बंगाल-कश्मीर के लिए ऋणी हैं हम

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    कैलाश विजयवर्गीय         

डाॅ. मुखर्जी का बलिदान दिवस

23जून देश के महान् सपूत डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान दिवस है। डॉ. मुखर्जी को हम याद करते हैं ‘एक देश, एक निशान, एक विधान और एक प्रधान’ के संकल्पों को पूरा करने के लिए, कश्मीर में बलिदान देने के लिए। हम उन्हें याद करते हैं पश्चिम बंगाल को पाकिस्तान में जाने से रोकने के लिए, उनके अथक प्रयासों और दूरदर्शिता के लिए। हम उन्हें याद करते हैं आजादी के बाद देश में बेरोजगारी को समाप्त करने के लिए, उद्योगों की स्थापना के लिए। हम उन्हें याद करते हैं कांग्रेस की तमाम गलतियों का विरोध करने के लिए, उनके दृढ़ सकल्पों के लिए। डाॅ. मुखर्जी का हम स्मरण करते हैं कि देश की स्वतंत्रता से पहले और बाद में किए गए उनके कार्यों के लिए। देश की स्वतंत्रता, एकता और अखंडता के लिए उनके कार्यों के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा।

डॉ. मुखर्जी के बलिदान दिवस पर हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम देश में जलते हुए दो राज्यों पश्चिम बंगाल और कश्मीर के हालातों पर गौर करें। इन दोनों राज्यों को भारत में बनाये रखने के लिए डॉ. मुखर्जी का सबसे ज्यादा योगदान है।

डॉ. मुखर्जी 1937 में बंगाल की राजनीति में शामिल हुए। 1937 में भारत सरकार अधिनियम 1935 के अंतर्गत बंगाल हुए चुनाव में किसी दल को बहुमत नहीं मिला था, पर कांग्रेस को सबसे ज्यादा सीटें मिली थीं। मुस्लिम लीग और कृषक प्रजा पार्टी का अच्छी संख्या में सीटें मिली थी। अंग्रेजी हुकूमत ने बड़ी चालाकी से कांग्रेस को साथ लेकर फजलुल हक और मुस्लिम लीग में समझौता करा दिया था। इस समझौते में कांग्रेसी नेता नलिनी रंजन सरकार ने बड़ी भूमिका निभाई थी। उन्हें अंग्रेज गर्वनर का नजदीकी माना जाता था। उस समय कांग्रेस के कारण ही बंगाल में मुस्लिम लीग का सरकार बनी थी। मुस्लिम लीग सरकार ने तुष्टीकरण और साम्प्रदायिकता के आधार पर गंदी राजनीति करते हुए हिन्दुओं की भागीदारी को कम करने की कोशिश की थी। उस समय डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने कांग्रेस की चुप्पी साधने के बावजूद मुस्लिम लीग सरकार की नीतियों का विरोध किया। खासतौर पर मुस्लिम तुष्टीकरण की नीतियों का उन्होंने जमकर विरोध किया।

डॉ. मुखर्जी की राजनीतिक कुशलता के कारण ही 1941 में बंगाल को मुस्लिम लीग सरकार से मुक्ति मिली और फजलुल हक के साथ गठबंधन में नई सरकार बनी। श्यामा-हक सरकार में डॉ. मुखर्जी ने वित मंत्रालय संभाला था। डॉ. मुखर्जी ने अंग्रेज सरकार और मुस्लिम लीग की तमाम कोशिशों को धता बताते हुए सम्पूर्ण बंगाल को पाकिस्तान में जाने से रोका था। डॉ. मुखर्जी न होते तो पश्चिम बंगाल पूर्वी पाकिस्तान का हिस्सा होता। जिस मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति का डॉ. मुखर्जी ने 1937 में विरोध किया था, उसी तरह के हालात पश्चिम बंगाल का कई वर्षों से झेल रहा है। पहले कांग्रेस, फिर वामदलों और अब तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष और राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल की संस्कृति के खिलाफ अभियान चला रखा है। वोटों के लालच में बंगलादेशियों को लाकर गांवों में बसाया जा रहा है। सरकारी संरक्षण में चल रहे अभियान के कारण तमाम गांवों से हिन्दुओं का भागना पड़ रहा है। उनकी बहू-बेटियों की इज्जत के साथ खिलवाड़ करने की धमकी देकर उन्हें घर-बार छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है। ममता बनर्जी हिन्दुओं के साथ उसी तरह की नीति अपना रही है जैसे कश्मीर में शेख अब्दुल्ला ने डोगरों के साथ किया था।

डॉ. मुखर्जी हमेशा मानते थे कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। कश्मीर को भारत से अलग नहीं किया जा सकता है। आज कश्मीर में जो भी खून-खराबा हो रहा है उस सबके लिए केवल कांग्रेस के नेता जिम्मेदार हैं। डॉ. मुखर्जी ने ही यह नारा दिया था कि “एक देश में दो विधान, दो निशान और दो प्रधान, नहीं चलेगा- नही चलेगा”। भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 में उस समय यह व्यवस्था की गई थी कि जम्मू-कश्मीर की सीमा में भारत सरकार के परमिट बिना कोई प्रवेश नहीं कर सकेगा। डॉ. मुखर्जी ने इस परमिट का विरोध किया था। वे कहते थे कि एक तरफ तो प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू कहते थे कि जम्मू-कश्मीर का भारत सौ प्रतिशत विलय हो चुका है और दूसरी परमिट का प्रावधान किया गया है। इसे माना नहीं जा सकता है। देश के किसी नागरिक को जम्मू-कश्मीर में जाने से नहीं रोका जा सकता है। जिस तरह की नीति मुस्लिम लीग ने बंगाल में 1937 से लेकर 1941 के बीच हिन्दुओं के खिलाफ अपनाई उसी तरह की नीति शेख अब्दुल्ला सरकार ने डोगराओं के खिलाफ अपनानी शुरू कर दी थी।

शेख अब्दुल्ला सरकार की हिन्दू विरोधी नीतियों के खिलाफ 1952 में डोगरा समाज के बड़े नेता पंडित प्रेमनाथ डोगरा ने बलराज मधोक के साथ जम्मू व कश्मीर प्रजा परिषद पार्टी बनाई थी। इस पार्टी ने जम्मू-कश्मीर को भारत में जोड़े रखने के लिए बड़ा कार्य किया था। शेख अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर को स्वतंत्र राज्य बनाने की कोशिश में थे। उसी तरह के बयान आज कांग्रेस के नेता दे रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने तीन साल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के साथ राज्य को अच्छा प्रशासन देने और आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई तेज करने के लिए सरकार बनाई थी। महबूबा सरकार आतंकवाद पर काबू करने में बेअसर रही। डॉ. मुखर्जी के बलिदान के कारण ही पाकिस्तान तमाम कोशिशों के बावजूद कश्मीर को भारत से अलग नहीं कर पाया और न ही कभी कर पायेगा। डॉ. मुखर्जी 8 मई 1953 को दिल्ली से ट्रेन में कार्यकर्ताओं के साथ रवाना हुए थे। उस समय अटल बिहारी वाजपेयी भी उनके साथ थे। डॉ. मुखर्जी का रास्ते में जगह-जगह स्वागत किया गया। 10 मई को जम्मू सीमा में घुसने पर डॉ. मुखर्जी को गिरफ्तार कर लिया गया। 23 जून 1953 को रहस्यमयी हालातों में उनका निधन हो गया। डॉ. मुखर्जी की दूरदर्शिता को देखते हुए उस समय अगर धारा 370 को समाप्त कर दिया जाता तो आज कश्मीर के हालात इतने खराब न होते। आज पश्चिम बंगाल और जम्मू-कश्मीर दोनों राज्य जल रहे हैं। जनता परेशान है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि जल्दी ही दोनों राज्यों की जनता की शांति उम्मीद जल्दी पूरी हो।

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री हैं)