जनता सत्य के निकट रहती है

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प्रभात झा

देश है, तो समस्याएं होंगी। कोई भी देश यह दावा नहीं कर सकता कि उनके देश में कोई समस्या नहीं है। एक समय था जब भारत विश्व के अन्य देशों की समस्याओं का समाधानकारक केंद्र था। हर राष्ट्र की समस्याओं का समाधान का केंद्र बनकर भारत ‘विश्व गुरु’ कहलाता था। स्थिति आज भी वैसी ही बन सकती है। इसमें तो कोई दो मत नहीं। विश्व के जिन नागरिकों को आध्यात्मिक शांति की अपेक्षा होती है, वे एक-दो माह या एक दो वर्षों के लिए भारत के आध्यात्मिक केंद्रों पर आकर रहते ही हैं।

भारत का नागरिक विश्व में अपनी योग्यता और आवश्यकता के कारण जाता है, पर वह शांति प्राप्ति के लिए आज भी भारत में ही रहता है और भारत में आता रहता है।

भारत में आजादी के बाद देश की मूल समस्याओं की ओर शासकों ने ध्यान नहीं दिया। भारत एक विशाल गणतांत्रिक देश है। यहां की मूल समस्याएं नागरिकों से जुड़ी हैं। आज भी उतनी ही ज्वलंत हैं, जितनी पूर्व में रही। देश में पूर्व के लोगों ने, यानी आज़ादी के बाद जो भी शासन में आए, उन्होंने आज़ादी को ही भारत की हर समस्याओं की जीत समझ लिया। आजाद क्या हुए, सब कुछ मिल गया। जबकि सच्चाई यह है कि आजादी मिलने वाले दिन से हमें नागरिकों की नागरिक सुविधाओं से और उनके जीवन शैली के साथ भारत की प्रकृति के अनुसार उन समस्याओं के समाधान की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए था। हम ऐसा नहीं कर पाए, हम आज़ादी के बाद सत्ता में रहते हुए सेवा के माध्यम से सेवा में कैसे आगे आए, के बजाए हम सत्ता के माध्यम से सत्ता में कैसे आएं, इस दिशा में बढ़ते चले गए, यहीं से हमारी समस्याओं की जड़ें गहरी होती गईं।

आजादी के पूर्व जो हममें आजादी प्राप्ति के लिए जुनून और जज्बा था, वह आजादी के बाद नहीं बना रहा। हमने मानव और समाज को केंद्र में रखकर योजनाएं नहीं बनाईं। हमने ‘सत्ता’ को केंद्र मानकर ‘सत्ता’ में आने के लिए योजना बनाते रहे। हमने आजादी के बाद नागरिक को वोटर बना दिया। नागरिक के नाते जो हमारा ‘राष्ट्रीय कर्तव्य’ था, वह धीरे-धीरे लुप्त होते हुए हम वोटर की भूमिका यानी अधिकार के प्रति जागरूक हो गए और कर्तव्यों के प्रति उदासीन होते चले गए। भारत नागरिकों का नहीं, वोटरों का देश बन गया। हम नागरिक बोध से नागरिकों को दूर करते चले गए और उनकी आत्मा में मतबोध का जागरण अधिक करते गए। मतबोध के कारण हम भारतीयों के मन में सत्ता से अपेक्षा बढ़ गयी और समाज के प्रति उपेक्षा का भाव बढ़ता गया।

आजादी के बाद यह वर्षों चला। इसका परिणाम यह हो गया कि एक ही पार्टी की सरकार रही। अन्य राजनैतिक दलों का अस्तित्व धीरे-धीरे बढ़ रहा था। सत्ता आकर्षित नागरिकों में समाज आधारित भाव कम हो गया।

अत: समाज की ओर देखने के बजाए लोग सत्ता की ओर अधिक देखने लगे, जबकि सच्चाई यह है कि समाज ने भारत को आजादी दिलाई, न कि सत्ता ने। समाज, सत्ता की जननी है। सत्ता से समाज की सेवा होती है, न कि निर्माण। ‘समाज’ की उपेक्षा से समाज कमजोर होता गया और सत्ता मजबूत होती गई। जबकि लोकतंत्र की रक्षा और उसकी सुरक्षा के लिए समाज और सत्ता के बीच सदैव संतुलन बने रहना चाहिए। उल्टे अच्छा तो यह कहा जाता है कि समाज का हाथ सत्ता से ऊपर रहे। संतुलित समाज और सत्ता के समन्वय से समाज की रक्षा भी होती है और सत्ता निरंकुश भी नहीं होती।

आजादी के बाद सत्ता में बदलाव भी हुआ पर स्थिति यह हुई कि बदलाव में आयी सत्ता ने जैसे ही कुछ प्रयास शुरू किया, तो लोग उन्हें सत्ता से हटने और हटाने का डर दिखाने लगे। विपक्ष में रहते हुए उस समय के लोग पूर्व के शासकों द्वारा उत्पन्न की गई समस्याओं का स्थायी समाधान तलाशने लगे।

उन्होंने इस भाव से काम शुरू किया कि वे जो करेंगे देश-समाज को अच्छा लगेगा और वह ऐसा करने के लिए सत्ता में बने रहेंगे। पर ऐसा नहीं हुआ। जब तक वो समस्याओं के स्थायी निदान की दिशा में बढ़े, तब तक उन्हीं की चलाचली की बेला आ गई। पांच साल के लिए चुने गए लोग बीच में ही चले गए। ऐसा एक बार नहीं दो-तीन बार हुआ और सत्ता के लिए सत्ता हावी रही और सेवा के लिए सत्ता कमजोर होती चली गई।

सन् 2014 में मई माह में देश में एक नई बयार बही। इस बयार में यह संकेत साफ छलक रहा था कि सत्ता समाज की सेवा के लिए आई है न कि सत्ता की सेवा के लिए। सत्ता को वर्तमान सरकार ने सेवा का माध्यम माना न कि सत्ता में पुन: आने का न्यौता। ‘सत्ता’ में जो समाज आता है, उसे भी विचार करना होगा कि देश में सत्ता सेवा के लिए या सत्ता से सत्ता में आने के लिए। आज जो दल सत्ता में है वह विश्वास से काम कर रहा है कि हम समाज की सेवा करेंगे, तो समाज अपना कर्तव्य अवश्य करेगा।

वर्तमान सत्ता का समाज पर बहुत विश्वास है। सत्ता का समाज पर सामाजिक विश्वास बनाए रखना और सत्ता का समाज पर विश्वास बनाए रखना लोकतंत्र को कभी भी बीमार नहीं होने देता। वर्तमान सत्ताधारी दल के नेता श्री नरेंद्र मोदी ने भारत के नागरिकों के प्रति उनके सामाजिक खुशहाली और उनके राष्ट्रीय गौरव को पूर्णता देने की दिशा में जो कदम उठाए हैं, वे भले ही कठोर हों, पर उसका लंबे अंतराल में आम नागरिकों के होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। विरोधियों की चीत्कार से न घबराते हुए समाज चीत्कार न करे, इसकी चिंता अधिक की गई। वर्तमान के सत्ताधारियों के मन में एक अच्छी बात यह है कि देश की समस्याओं का तात्कालिक समाधान के बजाए मूलत: समाधान हो। यही कारण है कि वर्तमान सरकार निर्भीकता से बड़े से बड़े फैसले लेती जा रही है और देश में जनसहयोग और समाज सहयोग से अपना विस्तार कर रही है।

यह जय-पराजय सत्ता का खेल हो सकता है, परंतु समाज में ‘अपराजेय’ का स्थान जो सत्ता या समाधान बना लेते हैं वह स्थायी हो जाता है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसी दिशा में अपने कदम बढ़ा रहे हैं। उन्होंने कठोर से कठोर निर्णय लेते समय कभी सन् 2019 की चिंता नहीं की। उन्होंने चिंता की तो सिर्फ भारत के 125 करोड़ नागरिकों की। यहां एक बात और स्पष्ट हो जाना चाहिए कि वर्तमान सत्ता के विरोधी चाहे जो आरोप लगाएं और लगवाएं, पर भारत की आजादी के बाद पहली यह नरेंद्र मोदी जी की सरकार है जो जनता की परीक्षा में विशिष्ट योग्यता प्राप्तांकों से निरंतर उत्तीर्ण हो रही है। विरोधी दल जो सोचते हैं, उनके केंद्र में सत्ता है और वर्तमान सत्ताधारी जो निर्णय ले रहे हैं, उनके केंद्र में समाज और उसकी सेवा और राष्ट्र की साख है। पिछले कुछ वर्षों में भारत के पूर्व शासन कर्ताओं ने भारत की साख को राख में मिला दिया था, जबकि वर्तमान मोदी सरकार राख में मिली साख को विश्व में चिंगारी बनाकर अपने राष्ट्र की अखंड ज्योति से विश्व को प्रकाशित करने का कार्य कर रही है। जनतंत्र में जनता जागरूक हुई है।

विपक्षियों को चाहिए कि वह समझे कि जागरूक जनता को अब न सत्ताधारी गुमराह कर सकते हैं और न विपक्ष। जनता जानती है, समाज जानता है कि आने वाले कल में समाज का भविष्य और राष्ट्र का भविष्य किनके हाथों में सुरक्षित है। सत्ताधारी को सतर्क जरूर रहना होगा कि उनके मन में समाज की सेवा का अहंकार न आए और वे जो राष्ट्रीय कर्तव्य के भाव से जो काम राष्ट्र और समाज के लिए कर रहे हैं, उसे और अधिक विनम्रता से करते रहें।

भारत के दो घोष वाक्य हैं- ‘सत्यमेव जयते’, ‘सत्यम शिवम सुंदरम’। इन दोनों घोष वाक्यों की प्रकृति को अपने मन में रखते हुए यदि कार्य करते गए तो न केवल सन् 2019 बल्कि समाज और उन्हें सतत् राष्ट्र कार्य करते रहने का अवसर प्रदान करता रहेगा। यह राष्ट्र सदैव विनम्रता से हर उस व्यक्ति, समाज, संस्था और नेतृत्वकर्ता का ऋणी रहता है, जो उसकी आत्मीय रक्षा के लिए अपने कर्तव्यों को करता रहता है।

(लेखक सांसद एवं भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं)