‘आदिवासी देशभक्तों को पुष्पांजलि नहीं, कार्यांजलि दे रही है भाजपा’

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मेरा मानना है कि देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में जनजाति और दलित समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है और उन्होंने अनेक बलिदान दिए, परन्तु दुर्भाग्यवश इतिहासकारों ने उन्हें वह मान्यता नहीं दी जिसके वह हकदार थे। अगर हम झारखंड की बात कहे तो भगवान बिरसा मुंडा, सिद्धु कान्हु, नीलाम्बर, पीताम्बर, गया मुंडा और तेलंगा खडिया इत्यादि जैसे अनेक देशभक्त आदिवासी सूरमाओं ने देश के लिए बलिदान देकर झारखण्ड और मां भारती की सेवा की।

अमित शाह

पार्टी के संगठनात्मक कार्य के लिए आयोजित विस्तृत प्रवास के अंतर्गत मुझे हाल में भगवान बिरसा मुंडा की धरती झारखंड में तीन दिन बिताने का अवसर मिला। इसी दौरान 17 सितम्बर को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के जन्मदिन के शुभ अवसर पर मनाये जा रहे “सेवा दिवस” को मैं भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली को नमन करने खूंटी जिला स्थित उनके पैतृक गांव उलिहातू गया जहां मुझे उनके वंशजों को सम्मान देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। सेवा दिवस के अंतर्गत मुझे उलीहातू गांव के सर्वांगीण विकास की विभिन्न परियोजनाओं का शिलान्यास करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। झारखण्ड सरकार ने उलीहातू जैसे शहीदों की जन्मभूमि रहे 19 गांवों के सर्वांगीण के विकास के लिए “शहीद ग्राम विकास योजना” बनाई है। इस योजना के अंतर्गत इन गावों की बिजली, पानी, सड़क, पक्का आवास, स्वास्थ्य केंद्र इत्यादि जैसी मूलभूत आवश्यकताओं को आदर्श रूप से विकसित किया जाएगा। मेरा मानना है कि झारखंड सरकार ने पूर्व में पारंपरिक रूप से शहीदों को दी जाने वाली पुष्पांजलि को विकास का रंग देकर इसे कार्यांजलि में बदल दिया है। मैं झारखण्ड सरकार और उसके मुखिया श्री रघुबर दास को शहीदों को सम्मान देने के इस अनूठे प्रयास के लिए बधाई देता हूं।

मेरा मानना है कि देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में जनजाति और दलित समाज का महत्वपूर्ण योगदान रहा है और उन्होंने अनेक बलिदान दिए, परन्तु दुर्भाग्यवश इतिहासकारों ने उन्हें वह मान्यता नहीं दी जिसके वह हकदार थे। अगर हम झारखंड की बात कहे तो भगवान बिरसा मुंडा, सिद्धु कान्हु, नीलाम्बर, पीताम्बर, गया मुंडा और तेलंगा खडिया इत्यादि जैसे अनेक देशभक्त आदिवासी सूरमाओं ने देश के लिए बलिदान देकर झारखण्ड और मां भारती की सेवा की। भगवान बिरसा मुंडा ने तो सिर्फ 20 वर्ष की अल्पायु में लगान माफी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ आन्दोलन किया और दो वर्षों तक कारागार में रहे। जेल से बाहर आ कर उन्होंने अंग्रेजों से लड़ने के लिए मुंडा सेना गठित की और अनेकों अवसरों पर अंग्रेजों के दांत खट्टे किये।
आज भारत में लगभग 9% आबादी आदिवासियों की है जो कि देश के हर कोने में विभिन्न नामों से जाने जाते है। हमारा देश तरह-तरह की संस्कृति, भाषाओं, वेश-भूषाओं और खान-पान का एक रंगीन गुलदस्ता है और हमारा आदिवासी समाज इस गुलदस्ते का सबसे अनिवार्य और सुन्दर पुष्प है। अपने सार्वजनिक जीवन में मुझे देश के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले आदिवासी भाइयों और बहनों से मिलने और उनकी जीवन शैली को नजदीक से देखने का अवसर मिला। मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि हमारी सभ्यता के संवर्धन में आदिवासियों की अहम भूमिका है क्योंिक उन्होंने आज भी अपने रीति-रिवाजों को संभाल कर रखा है।

सुदूर इलाकों में बसने और पूर्व की सरकारों की उपेक्षा के कारण दुर्भाग्यवश हमारे आदिवासी समाज का अभी तक वांछित विकास नहीं हो सका है। पिछले 70 वर्षों में सरकारों ने प्राकृतिक और खनिज संपदा से परिपूर्ण आदिवासी इलाकों का दोहन तो खूब किया, परन्तु असंतुलित नीतियों की वजह से इस संपत्ति का लाभ इन इलाकों में रहने वालों का नहीं मिल पाया। जंगल और पहाड़ उजड़ते गए, परन्तु न तो वनवासियों क्षेत्रों के मूलभूत ढांचे को विकसित किया गया और न ही उनके पर्यावरण की सुरक्षा के प्रयास किये गए। वनवासियों से उनके प्राकृतिक संसाधन तो लगातार छीने जाते रहे, परन्तु बदले में न उन्हें रोजगार मिले और न ही उनका विकास हो पाया। परिणाम स्वरूप देश का आदिवासी विकास की दौड़ में बहुत पीछे छूट गया।

जल, जंगल और जमीन का संवर्धन पहले भारतीय जनसंघ और बाद में भारतीय जनता पार्टी की प्राथमिकता रही है। वास्तव में जनसंघ का जन्म ही “विकास के भारतीय मॉडल” के मुद्दे पर हुआ था, जिसके केंद्र में पाश्चात्य तर्ज पर विकास की अंधी दौड़ से हट कर भारतीय सभ्यता के संवर्धन के साथ विकास था। अतः भाजपा के वैचारिक मूल में ही जंगल और जनजातियों के विकास को प्राथमिकता दी गयी है। लम्बे समय तक सरकार में न रहने के बावजूद भाजपा और उसके वैचारिक परिवार के वनवासी कल्याण आश्रम जैसे अनेक संगठनों ने जनजातियों के विकास अविरल प्रयास किये हैं। पूर्व में जनजातीय विकास कार्यों को सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अंतर्गत किया जाता था और इस विषय के लिए कोई समर्पित मंत्रालय नहीं था। यह पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की सोच थी कि आदिवासियों के विकास के लिए उन्होंने एक पृथक “जनजातीय कार्य मंत्रालय” की स्थापना 1999 में की।

केंद्र की मोदी सरकार ने जनजातियों के विकास के लिए कई कदम उठाये हैं, जिनमे से सबसे प्रमुख 2014 में शुरू की गई “वनबन्धु कल्याण योजना” है, जिसके अंतर्गत जनजाति आबादी वाले विकास प्रखंडों में अनेक काम किये जा रहे हैं। जैसाकि मैनें पहले भी कहा कि जनजाति इलाकों की प्राकृतिक संपदा का लाभ स्वयं को न मिल पाना इन क्षेत्रों के विकास में प्रमुख बाधा रहा है। मोदी सरकार ने इस नीतिगत विसंगति का संज्ञान लेते हुए The Mines and Mineral (Development and Regulation) Act, 1957 में संशोधन करके 2015 में District Mineral Foundation (DMF) की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य खनन से प्रभावित क्षेत्रो के कल्याण के लिए काम करना है। जिसके अंतर्गत खनन से होने वाली आय की 10% रॉयल्टी कोष से “प्रधानमंत्री खनिज क्षेत्र कल्याण योजना” (PMKKKY) 2015 में शुरू की गई है। मुझे यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि अभी तक District Mineral Foundation (DMF) में 9,100 करोड़ रुपये जमा हो चुके हैं, जो कि खनन प्रभावित क्षेत्रों में जहां बहुतायत आदिवासी रहते हैं, के विकास में खर्च किये जायेंगे।

मेरे गृह प्रदेश गुजरात में भी 14 जनजाति बाहुल्य जिले हैं। भाजपा की गुजरात सरकार ने लम्बे समय से आदिवासियों के विकास के लिए प्रयास किये हैं और मुझे बताते हुए असीम संतोष है कि आज प्रदेश के बजट का 14.75% सिर्फ जनजातियों के विकास के लिए समर्पित है। भाजपा सरकारों के प्रयास का फल है कि गुजरात के जनजाति क्षेत्र विकास के किसी भी पैमाने में प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से पीछे नहीं है।

समस्त देश के साथ जनजातियों को भी 1947 में अंग्रेजों से स्वराज तो मिल गया, परन्तु जनजातियों के वास्तविक स्वराज का समय अब आया है जिसके लिए भारतीय जनता पार्टी और मोदी सरकार कटिबद्ध है।

मुझे पूर्ण विश्वास है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार जिस तरह से काम कर रही है उससे पूर्वोत्तर के साथ-साथ संपूर्ण देश में जनजाति बाहुल्य क्षेत्रों का सर्वागीण विकास होगा और उनकी स्वराज से सुराज की यात्रा शीघ्र पूरी होगी।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)