चुनावी बॉन्ड क्यों ज़रूरी ?

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अरूण जेटली

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। हालांकि पिछले सात दशकों में कई क्षेत्रों को मजबूत किया गया, लेकिन भारत कभी भी पारदर्शी राजनीतिक फंडिंग प्रणाली विकसित करने में सक्षम नहीं हो पाया। चुनाव और राजनैतिक दल संसदीय लोकतंत्र की मौलिक विशेषताएं हैं। चुनावों में पैसा लगता है। राजनैतिक दलों के साल भर के कामकाजों में काफी व्यय शामिल होता है। पार्टियां देश भर में अपने कार्यालय चलाती हैं। स्टाफ का वेतन, यात्रा व्यय, स्थापना व्यय आदि राजनैतिक पार्टियों के नियमित खर्चे हैं। ऐसा कोई साल नहीं होता जिसमें कोई लोकसभा या विधानसभा चुनाव न होता हो। उम्मीदवारों के निजी खर्च के अलावा राजनैतिक दलों को भी चुनाव प्रचार, यात्रा और चुनाव सम्बंधी अन्य व्यय करने पड़ते हैं। ये खर्चे सैंकड़ों करोड़ तक पहुंच जाते हैं। इसके बावजूद राजनैतिक प्रणाली के लिए कोई पारदर्शी फंडिंग प्रक्रिया नहीं है।

राजनैतिक फंडिंग की परम्परागत प्रणाली दान पर आश्रित है। ये सभी छोटे-बड़े दान अलग-अलग स्रोतों, जैसे – राजनैतिक कार्यकर्ताओं, शुभचिंतकों, छोटे व्यापारियों और यहां तक कि बड़े उद्योगपतियों आदि से आते हैं। राजनैतिक व्यवस्था के वित्तपोषण का पारंपरिक तरीका है – नकद में दान लेना और नकद में ही व्यय करना। दान के स्रोत अज्ञात या छद्म होते हैं। रकम का खुलासा कभी नहीं किया जाता था। वर्तमान प्रणाली अज्ञात स्रोतों से काला धन आना सुनिश्चित करती है। यह पूर्ण रूप से एक अपारदर्शी प्रणाली है। ज्यादातर राजनैतिक समूह इस प्रणाली से संतुष्ट लगते हैं और यदि यह आगे भी जारी रहे तो उन्हें इस बात से कोई आपत्ति नहीं होगी। इसलिए एक वैकल्पिक व्यवस्था को चलाने का प्रयास किया जा रहा है जो राजनैतिक फंडिंग प्रणाली को स्वच्छ करने के लिए तैयार हो।

श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के नेतृत्व वाली पहली एनडीए सरकार के दौरान एक बड़ा कदम उठाया गया था। आयकर अधिनियम को संशोधित किया गया, ताकि उसमें यह प्रावधान जोड़ा जा सके कि राजनैतिक दलों को दिया गया दान खर्च के रूप में माना जाएगा और दानदाता को कर में छूट का लाभ मिलेगा। यदि राजनैतिक पार्टी निर्धारित तरीके से अपने दान का ब्यौरा देगी, तो उसे भी कोई टैक्स नहीं देना होगा। राजनैकि दलों को आयकर प्राधिकरणों और चुनाव आयोग दोनों में अपना आयकर रिटर्न दाखिल करना था। उम्मीद थी कि दानदाता अब चेक के माध्यम से ज्यादातर दान देने लगेंगे। कुछ दानदाताओं ने इसे अपनाना भी शुरू कर दिया था लेकिन अधिकांश दानदाता राजनैतिक दलों को दिए गए अपने दान की रकम का खुलासा करने के इच्छुक नहीं थे।

ऐसा इसलिए था क्योंकि उन्हें विपक्षी पार्टियों से मिलने वाले नकारात्मक परिणामों की चिंता थी। “पास थ्रू” चुनावी ट्रस्ट उपलब्ध कराने के लिए यूपीए सरकार के दौरान यह कानून फिर से संशोधित किया, ताकि दानकर्ता अपने पैसे चुनावी ट्रस्ट में डाल सके जो उसे विभिन्न राजनैतिक दलों में बांट दे। इन दोनों सुधारों के परिणामस्वरूप दान का केवल एक छोटा सा हिस्सा ही चेक के रूप में प्राप्त होना शुरू हो पाया।

इस सुधार प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए गंभीर प्रयास करने के क्रम में, 2017-18 के अपने बजट भाषण में मैंने घोषणा की थी कि मौजूदा व्यवस्था काफी हद तक विस्तारित हो जाएगी और कई मायनों में राजनीतिक दलों को शुद्ध धन दान किया जा सकेगा। चैक द्वारा राजनैतिक चंदा देने के एवज् में दानकर्ता टैक्स में छूट का लाभ उठा सकते हैं और साथ ही दानकर्ता ऑनलाइन माध्यमों द्वारा राजनैतिक दलों को चंदा दे सकते हैं। नकद के रूप में राजनैतिक दलों को दिये जाने वाले चंदे की अधिकतम निर्धारित सीमा 2000/- रुपये है साथ ही हमने चुनावी बॉन्ड योजना की घोषणा की थी। यह योजना राजनैतिक चंदे में सफेद धन के परिचालन के साथ सक्षम रूप से पारदर्शिता का निर्वाह करते हुए राजनैतिक दलों का वित्त पोषण सुनिश्चित करेगी। मैं मानता हूं कि राजनैतिक दलों को दान देने के लिए ऑनलाइन माध्यम और चैक बेहतरीन और आदर्श तरीके हैं, पर दान देने के ये प्रणालियां अभी भारतीय परिप्रेक्ष्य़ में उतनी चलन में नहीं हैं, क्योंकि इनसे दानकर्ता की पहचान सार्वजनिक हो जाती है।

हालांकि, चुनावी बॉन्ड योजना जिसे कुछ दिन पहले मैंने संसद के पटल पर रखा था, में कुल साफ धन और राजनैतिक धन व्यवस्था की प्रणाली में आने वाली पर्याप्त पारदर्शिता की संभावना है। एक दाता किसी बैंकिंग इंस्ट्रूमेंट द्वारा केवल एक निर्दिष्ट बैंक से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है। हमारी इस परिकल्पना से राजनैतिक दलों को सफेद धन मिलेगा, इसके कारण राजनैतिक व्यवस्था में पारदर्शिता का पर्याप्त समावेश रहेगा। दानकर्ता चुनावी बॉन्ड निर्धारित बैंको की किसी भी शाखा से खरीद सकते हैं। दानकर्ताओं को अपने खाते में उस राशि का खुलासा करना होगा जो उसने खरीदी है। बॉण्ड़ जारी होने के बाद पन्द्रह दिनों तक वैध रहेगा। बॉण्ड़ का इस्तेमाल केवल राजनीतिक दलों के पूर्व निर्धारित खाते में धन देने के लिए किया जा सकता है। सभी राजनैतिक दलों को चुनाव आयोग के समक्ष टैक्स रिटर्न में चुनावी बॉण्ड़ के माध्यम से मिलने वाले चंदे का खुलासा करना होगा।

सभी तरह के लेन-देन बैकिंग प्रणाली के माध्यम से किये जायेंगे। वर्तमान परिदृश्य में राजनैतिक चंदा लेने वाले दलों और देने वाले लोगों के मध्य पारदर्शिता का बेहद अभाव है। इसी के तहत सियासी पार्टियों की दान की राशि और व्ययों का लेखा-जोखा सभी अज्ञात है। पारदर्शिता के कुछ तत्व तब अस्तित्व में आएंगे जब दानदाता उस राशि की घोषणा करेंगे, जो उन्होनें बॉण्ड़ के माध्यम से सियासी चंदे के रूप में दी है और सियासी पार्टियां ये स्वीकार करेंगी कि उन्हें किस-किस से और कितना राजनैतिक चंदा मिला है। किसी दानकर्ता ने एक राजनैतिक पार्टी को कितना दान दिया है, यह केवल उस दानकर्ता को ही पता होगा। यह आवश्यक है क्योंकि पिछले अनुभवों से पता चलता है कि एक बार यह घोषित हो गया और दानकर्ताओं को यह योजना आकर्षक नहीं लगी तो वह फिर से नकद में दान देने के अवांछनीय विकल्प पर वापस चले जाएंगे।

एक तरफ नकद दान की मौजूदा प्रणाली है, जिसमें पूरी तरह से अशुद्ध पैसा शामिल है और जो अपारदर्शी है। दूसरी तरफ नई योजना है जो दानकर्ता को चेक, ऑनलाइन ट्रांज़ैक्शन या चुनावी बॉन्ड के द्वारा पूर्ण रूप से पारदर्शी तरीके से दान करने का विकल्प देती है। वास्तव में अब इन दोनों के बीच सावधानीपूर्वक चुनाव करना होगा। चेक, ऑनलाइन ट्रांज़ैक्शन और चुनावी बॉन्ड, जहां इन तीनों ही तरीकों में साफ धन शामिल है और पहले दोनों तरीके पूर्ण रूप से पारदर्शी हैं, वहीं चुनावी बॉन्ड योजना मौजूदा गैर-पारदर्शी व्यवस्था को पारदर्शी बनाने में एक महत्वपूर्ण सुधार है।

भारत में राजनैतिक वित्तपोषण की प्रणाली को स्वच्छ बनाने की प्रक्रिया को और मजबूती देने के लिए सरकार सभी सुझावों पर विचार करना चाहती है। यह भी दिमाग में रखना होगा कि अव्यावहारिक सुझाव नकदी आधारित व्यवस्था को नहीं सुधार सकते, बल्कि वह केवल इसे मजबूत ही करेंगे।

(लेखक केंद्रीय वित्तमंत्री हैं)