नहीं रहे विचारक माधव गोविंद वैद्य

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                        (11 मार्च, 1923 – 19 दिसंबर, 2020)

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के वरिष्ठ विचारक और संगठन के प्रथम प्रवक्ता श्री माधव गोविंद वैद्य (बाबूराव) का 19 दिसंबर को 97 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 11 मार्च, 1923 को जन्मे श्री वैद्य को ‘संघ का विश्वकोश’ के रूप में भी जाना जाता था। उन्होंने संगठन को विश्व के सामने एक बहुत ही सरल भाषा में प्रस्तुत किया।

श्री वैद्य देश के संस्कृत भाषा के विद्वानों में शुमार थे। वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बहुत कम जीवित लोगों में से एक थे, जिन्होंने संघ के सभी छह सरसंघचालकों के साथ काम किया। उन्होंने एक सक्रिय, सार्थक और प्रेरक जीवन जीया। वे आठ साल में ही संघ के स्वयंसेवक बन गए तथा 95 वर्ष की आयु तक शाखा में भाग लेते रहे।

शोक संदेश

श्री माधव गोविंद वैद्य के निधन पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने एक शोक संदेश में कहा कि संस्कृत के प्रगाढ़ विद्वान, उत्तम पत्रकार, विधान परिषद के सक्रिय सदस्य, उत्कृष्ट साहित्यिक, ऐसी सारी बहुमुखी प्रतिभा के धनी, बाबूराव जी ने यह सारी गुण संपदा संघ में समर्पित कर रखी थी। वे संघ कार्य विकास के सक्रिय साक्षी रहे। उनका जीवन व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक तथा आजीविका इन चतुर्विध आयामों में संघ संस्कारों की अभिव्यक्ति करने वाला संघानुलक्षी, संपन्न व सुंदर गृहस्थ जीवन था। सरल भाषा में तर्कशुद्ध रीति से व अनुभूतिमूलक विवेचन से संघ को अपनी वाणी और लेखनी द्वारा वे जगत में सर्वत्र प्रस्तुत करते रहे।

संघ ने शोक संदेश में कहा कि श्री वैद्य जी का पूरा परिवार आज एक विस्तृत छत्रछाया का अभाव अनुभव कर रहा है। हम सबका तथा उनका सांत्वन करना कठिन है। समय ही उसका उपाय है। बाबूराव जी का जीवन हम सबको हर अवस्था में अपने कर्तव्य पालन का कार्य अविचल और अडिग रीति से करना सिखा रहा है।

श्री वैद्य के निधन पर प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने शोक व्यक्त करते हुए ट्वीट किया कि श्री एमजी वैद्य जी एक प्रतिष्ठित लेखक और पत्रकार थे। उन्होंने दशकों तक संघ में व्यापक रूप से योगदान दिया। उन्होंने भाजपा को मजबूत करने के लिए भी काम किया। उनके निधन से दु:खी हूं। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना। ओम शांति।

भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री जगत प्रकाश नड्डा ने शोक व्यक्त करते कहा कि श्री एमजी वैद्य ने मां भारती की सेवा में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित कर दिया। वे जीवनपर्यंत सामाजिक समरसता तथा राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोने के लिए प्रयासरत रहे। उनका जाना संपूर्ण समाज के लिए अपूरणीय क्षति है।