तीनों देशों की संयुक्त प्रतिबद्धता का प्रदर्शन था ‘मालाबार अभ्यास’

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बंगाल की खाड़ी/उत्तरी हिंद महासागर में भारत, अमेरिका और जापान की नौ सेनाओं के बीच ‘मालाबार अभ्यास’ किया गया। मालाबार अभ्यास का यह 21वां संस्करण 10 से 17 जुलाई 2017 के दौरान हुआ। इस अभ्यास का मुख्य उद्देश्य तीनों नौसेनाओं के बीच बेहतर तालमेल स्थापित करने के साथ-साथ समुद्री सुरक्षा के लिए सामान्य समझ और प्रक्रियाओं को विकसित करना था। इस वर्ष समुद्री अभ्यास में एयरक्राफ्ट कैरियर ऑपरेशन, एयर डिफेन्स, एंटी-सबमरीन वारफेयर (एसएसडब्ल्यू), सर्फेस वारफेयर, विजिट बोर्ड सर्च और सीज़र (वीबीएसएस), सर्च एंड रेस्क्यू, संयुक्त मैन्युवर्स और टेक्टिकल प्रोसिजर्स जैसी गतिविधियां संपन्न हुई। इसके अतिरिक्त, 15 जुलाई 2017 को तीनों देशों के अधिकारी समुद्री जहाजों पर सवार हुए।

जापानी समुद्री आत्मरक्षा बल (जेएमएसडीएफ) की भागीदारी के साथ भारत और अमेरिकी नौसेनाओं के बीच 1992 में शुरू हुई ‘मालाबार अभ्यास’ की शृंखला से एक बहुआयामी अभ्यास के दायरे और भागीदारी में लगातार वृद्धि हुई है। यह भारत, अमेरिका और जापान के बीच नौसेना सहयोग, तीन लोकतंत्रों के बीच मजबूत और लचीले संबंधों का प्रतीक है।
भारतीय वायुसेना, विमान वाहक आईएनएस विक्रमादित्य में अपनी क्षमता के साथ मिसाइल विध्वंसक रणवीर, स्वदेशी तकनीक वाले शिवलिक और सह्याद्री, स्वदेशी एसएसडब्ल्यू कार्वेट कामतोटा, मिसाइल कार्वेट्स कोरा और किरपान, एक सिंधुघोष श्रेणी की पनडुब्बी, टैंकर आईएनएस ज्योति के बेड़े और लंबी दूरी के समुद्री गश्ती विमान पी8 के साथ इस अभ्यास में भाग लिया।

अमेरिकी नौसेना निमेट्स कैरियर स्ट्राइक ग्रुप और यूएस 7वें बेड़े के अन्य इकाइयों के जहाजों के साथ इस अभ्यास में भाग लिया। अमेरिकी नौसेना बलों में निमितज़ श्रेणी के विमान वाहक, टिकोनडेरोगा-क्लास क्रूजर प्रिंसटन, एलेली बर्क-क्लास डिस्ट्रॉयर्स किड, हावर्ड और शूप सहित अभिन्न हेलीकाप्टर, एक लॉस एंजिल्स-क्लास की पनडुब्बी और एक लम्बी दूरी का समुद्री टोही विमान पी8 शामिल थे।

मालाबार-17 में 16 जलपोत, दो पनडुब्बियां और 95 से अधिक लड़ाकू विमान भाग लिए। यह अभ्यास भारत, अमेरिका और जापान के बीच आपसी भागीदारी के साथ-साथ आपसी आत्मविश्वास को मजबूत करने की दिशा में एक मील का पत्थर साबित हुआ। दरअसल, यह अभ्यास तीनों देशों की संयुक्त प्रतिबद्धता का एक प्रदर्शन था, जो अभ्यास के जरिए समुद्री चुनौतियों को दूर करने में मदद करेगा और इस अभ्यास से वैश्विक समुद्री समुदाय को भारतीय-प्रशांत क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा को मजबूत करने में काफी मदद मिलेगी।