वैचारिकी : पं. दीनदयाल उपाध्याय जयंती (25 सितंबर) पर विशेष लेख
तरुण चुघ
भारत की भूमि पर समय-समय पर ऐसे महामानव का अवतरण होता रहा है, जो स्वयं के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र और समाज के लिए ही जीता और मरता है। उसका जीवन आनेवाली पीढ़ियों के लिए आदर्श होता है, उसका चिंतन समाज के लिए मार्ग होता है और उसका कर्म देश को दिशा देनेवाला होता है। ऐसे ही महामानव थे पंडित दीनदयाल उपाध्याय। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश को आवश्यकता थी अपनी एक ऐसी मौलिक विचारधारा की, जिसमें देश के अंतिम व्यक्ति की चिंता करते हुए राजनीति को सेवा का साधन बनाया जा सके। देश के गौरव की रक्षा करते हुए इसे संपन्न और समृद्ध बनाने के लिए एक चिंतन की। भारत माता की उर्वर धरती ने पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे महान सपूत को जन्म देकर एक नई दिशा दिखानेवाले को खड़ा कर दिया। अपने आदर्शों एवं विचारों के कारण भारत के लोगों के दिल-दिमाग में स्थान बनाने वाले और एकात्म मानववाद की विचारधारा देनेवाले जनसंघ के संस्थापकों में शामिल पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजनीति के पथ प्रदर्शक, महान चिंतक, सफल संपादक, यशस्वी लेखक और भारत माता के सच्चे सेवक के रूप में स्मरणीय रहेंगे।
जन्म 25 सितम्बर, 1916 उत्तरप्रदेश के मथुरा जिला के चंद्रभान में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्म लेनेवाले दीनदयाल उपाध्यायजी का बचपन विपत्तियों में बीता। संघर्ष ही साथी बना रहा और साहस संबल। जब उनकी आयु मात्र ढ़ाई साल की थी, तब उनके जीवन से पिता का साया उठ गया, आठ साल
भारत माता की उर्वर धरती ने पंडित
दीनदयाल उपाध्याय जैसे महान सपूत
को जन्म देकर एक नई दिशा दिखानेवाले
को खड़ा कर दिया। अपने आदर्शों एवं विचारों
के कारण भारत के लोगों के दिल-दिमाग में
स्थान बनाने वाले और एकात्म मानववाद की
विचारधारा देनेवाले जनसंघ के संस्थापकों में
शामिल पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजनीति
के पथ प्रदर्शक, महान चिंतक, सफल संपादक,
यशस्वी लेखक और भारत माता के सच्चे सेवक
के रूप में स्मरणीय रहेंगे
के हुए तो माता चल बसी। यानी पूरी तरह अनाथ हो गए। इसके बाद उनका पालन-पोषण उनके नाना के यहां होने लगा, लेकिन दुर्भाग्यवश दस वर्ष की आयु में उनके नाना का भी देहांत हो गया। अब अल्पायु में ही इनके उपर छोटे भाई को संभालने की भी जिम्मेदारी। कोई भी आदमी होता तो इन विपत्तियों के सामने हार मान लेता, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और आगे बढ़ते रहे।
उनकी मेधा अद्वितीय थी। माध्यमिक परीक्षा में वे सर्वोच्च रहे, अंतर स्नातक और स्नातक में अव्वल रहे। अंग्रेजी साहित्य में एमए की प्रथम वर्ष की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की, किन्तु पढ़ाई अधूरी छोड़नी पड़ी। कानपुर में अपनी बीए की पढ़ाई के दौरान महाशब्दे और सुंदर सिंह भंडारी के साथ मिलकर समाज सेवा करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार एवं भाऊराव देवरस से संपर्क में आने के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से प्रभावित होकर संघ से जुड़ गए। अविवाहित रहकर जीविकोपार्जन की चिंता न करते हुए अपने जीवन को देश और समाज के लिए समर्पित कर दिया। राष्ट्रधर्म, पांचजन्य और स्वदेश के यशस्वी संपादक के रूप में उन्होंने राष्ट्रवादी स्वर को मुखर किया। पं. दीनदयाल उपाध्याय एक सफल साहित्यकार भी थे। एक सफल लेखक के रूप में अपनी रचनाओं को युवाओं और देशवासियों को प्रेरित किया। उनका एक-एक विचार और चिंतन देश के लिए काम आया। दूरदर्शिता और कार्यक्षमता ने आजादी के बाद देश की राजनीति में दिशाहीनता को समाप्त कर एक वैचारिक विकल्प दिया।
1951 में डॉ. श्यामाप्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित भारतीय जनसंघ में पहले महामंत्री बनाए गए। 1967 में जनसंघ के अध्यक्ष बने, लेकिन महज 44 दिनों तक ही कार्य कर पाए, जो देश के लिए दु:खद रहा। उनकी प्रतिभा, सांगठनिक शक्ति और कार्यक्षमता को देखकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी को कहना पड़ा कि यदि मुझे ऐसे दो दीनदयाल मिल जाएं तो मैं देश का राजनीतिक मानचित्र बदल दूंगा।
राष्ट्र निर्माण व जनसेवा में उनकी तल्लीनता के कारण उनका कोई व्यक्तिगत जीवन नहीं रहा। उनके पास जी कुछ भी था, वह समाज और राष्ट्र के लिए था। उनके विचारों और त्याग की भावना ने उन्हें अन्य लोगों से अलग सिद्ध कर दिया। दीनदयाल उपाध्याय जनसंघ के राष्ट्रजीवन दर्शन के निर्माता माने जाते हैं। उनका उद्देश्य स्वतंत्रता की पुनर्रचना के प्रयासों के लिए विशुद्ध भारतीय तत्व-दृष्टि प्रदान करना था। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए एकात्म मानववाद की विचारधारा दी। उनका विचार था कि आर्थिक विकास का मुख्य उद्देश्य सामान्य मानव का सुख होना चाहिए। उनका कहना था कि ‘भारत में रहने वाला, इसके प्रति ममत्व की भावना रखने वाला मानव समूह एक जन हैं। उनकी जीवन प्रणाली, कला, साहित्य, दर्शन सब भारतीय संस्कृति है। इसलिए भारतीय राष्ट्रवाद का आधार यह संस्कृति है। इस संस्कृति में निष्ठा रहे तभी भारत एकात्म रहेगा।’
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने व्यक्तिगत व
सामुदायिक जीवन को गुणवत्ता प्रदान करने का
मार्ग देश को दिखाया। वर्तमान समय में समाज
जीवन को एकात्म मानववाद से निकले मूल्यों व
संस्कारों को आत्मसात करने से ही समाज और
राष्ट्र का भला होगा। पं. दीनदयाल उपाध्याय जी
के जीवन के प्रत्येक पक्ष हम सब के लिए
अनुकरणीय है, क्योंकि उन्होंने हर क्षेत्र में
सहयोग, समन्वय व सह-अस्तित्व को स्थान
दिया है। अंत्योदय के जनक पं. दीनदयाल
उपाध्याय जी ने वंचित वर्ग के हित संवर्धन के
लिए साझा सामाजिक दायित्वों को प्राथमिकता
देने के लिए सम्यक दृष्टि भी प्रदान की। जयंती
पर ऐसे महामानव को शतकोटि नमन
किसी भी व्यक्ति या समाज के गुणात्मक उत्थान के लिए आर्थिक और सामाजिक पक्ष ही नहीं उसका सर्वांगीण विकास अनिवार्यता है। पं. दीनदयाल उपाध्यायजी का मत था कि राष्ट्र की निर्धनता और अशिक्षा को दूर किए बिना गुणात्मक उन्नति संभव नहीं है। ख़ास बात यह है कि अंत्योदय के वैचारिक प्रणेता पं. दीनदयाल उपाध्यायजी का दर्शन मात्र लेखन व उनके चिंतन तक ही सीमित नहीं था। संगठन के कार्य से वह जब भी प्रवास के लिए जाते थे, तब भी वे वरीयता के आधार पर समाज में अंतिम पायदान पर खड़े लोगों के यहां ही ठहरते थे। ऐसा उदाहरण भारतीय राजनीति में बिरले ही मिल रहा है।
वर्तमान में श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रही केंद्र सरकार एकात्म मानववाद को केंद्र में रखते हुए गरीब से गरीब व्यक्ति के उत्थान एवं विकास के संकल्प के साथ समाज के कमजोर और गरीब वर्ग के उत्थान के लिए कार्य कर रही है। गत आठ वर्षों से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में चल रही सरकार ने गरीब-कल्याण के अपने लक्ष्य से पंडित दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानववाद के दर्शन और अंत्योदय की विचारधारा को साकार कर दिखाया है। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास, के लिए केंद्र सरकार लगातार काम कर रही है। श्री नरेन्द्र मोदी सरकार का सीधा असर है कि अंत्योदय योजनाओं का सबसे ज्यादा लाभ देश के गरीब, वंचित, शोषित और पीड़ितों को मिल रहा है। देश ही नहीं, बल्कि आज पूरा विश्व भारत की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहा है। इसके पीछे निश्चित रूप से मोदी सरकार की एकात्म मानववाद पर आधारित नीतियां ही है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने व्यक्तिगत व सामुदायिक जीवन को गुणवत्ता प्रदान करने का मार्ग देश को दिखाया। वर्तमान समय में समाज जीवन को एकात्म मानववाद से निकले मूल्यों व संस्कारों को आत्मसात करने से ही समाज और राष्ट्र का भला होगा। पं. दीनदयाल उपाध्याय जी के जीवन के प्रत्येक पक्ष हम सब के लिए अनुकरणीय है, क्योंकि उन्होंने हर क्षेत्र में सहयोग, समन्वय व सह-अस्तित्व को स्थान दिया है। अंत्योदय के जनक पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने वंचित वर्ग के हित संवर्धन के लिए साझा सामाजिक दायित्वों को प्राथमिकता देने के लिए सम्यक दृष्टि भी प्रदान की। जयंती पर ऐसे महामानव को शतकोटि नमन।
( लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री हैं)