मूल्यपरक शिक्षा और सतत विकास लक्ष्य

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रमेश पोखरियाल ‘निशंक’

दियों पुरानी भारतीय संस्कृति ने संपूर्ण विश्व को परिवार माना है। ‘अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम, उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम।’ संपूर्ण दुनिया में वसुधैव कुटुंबकम का महान विचार लेकर भारत देश ने ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः’ की परिकल्पना को स्वीकार करते हुए संपूर्ण मानवता के कल्याण की प्रार्थना की है। हमारा चिंतन, हमारे दर्शन और हमारे मूल्यों में एक ही भावना परिलक्षित होती है कि संसार में कोई कष्ट में न रहे। एकात्म मानववाद का चिंतन कर हमने समाज में अंतिम छोर के व्यक्ति तक पहुंचने का संकल्प लिया है। पिछड़े, दलित, उपेक्षित वर्ग तक पहुंचना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है।

विश्व बंधुत्व, सामाजिक समरसता, सौहार्द, परोपकार, सहिष्णुता, प्रेम की भावना को हम शिक्षा के माध्यम से आगे बढ़ाने और पुष्पित पल्लवित करने में सक्षम हैं। शिक्षा ही वह माध्यम है जिससे हम समग्र विकास की परिकल्पना को साकार कर सकते हैं। विश्व में शीर्ष पर रहने का श्रेय हमें शिक्षा के माध्यम से ही मिला। विश्व गुरु भारत पुरातन काल में ज्ञान और विज्ञान का नेतृत्व केवल इसलिए कर पाया क्योंकि उसकी शिक्षा सर्वोत्कृष्ट मूल्यों पर आधारित थी। नालंदा, विक्रमशिला, वल्लभी विश्वविद्यालय दुनिया भर के छात्रों और विद्वानों के लिए आकर्षण का केंद्र रहे। सदैव से ही भारत अपनी मूल्यपरक शिक्षा द्वारा वैश्विक कल्याण के साझा उद्देश्यों को साकार करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ एक सकारात्मक और रचनात्मक भूमिका निभाता रहा है। आज के चुनौतीपूर्ण वातावरण में भारत विश्व का तीसरा बड़ा शिक्षा तंत्र होने के नाते तैंतीस करोड़ से ज्यादा विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य निर्माण के लिए कृत संकल्पित है। देश में एक हजार से ज्यादा विश्वविद्यालय और पैंतालीस हजार से ज्यादा डिग्री कालेज हैं।

सतत विकास के तीन स्तंभ आर्थिक विकास, सामाजिक विकास और पर्यावरण संरक्षण स्थिरता और विकास संतुलित करने पर केंद्रित है। मुझे लगता है कि हमें अपने छात्रों को यह सिखाना होगा कि स्थिरता केवल पर्यावरण के बारे में ही नहीं है, बल्कि हमें समग्र विकास के विषय में सोचना है। एक समाज के रूप में, एक राष्ट्र के रूप में हमारे कार्यों से प्रकृति के साथ सामंजस्य कैसे प्राप्त किया जा सकता है, इस बारे में प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ना है। ‘स्थिरता’ की परिभाषा से अपने विद्यार्थियों को अवगत कराना हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। यही कारण था कि जहां हमने अपने परिसरों में सिंगल यूज प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाया है, वहीं ‘एक पेड़ एक छात्र’ अभियान चला कर अपने परिसरों को हरित परिसर बनाने का प्रयास किया है। हम शिक्षा, विज्ञान, पर्यावरण और संस्कृति के क्षेत्र में अंतराष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से शांति के निर्माण के अपने मूल जनादेश को आगे बढ़ाने के लिए कृत संकल्पित हैं। मुझे लगता है कि युगों-युगों से चली आ रही हमारी शिक्षा पद्धति हमारा दर्शन, हमारा चिंतन और हमारा भाव- सब कुछ मानवता के कल्याण के लिए केंद्रित रहता है। ‘असतो मा सदगमयः’ असत्य से सत्य की ओर एवं ‘तमसो मा ज्योर्तिगमयः’ अंधकार से प्रकाश की ओर प्राणी मात्र को ले जाने के लिए हम संकल्पित हैं।

हमारा लक्ष्य है कि प्रत्येक बच्चे और नागरिक को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्राप्त हो। हम समग्र शिक्षा के माध्यम से, शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 को लागू कर समस्त भारत में बच्चों तक शिक्षा पहुंचाने का उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं। तैंतीस वर्षों के अंतराल में हम देश के शैक्षिक क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन करने वाली नई शिक्षा नीति लाने के लिए कृत संकल्पित हैं। हमारी नई शिक्षा नीति गुणवत्तापरक, रोजगारपरक है, नवचारयुक्त, कौशलयुक्त है, सामाजिक सरोकारों से युक्त है, व्यावहारिक और शोधपरक है और पर्यावरण की रक्षा में उल्लेखनीय योगदान देने वाली है।

भारत विश्व के सबसे बड़े सार्वजनिक लोकतांत्रिक परामर्श अभियान से नई शिक्षा नीति को कार्य रूप देने की ओर गतिशील है। लगभग सवा दो लाख लोगों के सुझाव इस बात का परिचायक हैं कि हमने शिक्षा नीति को अंतिम रूप देने के लिए सभी हितधारकों तक पहुंचने का प्रयास किया है। विद्यार्थी, अध्यापक, विद्यालय प्रबंधन, प्रशासक, नीति निर्माता, जनप्रतिनिधि एवं गैर सरकारी संगठनों समेत हमने हर वर्ग तक पहुंचने में सफलता पाई है। सतत विकास के लक्ष्य को प्राप्त करने में यह नीति सफल साबित होगी। हमारा लक्ष्य है कि आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग कर शिक्षा को नवाचार युक्त गुणवत्तापरक बनाया जाए। भारत उच्च शिक्षा नीति को गुणात्मक एवं वहनीय बनाने के लिए दृढ़ संकल्पित है।

स्वयं पोर्टल के माध्यम से हम भारत के ही नहीं, बल्कि विदेशी छात्रों को भी निशुल्क उच्च शिक्षा देने के लिए प्रयासरत हैं। भारत के ही एक करोड़ तेईस लाख छात्र स्वयं पोर्टल के तहत शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। विज्ञान भारती एवं ‘आरोग्य भारती’ के माध्यम से हम ज्ञान के भंडार को निशुल्क बांटने के लिए प्रतिबद्ध हैं। अफ्रीकी राष्ट्रों के साथ हमारा इस संबंध में समझौता हो चुका है। समूचे विश्व के छात्र भारत में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। ‘स्टडी इन इंडिया प्रोग्राम’ के तहत भारत की सौ से ज्यादा सर्वोत्तम शिक्षण संस्थाएं विश्व भर में छात्रों के लिए आकर्षक शिक्षा केंद्र के रूप में उपलब्ध हैं।

शिक्षा के माध्यम से अपनी सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देने और विश्व धरोहर स्थलों के संरक्षण के लिए विद्यार्थियों को जागरूक करना हमारी प्राथमिकता है। भाषा राष्ट्र की अभिव्यक्ति है और भाषा के बगैर राष्ट्र गूंगा है। भाषा के महत्त्व को समझते हुए नई नीति के माध्यम से हम देश की हिंदी, संस्कृत सहित सभी भारतीय भाषाओं को संरक्षित, पुष्पित एवं पल्लवित करने में जुटे हैं।

भारत विज्ञान और प्रौद्योगिकी की मदद से संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए कटिबद्ध है। मानव सभ्यता हमारी आधुनिक जीवन शैली को बनाए रखने के लिए संसाधनों का उपयोग करती है। मानव इतिहास में अनगिनत उदाहरण हैं जहां सभ्यता ने विकास के लिए पर्यावरण को नुकसान पहुंचाया है। हमें क्षति और विनाश से बचाते हुए इस बात को ध्यान में रखना है कि हम प्राकृतिक दुनिया के साथ कैसे तालमेल बिठा सकते हैं।

ब्रिटिश काल के दौरान शुरू हुई मूल्यों की गिरावट लंबे समय तक जारी रही। यह हमारा सौभाग्य रहा कि स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस जैसे सिद्धांतों और मूल्य युक्त नेतृत्व ने हमारा मार्गदर्शन किया। उन्होंने सत्य और अहिंसा के अपने शक्तिशाली मूल्यों के साथ भारत को अपनी ताकत वापस पाने में मदद की। आजादी के सत्तर वर्षों के बाद प्रभावी प्रबंधन और अस्तित्व के लिए इन मूल्यों पर वापस जाने की आवश्यकता है।

मानवता के लिए शिक्षा को संयुक्त रूप से बदलने के लिए अंतरराष्ट्रीय साझेदारी की अनूठी पहल को साकार करने के लिए एवं मानवता के लिए शिक्षा को संयुक्त रूप से बदलने के लिए मैं वैश्विक साझेदारी की आशा करता हूं। आज हम परिवार के अंदर बंट गए हैं, खुद को कंप्यूटर तक सीमित कर लिया है और स्मार्टफोन को अपनी दुनिया बना लिया है। इन जंजीरों से निकलने में बापू के विचार हमारे लिए मददगार साबित हो सकते हैं।

आज के युग में भारत इस तरह की पहल शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, जल और स्वच्छता के क्षेत्र में अन्य देशों के साथ मिल कर करना चाहता है। मैं सभी सम्मानित देशों से अनुरोध करता हूं कि हम सब मिल कर के सतत विकास लक्ष्यों को पूरा करें।

(लेखक केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री हैं। यह लेख यूनेस्को में दिए उनके भाषण का अंश है।)
(जनसत्ता से साभार)