाव देखा गया उसकी वजह सब्जी और फलों के दामों में वृद्धि रही है। 2016-17 में ग्रामीण इलाकों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक के मुख्य घटक खाद्य पदार्थ रहे हैं, जबकि शहरी क्षेत्रों में हाउसिंग सेक्टर ने मुद्रास्फीति में मुख्य भूमिका अदा की है। 2016-17 के दौरान यदि हम राज्यवार मुद्रास्फीति की दर देखेंगे तो पाएंगे कि ज्यादातर राज्यों में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में बड़ी गिरावट का ही दौर जारी रहा। चालू वित्त के दौरान 17 राज्यों में मुद्रास्फीति की दर 4 प्रतिशत से कम रही। सरकार की तरफ से कई स्तरों पर किए गए प्रयासों के चलते मुद्रास्फीति दर में यही कमी देखी गई।

2017-18 में किसानों को 20,339 करोड़ रुपये की ब्याज सहायता

लघु अवधि फसल ऋण पर किसानों को प्रदान की जाने वाली ब्याज सहायता से उत्पन्न होने वाली विभिन्न देयताओं को पूरा करने के लिए 2017-18 में भारत सरकार द्वारा 20,339 करोड़ रुपये की धनराशि अनुमोदित की गई। इसके साथ ही फसल कटाई के बाद भंडारण संबंधी ऋण देश में किसानों के लिए एक महत्वपूर्ण आगत अपेक्षा को पूरा करता है। विशिष्टया छोटे और सीमांत किसान जो कि मुख्य उधार लेने वालों में से है।

यह संस्थागत क्रेडिट किसानों को क्रेडिट के गैर-संस्थागत स्रोत से अलग करने में मदद करेगी। जहां पर यह ब्याज की ऊंची दरों पर उधार लेने के लिए मजबूर होते हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अंतर्गत फसल बीमा, फसलों के ऋण से जुड़ा है। लिहाजा किसान फसल ऋणों का फायदा उठाते हुए सरकार की दोनों किसानों के अनुकूल पहलों से लाभ ले सकेंगे।

यह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से कि किसान बाजार में अपने उत्पादन के संबंध में लाभदायक कीमतों का लाभ उठाएं, सरकार सुधार को लेकर कदम उठा रही है। इलेक्ट्रानिक राष्ट्रीय कृषि बाजार (ई-नाम) जो सरकार द्वारा अप्रैल 2016 से आरंभ किया गया था, का उद्देश्य इलेक्ट्रोनिक प्लेटफॉर्म के माध्यम से बिखरे हुए एपीएमसी को एकीकृत करना और किसानों को ऑनलाइन व्यापार करने की सलाह दी जाती है। यह भी अहम है कि वे मान्यता प्राप्त गोदामों में अपने उत्पादन का भंडारण करके फसल की कटाई के बाद ऋण का फायदा उठाएं। यह ऋण ऐसे छोटे और सीमांत किसानों जिनके पास किसान क्रेडिट कार्ड है, को 6 माह की अवधि के संबंध में ऐसे भुगतान पर 2 प्रतिशत की ब्याज सहायता उपलब्ध है। इसमें किसानों को बाजार में उछाल आने के समय अपनी बिक्री करने और मंदी के दौरान बिक्री से बचने में मदद मिलेगी। अतः छोटे एवं सीमांत किसानों के लिए आवश्यक है कि वे अपने केसीसी को बनाए रखें।

सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुना करना चाहती है। इसके लिए बीज से लेकर बाजार तक सरकार ने तमाम तरह की पहल की है। संस्थानात्मक स्रोतों से क्रेडिट, सभी ऐसे सरकारी प्रयासों जैसे सायल हेल्थ कार्ड, इनपुट प्रबंध, प्रधानमन्त्री कृषि सिंचाई योजना (PMKSY), PMFBY, E-NAM इत्यादि में पर ड्राप मोर क्रॉप को और बेहतर करेगा।