सार्वभौमिक विद्युतीकरण : सरकार ने जो कहा वह किया

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आर के सिंह

मने देश की जनता को 24 घंटे बिजली देने का एक बहुत ही महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य अपने लिए निर्धारित किया है और जिस हाल में हमें यह व्यवस्था मिली थी, उसमें केवल घरों तक बिजली के तार पहुंचाना ही नहीं था, बल्कि एक विश्वसनीय आपूर्ति तंत्र स्थापित करने के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे को भी तैयार करना था। लेकिन आज हम अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सही रास्ते पर हैं और यह बदलाव ऐसा है जैसे दुनिया में पहले कहीं नहीं देखा गया है।

हमने 28 अप्रैल 2018 को 100% गांव तक बिजली पहुंचाने के अपने लक्ष्य को हासिल कर लिया है, जो सार्वभौमिक विद्युतीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह लक्ष्य केवल शेष 18,500 गांवों को बिजली नेटवर्क से जोड़ने का नहीं था, बल्कि आजादी के 70 वर्ष के बाद भी अंधेरे में जीवन जीने को मजबूर गरीब परिवारों तक उम्मीद की एक नयी किरण पहुंचाने जैसा था। इसमें शामिल चुनौतियां बड़ी थीं और इन चुनौतियों के चलते ही ये गांवों आज तक रोशन नहीं हो पाए। इनमें से अधिकतर गांव दूरदराज पहाड़ी इलाकों, वन क्षेत्रों और एलडब्ल्यूई गतिविधियों से गंभीर रूप से प्रभावित थे। वहीं ऐसे दुर्गम इलाकों तक उपकरणों और मजदूरों को पहुंचाना बेहद ही चुनौतीपूर्ण कार्य था, जिसकों पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्प और प्रतिबद्धता की आवश्यकता थी। लेकिन हम रुके नहीं और निरंतर एक के बाद एक चुनौतियों का सामना करते हुए अपने लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते रहे। ऐसे ही लगभग 350 गांव जिसमें अरुणाचल प्रदेश (272), जम्मू-कश्मीर (54), मेघालय (9) और मणिपुर (12) जहां उपकरणों और अन्य जरूरी साजो-सामान को पहुंचाने के लिए लगभग 10 दिनों तक पैदल चलने की आवश्यकता पड़ी। जम्मू-कश्मीर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ गांवों तक सामग्री को हेलीकॉप्टर द्वारा भी पहुंचाया गया। वहीं 2762 रिमोट गांवों में जहां ग्रिड नेटवर्क का विस्तार संभव नहीं था, वहां सौर आधारित स्टैंडअलोन सिस्टम के माध्यम से बिजली को पहुंचाया गया। बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और ओडिशा में 7614 एलडब्ल्यूई गांवों के विद्युतीकरण में भारी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

इन गांवों तक बिजली पहुंचने से इनके सामाजिक और आर्थिक उत्थान का एक नया मार्ग प्रशस्त हुआ है। हमने यह लक्ष्य निर्धारित तिथि से पहले हासिल किया है, जिससे हमे बेहद संतुष्ट है। इस कार्यक्रम ने प्रभावी सहकारी संघवाद का एक उम्दा उदाहरण भी स्थापित किया है, जिसमें केंद्र सरकार, राज्य सरकारों, वितरण कंपनियों और प्रशासन ने इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मिलकर काम किया।

अब हमारा अगला कदम था, प्रत्येक घर तक बिजली पहुंचाना। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रत्येक घर तक बिजली पहुंचाने के उद्देश्य से सितंबर 2017 में ‘प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना’ – सौभाग्य योजना का शुभारंभ किया। इसके लिए मार्च 2019 का लक्ष्य रखा गया। इस समय-सीमा के अंदर लक्ष्य को हासिल करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है, लेकिन हमने इस चुनौती को स्वीकार किया। जैसा कि इस योजना के नाम में ही अंतर्निहित है कि ‘सहज’ यानी सरल / आसान / प्रयासहीन और ‘हर घर’ यानी सार्वभौमिक विद्युतीकरण, हम इस योजना की इन विशेषताओं को लेकर आगे बढ़े। इस पैमाने पर एक लक्षित कार्यक्रम दुनिया में और कहीं देखने को नहीं मिलता। इस कार्यक्रम की गति और नवाचार के मामले में इसकी प्रगति अनुकरणीय है। हम हर दिन एक लाख घरों को रोशन कर रहे हैं। इन घरों में जब बिजली पहुंचती है तो वहां मौजूद लोगों के चेहरे की खुशी को शब्दों मे बयान नहीं किया जा सकता। हमने 19 नवंबर 2018 तक सौभाग्य योजना (जो अक्टूबर 2017 में शुरू हुई) के तहत 2 करोड़ परिवारों को रोशनी किया है।

विश्वसनीय और गुणवत्तापूर्ण विद्युत सप्लाई के लिए देश के अंतिम छोर तक कनेक्टिविटी प्रदान करना, वितरण के ढांचे को मजबूत करना, मीटरिंग, आईटी और स्वचालन जैसे विषय भी उतने ही महत्वपूर्ण हो जाते है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारत सरकार क्रमशः ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीजीजीवाई) और एकीकृत विद्युत विकास योजना (आईपीडीएस) के तहत राज्यों को वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है। इन योजनाओं के तहत 1,40,000 करोड़ रुपये की परियोजनाएं को शुरू किया जा चुका है। वहीं इन योजनाओं के तहत 1204 उप—स्टेशनों का निर्माण, मौजूदा 1601 उप—स्टेशनो की क्षमता का विस्तार, 1,61,101 ट्रांसफार्मरों की स्थापना, 1,11,734 किमी एचटी लाइनों और 98028 किलोमीटर एलटी लाइन का कार्य पूरा किया जा चुका है।

इन योजनाओं के तहत उठाए गए कदमों के साथ ही उज्जवल डिस्कॉम एशोरेनश योजना (यूडीएई) के तहत अपनाए सुधारों के चलते 24 घंटे बिजली आपूर्ति के हमारे लक्ष्य को बल मिल रहा है। यूडीएई योजना के लागू होने के बाद (i) एग्रीगेट टेक्निकल एंड कमर्शियल लॉसेस (एटी और सी) 20.77% से घटकर 18.72% पर आ गया है। (ii) एसीएस-एआरआर का (आपूर्ति की औसत लागत – औसत राजस्व प्राप्ति) अंतर 60 पैसे/यूनिट से घटकर 17 पैसा/यूनिट पहुंच गया है। (iii) ब्याज पर 31,800 करोड़ रुपए की बचत और क्षति से होने वाले नुकसान 51575 करोड़ रुपये से घटकर 15132 करोड़ रुपये हो गया है। कोयले, माल ढुलाई और अन्य लागतों में वृद्धि के बावजूद बिजली की कीमतों को लगभग स्थिर रखने के लिए एनटीपीसी और अन्य प्रमुख कंपनियों को बधाई दी जानी चाहिए।

सरकार के निरंतर प्रयासों के चलते विश्व बैंक की ‘ईज ऑफ़ गेटिंग इलेक्ट्रिसिटी’ रैंकिग में आज हम 24वें स्थान पर पहुंच गए है, जबकि साल 2014 में हम 111वें स्थान पर थे। यह इस दिशा में एक बड़ी छलांग है और सरकार के परिणाम उन्मुख दृष्टिकोण को दर्शाता है।

हम ‘वन नेशन वन ग्रिड’ के लक्ष्य को हासिल करने के करीब पहुंच रहे है। पिछले साढ़े चार सालों में ग्रिड निर्माण की गति प्रति वर्ष 24,908 किलोमीटर रही, जबकि इसके पहले के वर्षों में यह रफ्तार केलव 4385 किमी प्रति वर्ष थी। इसका निमार्ण देश भर में बिजली वितरण सुनिश्चित करेगा। वर्ष 2014-18 के दौरान 2.96 लाख एमवीए ट्रांसफार्मेशन कैपेसिटी को मौजूदा तंत्र में जोड़ा गया है। वहीं, टैरिफ आधारित प्रतिस्पर्धी बोली-प्रक्रिया ने इस प्रणाली में पारदर्शिता और दक्षता लाने का काम किया है।

इस तंत्र में प्रति दिन एक लाख उपभोक्ताओं को जोड़ने के साथ इन महीनों में बिजली की मांग 10% से अधिक की दर से बड़ी है, जिसका सीधा असर हमारी आर्थिक प्रगति पर दिखता है। इस क्षेत्र में जो बदलाव हो रहे है वह बेजोड़ है, लेकिन अभी करने के लिए बहुत कुछ बाकी है। इसको लेकर हमारी सोच स्पष्ट है और हमारा संकल्प भी दृढ़ है। हमारा अनुमान हैं कि अभी लगभग 50 लाख परिवारों तक बिजली पहुंचाना बाकी है और यदि हम वर्तमान गति से इस काम को अंजाम देते हैं तो 100% घरेलू विद्युतीकरण का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए लगभग 50 दिन का समय और लगेगा। दुनिया इस दौरान बड़े ही आश्चर्य और प्रशंसा के साथ हमारी प्रगति को देखा रही है। अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने हमारे इस प्रयास को वर्ष की सबसे बड़ी सफलता की कहानियों में से एक कहा है।

देश में बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए उत्पादन क्षमता को बढ़ाना भी स्वभाविक है। पिछले 4 वर्षों के दौरान मौजूदा उत्पादन क्षमता में 1 लाख मेगावाट की वृद्धि की गई है। इससे ऊर्जा की कमी को 4.2% से घटाकर लगभग शून्य (0.7%) तक लाने में हम कामयाब हुए है और पहली बार अपनी घरेलू मांग को पूरा करने के साथ ही भारत बिजली निर्यातक देशों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है। इस क्रम में हमने 7203 एमयू बिजली निर्यात करके नेपाल, बांग्लादेश और म्यांमार जैसे पड़ोसियों की मदद की है।

पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से हमारा उत्पादन स्वच्छ रहे, इसके लिए हमने 2022 तक अक्षय ऊर्जा क्षेत्र में 175 जीडब्ल्यू क्षमता हासिल करने का एक रोडमैप तैयार किया है, जिसमें 100 जीडब्ल्यू सौर ऊर्जा और 60 जीडब्ल्यू पवन ऊर्जा का उत्पादन शामिल है। अक्षय ऊर्जा की कुल क्षमता पिछले साढ़े सालों में दोगुनी हो गई है, जो 34,000 मेगावॉट से बढ़कर 72,000 मेगावॉट पर पहुंच गई है। वहीं पिछले 4 वर्षों में सौर ऊर्जा की क्षमता में 8 गुना का इजाफा देखा गया है। हम अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करने के लिए सही दिशा में चले रहे हैं।

एक ओर जहां हम बिजली उत्पादन में निरंतर वृद्धि कर रहें है, वहीं दूसरी ओर हमें इसके सही और दक्षतापूर्ण उपयोग पर भी बल दे रहे है। इस दिशा में सरकार की नीतियों के माध्यम से उपभोगताओं को जगरूक करने के लिए लगातार ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। उजाला, स्टार लेबलिंग, एनर्जी कन्सेर्वटिव बिल्डिंग कोड, परफॉर्म, अचीव एंड ट्रेड(पीएटी) के माध्यम से ऊर्जा दक्षता को बनाए रखने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। इसी क्रम में पीएटी कार्यक्रम के पहले चक्र के आंकड़े बहुत ही उत्साहवर्धक है और हमें उम्मीद है कि इस कामयाबी को अगले चक्र में भी कायम रखा जाएगा।

                                                                                                                                                           (लेखक केंद्रीय ऊर्जा मंत्री है)