समय की मांग है सहमति की राजनीति

| Published on:

एम वेंकैया नायडू

ज जब हम भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और देश की महान विभूतियों में से एक अटल बिहारी वाजपेयी जी की पुण्य स्मृति में श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं तब हमें याद रखना चाहिए कि सुशासन, उत्तरदायी शासन विशेषकर दुर्बल वर्गों के लिए सुगम प्रशासन सदैव अटल जी की प्राथमिकता रही। नि:संदेह वह एक बहुआयामी व्यक्ति थे। एक सहृदय कवि, ओजस्वी वक्ता, करिश्माई राजनेता और इन सबसे बढ़कर एक सौम्य संवेदनशील मानवतावादी। गरीबों और किसानों की समस्याओं के प्रति उनके विशेष आग्रह थे। इस अवसर पर एक उदाहरण स्मरण हो आता है कि किस प्रकार उन्होंने मुझे ग्रामीण विकास मंत्री के तौर पर प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना को बनाने और कार्यान्वित करने के लिए प्रोत्साहित किया, जबकि कैबिनेट के कुछ सहयोगी मंत्रियों का मत था कि ग्रामीण संपर्क सड़कें मूलत: ग्राम पंचायतों के अधीन हैं, लिहाजा संबंधित राज्य सरकारें इस परियोजना के लिए धन उपलब्ध कराएं। ऐसे विरोध को दरकिनार करते हुए अटल जी ने मुझे उस योजना को कार्यान्वित करने की इजाजत दी, जो आज भी ग्रामीण भारत की तस्वीर बदल रही है। सिर्फ ग्रामीण संपर्क ही क्यों, अटल जी की सुशासन की अवधारणा में प्रत्येक क्षेत्र में संपर्क साधनों का विस्तार सम्मिलित था, फिर चाहे वह संचार क्रांति हो या राष्ट्रीय राजमार्ग। इंफ्रास्ट्रक्चर विकास सुशासन के ढांचे की नींव है। इंफ्रास्ट्रक्चर ही एक सुदृढ़ अर्थव्यवस्था को ठोस आधार देता है। स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के अंतर्गत चार मेट्रो शहरों को राजमार्गों से जोड़ा गया जिससे यात्री और माल यातायात त्वरित और सुगम हो सका।

नि:शुल्क प्राथमिक शिक्षा का विस्तार करने हेतु सर्व शिक्षा अभियान प्रारंभ किया। अटल जी के शासन काल में ही तीन नए राज्यों का निर्माण भी हुआ। आखिर सुशासन है क्या? इसके कई आयाम में सबसे महत्वपूर्ण है जनकल्याण को प्रशासन की हर नीति और कार्यक्रम के केंद्र में रखना। सुशासन की यह अवधारणा भारत के लिए कोई नई नहीं है। सुशासन के विभिन्न लक्षणों, विशेषकर राजधर्म की अवधारणा का उल्लेख भारतीय परंपरा के महान ग्रंथों जैसे रामायण, महाभारत, कौटिल्य के अर्थशास्त्र में मिलता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने रामराज्य का उल्लेख किया है जो सुशासन का आदर्श है जहां भेदभाव से परे सभी एक समान हैं। प्रशासनिक निष्पक्षता, पारदर्शिता, जवाबदेही, उत्तरदायित्व, कानून का राज, समानता, समन्वयवादी और कार्यकुशलता-ये सुशासन के मूल तत्व हैं। स्वतंत्र न्यायपालिका और मीडिया, निष्पक्ष कार्यपालिका सुशासन के स्तंभ हैं। आज के डिजिटल युग में प्रशासन को निष्पक्ष और न्यायपूर्ण बनाने के लिए हमें उन पुराने दकियानूसी नियमों, पद्धतियों, प्रक्रियाओं को त्यागना होगा जो निर्णय प्रक्रिया को बेवजह जटिल बनाती हैं अथवा सुविधासंपन्न यथास्थितिवादी अभिजात्य वर्ग के पक्ष में खड़ी प्रतीत होती हैं, विकास प्रक्रिया को बाधित करती हैं और प्रशासन एवं आम नागरिक के बीच विभाजन की एक कृत्रिम दीवार खड़ी करती हैं। मेरा यह मानना है कि जनता को लगना चाहिए कि सरकार द्वारा लिखी जा रही विकास यात्रा में वे भी साझेदार हैं। सरकार के साथ वे भी इस विकास गाथा को लिख रहे हैं।

आज सुशासन प्रदान करने के संकल्प के तहत सरकार ने अनेक कदम उठाए भी हैं। जैसे जनधन योजना, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान, आयुष्मान भारत योजना, जीएसटी, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, स्टैंडअप इंडिया, स्किल इंडिया, दीनदयाल ग्राम ज्योति योजना, फसल बीमा योजना, मुद्रा बैंक, अटल पेंशन योजना आदि। इसी क्रम में नोटबंदी काले धन के खतरे, जिसने एक समांतर अर्थव्यवस्था खड़ी कर रखी थी, को समाप्त करने की दिशा में एक निर्भीक और दिलेर कदम था। काले धन को समाप्त करने के लिए कई देशों के साथ दोहरा कराधान परिहार संधि जैसे कदम भी उठाए गए।

भारत पारदर्शिता और जानकारी आदान-प्रदान को सुनिश्चित करने के लिए ओईसीडी देशों के ग्लोबल फोरम का सदस्य भी है। कई देशों ने काले धन पर उपलब्ध वित्तीय जानकारी भारत से साझा करना स्वीकार भी कर लिया है। भगोड़ा आर्थिक अपराधी बिल में भ्रष्टाचार और कालेधन के निवारण तथा अर्थतंत्र में प्रामाणिकता और पारदर्शिता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इसमें देश छोड़कर भागे आर्थिक अपराधियों को

वापस लाने, मुकदमा चलाने तथा बेनामी संपत्ति सहित उनकी अन्य संपत्तियों को जब्त करने जैसे कठोर प्रावधान हैं। हम इसके सकारात्मक परिणाम देख भी रहे हैं। काले धन और भ्रष्टाचार के निवारण की दिशा में उठाया गया हर कदम न सिर्फ पारदर्शिता बढ़ाएगा, अपितु निवेशकों का विश्वास भी बढ़ाएगा। भ्रष्टाचार को समाज से निर्मूल करने के लिए आवश्यक है कि ईमानदारी और सत्यनिष्ठा जैसे संस्कार बचपन से ही दिए जाएं।

विश्व बैंक के अनुसार विकासशील देशों से 20 से 40 अरब अमेरिकी डॉलर, जो विकास के लिए दी गई कुल सरकारी सहायता का 20 से 40 प्रतिशत है, प्रतिवर्ष उच्चस्तरीय भ्रष्टाचार के कारण चुराकर विदेशों में जमा कर दी जाती है। भ्रष्टाचार के पहले शिकार गरीब होते हैं। भ्रष्टाचार शासनतंत्र की कार्यक्षमता को क्षीण कर देता है। भ्रष्टाचार ग्रस्त देशों में बाल-मृत्यु दर, कम भ्रष्टाचार वाले देशों के मुकाबले 1/3 अधिक होती है। ऐसे देशों में शिशु मृत्यु दर दोगुनी और छात्रों की स्कूली पढ़ाई छोड़ने की ड्राप आउट दर पांच गुनी अधिक होती है। एक ऐसा परिवेश बनाने की आवश्यकता है जिसमें जागरूक नागरिक, व्हिसिल ब्लोअर स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सकें। आज जनधन, आधार और मोबाइल आधारित ‘जैम’ के साथ धन के सीधे खाते में अंतरण की डीबीटी स्कीम लागू होने से बिचौलियों को प्राय: समाप्त करने में सहायता मिली है। इससे बीच में पैसे की चोरी रुकी है और लक्षित लाभार्थी तक योजना के लाभ पहुंचाना सुनिश्चित हो सका है।

भ्रष्टाचार न सिर्फ अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि ईमानदार नागरिकों के विश्वास और निष्ठा को भी डिगाने लगता है। आज भारत विकासशील देशों की श्रेणी से निकलकर विकसित देश बन रहा है। ऐसे में आवश्यक है कि जन केंद्रित प्रशासन और सुधारों को तेज कर, विकास की शक्तियों और संपूर्ण सामर्थ्य को उन्मुक्त किया जाए। हम अपने कीमती संसाधनों को बेकार की लोक-लुभावन योजनाओं पर व्यर्थ नहीं कर सकते। समय की मांग है कि सभी दल मिलकर सुधारों, विकास और देश की सुरक्षा जैसे मुद्दों पर सहमति बनाएं। प्रतिस्पर्धी राजनीति की मजबूरियों को दरकिनार कर अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में उदीयमान भारत के लिए दीर्घकालीन कार्ययोजना आज की प्राथमिकता है। राजनीति और प्रशासन में पारदर्शिता, काले धन और भ्रष्टाचार के दंश का शमन कर सकती है और नागरिकों की सुराज्य की अवधारणा साकार हो सकती है।

अटल जी ने सुधार और विकास के आवेग को मुक्त करने की जो शुरुआत की थी वह बनी रहनी चाहिए। भ्रष्टाचार का मजबूती से दमन किया जाना अपरिहार्य आवश्यकता है। रिफार्म, परफार्म और ट्रांसफार्म ही उज्ज्वल भविष्य के मार्ग हैं। विश्व की शांति और समृद्धि को विषाक्त करने वाले आतंकवाद और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी संगठित रहकर कारगर कदम उठाने होंगे।

लेखक भारत के उप-राष्ट्रपति हैं

(दैनिक जागरण से साभार)