तीन तलाक का खात्मा

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कैलाश विजयवर्गीय

तलाक, तलाक, तलाक। भारत में मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी को जहन्नुम बनाने वाले इन लफ्जों पर भारत की सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी और गैर इस्लामी बताते हुए रोक लगा दी। तीन तलाक के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले से भारत में मुस्लिम महिलाओं को अब समाज में बराबरी का दर्जा हासिल होगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के स्वागत में पूरे देश में मिठाइयां बांटी जा रही हैं। मुस्लिम महिलाओं को मिले इंसाफ को पूरे देश में जोरदार समर्थन मिला है। पाकिस्तान और बांग्लादेश समेत 22 देशों में तीन तलाक को बहुत पहले से गैरकानूनी करार देने के बावजूद भारत में कुछ कट्टरपंथियों ने खुदा का डर दिखाकर मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी को जहन्नुम बना कर रखा था।

सप्रीम कोर्ट के फैसले से कुरान की जीत हुई है और तमाम कट्टरपंथियों को जोर का तमाचा लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने छह महीने के दौरान तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन तलाक के खिलाफ जंग छेड़ रखी थी। भारतीय जनता पार्टी ने भी मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक के कलंक से बचाने का वायदा किया था। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की लड़ाई की जीत हुई है। मुस्लिम महिलाओं ने कट्टरपंथियों के इन आरोपों को कि यह भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एजेंडा था, पूरी तरह नकारते हुए मिले इंसाफ पर पूरे देश में मिठाइयां बांटी हैं। मुस्लिम महिलाओं को मिले इंसाफ से भारत में महिला अधिकारों का एक नया युग शुरु हुआ है। तीन तलाक के खिलाफ मुहिम छेड़ने वाली सभी महिलाओं को मुबारकबाद।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा सुनाए गए फैसले पर खुशी जताई है। उन्होंने कहा है कि तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला ऐतिहासिक है। यह मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का हक प्रदान करता है तथा महिला सशक्तीकरण की तरफ एक बड़ा कदम है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने भी अन्याय के खिलाफ लड़ने वाली महिलाओं को जीत पर बधाई दी है। यह मुस्लिम महिलाओं के लिए हैरानी की बात है कि 1985 में इंदौर की रहने वाली शाहबानो के अपने शौहर से गुजारा भत्ता पाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जीती लड़ाई को संसद में पलटने वाली कांग्रेस के नेता आज सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत कर रहे हैं। 32 साल तक मुस्लिम महिलाओं को कांग्रेस की महिला विरोधी नीतियों और कट्टरपंथियों का समर्थन करने के कारण दोजख की आग में जलना पड़ा। शाहबानो को सुप्रीम कोर्ट से मिले इंसाफ को तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने एक साल के अंदर मुस्लिम महिला (तलाक में संरक्षण का अधिकार) अधिनियम, (1986)पारित कर अन्याय में बदल दिया था। इंदौर की रहने वाली मुस्लिम महिला शाहबानो को उसके पति मोहम्मद खान ने 1978 में तलाक दे दिया था। पांच बच्चों की मां 62 वर्षीय शाहबानो ने गुजारा भत्ता पाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी और पति के खिलाफ गुजारे भत्ते का केस जीत भी लिया। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पुरज़ोर विरोध किया। कट्टरपंथियों को तो यह फैसला अब नागवार गुजरा है।

1986 में संसद के बल पर कांग्रेस ने मुस्लिम महिलाओं के हकों को छीन तो लिया, पर पूरे देश में तब से ही तीन तलाक के खिलाफ मुहिम तेज हो गई थी। बार-बार उठी आवाजों को हुक्मरान कुचलते रहे। मुस्लिम महिलाओं में तीन तलाक के खिलाफ नफरत को मैंने कई बार चुनाव प्रचार के दौरान महसूस किया। उत्तर प्रदेश विधानसभा के पिछले चुनाव के दौरान मुस्लिम महिलाओं ने मुस्लिमों के रहनुमा बनने वाले राजनीतिक दलों को नकार दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की कुरीति से बाहर निकालने के वायदे पर तेज प्रतिक्रिया हुई। मुस्लिम महिलाओं का भाजपा को समर्थन मिला। मार्च 2016 में उत्तराखंड की शायरा बानो नामक मुस्लिम महिला ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके तीन तलाक, हलाला निकाह और बहु-विवाह की व्यवस्था को असंवैधानिक घोषित किए जाने की मांग की थी। बानो ने मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन कानून 1937 की धारा 2 की संवैधानिकता को चुनौती दी थी। कोर्ट में दाखिल याचिका में शायरा ने कहा है कि मुस्लिम महिलाओं के हाथ बंधे होते हैं और उन पर तलाक की तलवार लटकती रहती है। वहीं पति के पास निर्विवाद रूप से अधिकार होते हैं। तीन तलाक को भेदभाव और बराबरी के अधिकार के खिलाफ बताया गया। सभी मुस्लिम धार्मिक नेता भी मानते हैं कि तीन तलाक कुरान के खिलाफ हैं। माना जाता है कि तीन तलाक की यह कुरीति सऊदी अरब से भारत पहुंची। सऊदी अरब के शेख अपनी अय्याशी के लिए इस तरह की हरकतें करते रहे हैं। भारत के मुसलमान भी उसी तरह चलने लगे। तीन तलाक के लिए शरीयत का सहारा लिया गया। सुप्रीम कोर्ट में तीन न्यायाधीशों ने तीन तलाक की प्रथा अंसवैधानिक बताया और दो जज इसके विरोध में रहे। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि वह तीन तलाक पर कानून बनाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर छह महीने में कानून नहीं बनाया जाता है, तो तीन तलाक पर शीर्ष अदालत का आदेश जारी रहेगा। कोर्ट ने कहा कि इस्लामिक देशों में तीन तलाक खत्म किए जाने का हवाला दिया और पूछा कि स्वतंत्र भारत इससे निजात क्यों नहीं पा सकता। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भारत में भी मुस्लिम महिलाएं अब बराबरी का अधिकार मिलने के बाद खुली हवा सांस ले सकेंगी।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव हैं)