किसानों का भविष्य संवारने की कोशिश

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एम एस स्वामीनाथन

देश में पहली बार राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन वाजपेयी सरकार के समय तत्कालीन कृषि मंत्री राजनाथ सिंह द्वारा किया गया था। बाद में कृषि मंत्री बने शरद पवार ने मुझे किसान आयोग का अध्यक्ष बनने का न्योता दिया। इस आयोग ने एक रिपोर्ट तैयार की, जिसमें न केवल कृषि की प्रगति, बल्कि किसान परिवारों के आर्थिक कल्याण के लिए सुझाव भी दिए गए। इस आयोग ने किसानों के लिए एक राष्ट्रीय नीति भी प्रस्तुत की। राष्ट्रीय किसान आयोग द्वारा किसानों के कल्याण के लिए कुछ महत्वपूर्ण लक्ष्य निर्धारित किए गए थे। इनमें प्रमुख हैं :

-किसानों के लिए न्यूनतम शुद्ध आय सुनिश्चित करते हुए उनकी आय में वृद्धि को कृषि की प्रगति का मापदंड बनाना। भूमि सुधार के अधूरे एजेंडे को पूरा करना और संपत्ति एवं कृषि सुधार शुरू करना। किसानों के लिए सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था और सहायता सेवाएं विकसित करना और उनकी शुरुआत करना। भूमि, जल, जैव विविधता और जलवायु संसाधन का संरक्षण करना।

-ग्रामीण भारत में समुदाय-आधारित खाद्य, जल और ऊर्जा सुरक्षा व्यवस्था को विकसित करना और प्रत्येक शिशु, महिला और पुरुष के स्तर पर पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करना। ऐसे उपाय करना जिनसे कृषि को आर्थिक रूप से लाभदायक बनाते हुए युवा खेती के लिए प्रेरित हों।

-कृषि पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धतियों को पुनर्गठित करना, ताकि प्रत्येक कृषि और गृह विज्ञान स्नातक उद्यमी बनने के योग्य हो सके। जैव-तकनीकी एवं सूचना-संचार प्रौद्योगिकी के माध्यम से विकसित उत्पादों एवं प्रक्रियाओं के लिए भारत को एक वैश्विक आउटसोर्सिंग हब बनाना।

किसान आयोग की रिपोर्ट 2006 में प्रस्तुत की गई, परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार के कार्यग्रहण करने तक इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। पिछले चार वर्षों के दौरान, किसानों की स्थिति और आमदनी में सुधार के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं, जैसे कि…

-कृषि मंत्रालय का नाम बदलकर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय करना, ताकि कृषि की प्रगति के उपाय के तौर पर कृषक कल्याण के महत्व पर जोर हो।

-सभी किसानों को स्वॉयल हेल्थ कार्ड जारी करना जिससे संतुलित पोषण अपनाने को बढ़ावा मिल सके। मिट्टी का स्वास्थ्य (उर्वरता) पौधे के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है और पौधे का स्वास्थ्य मानव स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के माध्यम से लघु-सिंचाई को बढ़ावा देने के लिए बजटीय एवं गैर-बजटीय संसाधनों का आवंटन। राष्ट्रीय गोकुल मिशन के माध्यम से स्वदेशी नस्ल की पशुओं का संरक्षण। प्रधानमंत्री ने पहले इंटरनेशनल कांग्रेस ऑन एग्रो-बायोडाइवर्सिटी का भी शुभारंभ किया। इलेक्ट्रानिक राष्ट्रीय कृषि बाजार के माध्यम से ऑनलाइन टेड को बढ़ावा देना, जो विभिन्न कृषि बाजारों को एक साथ लाने में मदद करता है। ग्रामीण कृषि बाजारों के निर्माण से उपभोक्ताओं को खुदरा और थोक दोनों रूप में सीधी बिक्री का अवसर प्राप्त होगा।

-कृषि क्षेत्र को बढ़े हुए संस्थागत ऋण के लिए कृषि उत्पाद और पशुधन विपणन अधिनियम, 2017 और कृषि उत्पाद और पशुधन विपणन अधिनियम, 2018 पेश करना। किसान आयोग की सिफारिश के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करना। एमएसपी पर और ज्यादा फसलों की खरीद को सुनिश्चित करना।

-सार्वजनिक वितरण प्रणाली, मिड-डे मील आदि सहित कल्याणकारी कार्यक्रमों में प्रोटीन से भरपूर दालों और पौष्टिक बाजरे को शामिल करना।
-कृषक परिवारों के लिए अतिरिक्त रोजगार और आय जुटाने के लिए मुधमक्खी-पालन मशरूम की खेती, बांस उत्पादन, कृषि-वानिकी, वर्मी-कम्पोस्ट और कृषि-प्रसंस्करण जैसी गतिविधियों के जरिये किसानों की आय बढ़ाना। चल रही सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने, डेयरी कॉओपरेटिव के इंफ्रास्ट्रक्चर को आधुनिक बनाने और अंतर्देशीय और समुद्री मत्स्यपालन को बढ़ाने के लिए कई कॉर्पस फंड तैयार करना।

किसान आयोग की सिफारिश के आधार पर ही सरकार द्वारा लाभकारी मूल्य की हाल की घोषणा एक महत्वपूर्ण कदम है। सरकार ने यह सुनिश्चित किया है कि खरीफ की अधिसूचित फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य लागत का कम से कम 150 प्रतिशत होगा। यदि उन सभी योजनाओं को जिनकी प्रधानमंत्री द्वारा परिकल्पना की गई है, प्रभावी तरीके से क्रियान्वित किया जाता है तो इससे कृषि और किसानों का भविष्य इस तरह से बनाया जा सकेगा जिससे भारत खाद्य और पोषण सुरक्षा, दोनों में अग्रणी बन सकेगा। किसानों की बड़ी मांगों में कर्ज माफी और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर स्वामीनाथन समिति की सिफारिशों पर अमल है। इन दोनों पर समुचित ध्यान देने के साथ ही उचित कार्रवाई भी की जा रही है। यदि कृषि के लिए उठाए गए कदमों पर केंद्र और राज्य मिलकर सही तरह अमल करते हैं, तो किसानों की संपन्नता के साथ कृषि का विकास सुनिश्चित हो सकता है।

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