केन्द्रीय मंत्रिमंडल के महत्वपूर्ण फैसले

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संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन को सूचना दिए जाने के लिए भारत के राष्ट्रीय स्तर पर अद्यतन निर्धारित योगदान को मिली मंजूरी

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने तीन अगस्त को संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यूएनएफसीसीसी) को सूचना दिए जाने के लिए भारत के राष्ट्रीय स्तर पर अद्यतन निर्धारित योगदान (एनडीसी) को मंजूरी दे दी।

अद्यतन एनडीसी, पेरिस समझौते के तहत आपसी सहमति के अनुरूप जलवायु परिवर्तन के खतरे का मुकाबले करने के लिए वैश्विक कार्रवाई को मजबूत करने की दिशा में भारत के योगदान में वृद्धि करने का प्रयास करता है। इस तरह के प्रयास भारत की उत्सर्जन-वृद्धि को कम करने के रास्ते पर आगे बढ़ने में भी मदद करेंगे। यह देश के हितों को संरक्षित करेगा और यूएनएफसीसीसी के सिद्धांतों व प्रावधानों के आधार पर भविष्य की विकास आवश्यकताओं की रक्षा करेगा।

यूनाइटेड किंगडम के ग्लासगो में आयोजित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मलेन (यूएनएफसीसीसी) के पार्टियों के सम्मेलन (सीओपी26) के 26वें सत्र में भारत ने दुनिया के समक्ष पांच अमृत तत्व (पंचामृत) पेश किए तथा जलवायु कार्रवाई को तेज करने का आग्रह किया। भारत के मौजूदा एनडीसी का यह अद्यतन स्वरूप सीओपी 26 में घोषित ‘पंचामृत’ को उन्नत जलवायु लक्ष्यों में परिवर्तित कर देता है। यह अद्यतन स्वरूप भारत के 2070 तक नेट-जीरो के दीर्घकालिक लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा।

अद्यतन एनडीसी के अनुसार भारत अब 2030 तक 2005 के स्तर से अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करने और 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 50 प्रतिशत संचयी विद्युत शक्ति की स्थापित क्षमता प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।

आज की यह स्वीकृति गरीबों और कमजोर लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से बचाने के लिए टिकाऊ जीवनशैली और जलवायु न्याय के प्रधानमंत्री श्री मोदी के दृष्टिकोण को भी आगे बढ़ाती है।
गौरतलब है कि भारत का एनडीसी इसे किसी क्षेत्र विशिष्ट शमन दायित्व या कार्रवाई के लिए बाध्य नहीं करता है। भारत का लक्ष्य समग्र उत्सर्जन तीव्रता को कम करना और समय के साथ अपनी अर्थव्यवस्था की ऊर्जा दक्षता में सुधार करना है और साथ ही साथ अर्थव्यवस्था के कमजोर क्षेत्रों और हमारे समाज के वर्गों की रक्षा करना है।

मोबाइल सेवा से वंचित गांवों में 4जी मोबाइल सेवाओं के लिए 26,316 करोड़ रुपये की एक परियोजना को मिली मंजूरी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 27 जुलाई को देश भर के समस्त मोबाइल सेवा से वंचित गांवों में 4जी मोबाइल सेवाओं को पूर्णता प्रदान करने के लिए एक परियोजना को मंजूरी दी, जिस पर 26,316 करोड़ रुपये की कुल लागत आएगी।

इस परियोजना के तहत देश के दूरदराज और दुर्गम क्षेत्रों में अवस्थित 24,680 वंचित गांवों में 4जी मोबाइल सेवाएं प्रदान की जाएंगी। इस परियोजना में पुनर्वास, नई बस्तियों, मौजूदा ऑपरेटरों द्वारा अपनी सेवाओं को वापस ले लेने इत्यादि को ध्यान में रखते हुए 20 प्रतिशत अतिरिक्त गांवों को शामिल करने का प्रावधान है। इसके अलावा, केवल 2जी/3जी कनेक्टिविटी वाले 6,279 गांवों को अपग्रेड करके वहां 4जी कनेक्टिविटी सुलभ कराई जाएगी।

इस परियोजना को बीएसएनएल द्वारा ‘आत्मनिर्भर भारत’ के 4जी प्रौद्योगिकी स्टैक का उपयोग करते हुए कार्यान्वित किया जाएगा और इसका वित्त पोषण यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड के जरिए किया जाएगा। 26,316 करोड़ रुपये की परियोजना लागत में पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) और 5 साल का परिचालन व्यय (ओपेक्स) शामिल है।

बीएसएनएल पहले से ही ‘आत्मनिर्भर 4जी प्रौद्योगिकी स्टैक’ का उपयोग करने की प्रक्रिया में है, जिसका उपयोग इस परियोजना में भी किया जाएगा।

यह परियोजना ग्रामीण क्षेत्रों में मोबाइल कनेक्टिविटी उपलब्ध कराने के सरकार के विजन को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस परियोजना से मोबाइल ब्रॉडबैंड के माध्यम से विभिन्न ई-गवर्नेंस सेवाएं, बैंकिंग सेवाएं, टेली-मेडिसिन, टेली-एजुकेशन इत्यादि सुलभ कराने को बढ़ावा मिलेगा और ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन होगा।