गांधी और दीनदयाल के साझा सपनों का भारतवर्ष मोदी जी की देन

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भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के जन्मदिन (17 सितम्बर) और मुख्यमंत्री के रूप में उनके पहले शपथ ग्रहण के दिनांक (7 अक्टूबर) के बीच के समय को भाजपा ने ‘सेवा और समर्पण अभियान’ के रूप में मनाने का तय किया है. प्रदेश-देश के मुखिया के रूप में मोदी जी के कार्यकाल के अब बीस वर्ष पूरे हुए हैं. इन दोनों तिथियों के बीच के 20 दिन वास्तव में सेवा और समर्पण के रूप में मनाये जाने लायक ही हैं. मोदी जी का सम्पूर्ण जीवन खासकर सीएम/पीएम के रूप में उनके दिए योगदान को इन्हीं दो शब्दों में बखूबी समेटा जा सकता है. इसी पखवाड़े के भीतर महात्मा गांधी और पंडित दीनदयाल उपाध्याय के जन्मदिवस का संयोग भी आता है.

अगर हम मोदी जी के कार्यकाल और कार्यप्रणाली का अध्ययन करें तो पायेंगे कि अनेक मामले में उन्होंने गांधी जी के उन विचारों को ज़मीन पर लाने के कार्य किये हैं जिसकी व्याख्या पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने युगानुकूल कर समाज के समक्ष शासन का एक निर्विवाद मॉडल प्रस्तुत किया था. इस सन्दर्भ में गांधी के ‘रामराज्य’ का विचार एक श्रेष्ठ उदाहरण के रूप में हमारे सामने है. गांधी जी जिस रामराज्य की बात करते थे, उसके बारे में पहले ही गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है- दैहिक दैविक भौतिक तापा, राम राज काहुहि नहि व्यापा. अर्थात रामराज का आशय मनुष्य की शारीरिक, आर्थिक और आत्मिक तापों से मुक्ति है. पंडित जी का ‘एकात्म मानव दर्शन’ भी मूल रूप से रामराज की इसी अवधारणा को आगे बढ़ाते हुए कहता है कि व्यक्ति महज़ शरीर नहीं है, वह मन, आत्मा, शरीर आदि का समुच्चय है. इनके समेकित उन्नयन का दर्शन ही एकात्म मानववाद है.

अगर मोदी जी की बात करें तो उन्होंने न केवल सदियों पुराने एक बड़े सांस्कृतिक विवाद को हल करने में अपनी भूमिका का निर्वहन कर मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा कायम रखी है अपितु शासन में भी रामराज के उसी मॉडल को पुनर्स्थापित करने में अपने योगदान दिया है. बात चाहे 13 वर्ष के गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में हो, या फिर 7 ऐतिहासिक वर्ष प्रधानमंत्री के रूप में, मोदी जी के हर कार्य में रामराज की गांधी-दीनदयाल की अवधारणा ही पल्लवित-पुष्पित हुई है. इसी तरह स्वच्छ भारत अभियान की ही बात करें तो हम यह कह सकते हैं कि उसे पूरी तरह से गांधी जी के विचारों को ज़मीन पर उतारा गया है. संयोग ही है कि उसी काशी से महात्मा ने स्वच्छता का सन्देश दिया था और वहीं से सांसद मोदी जी ने आज गांधी जी के चश्मे को समूचे राष्ट्र के लिए स्वच्छता के प्रतीक के रूप में जनमानस में अंकित कर दिया है. प्रधानमंत्री ने अपने हाथ में झाडू पकड़ा और स्वच्छता आज सवा अरब से अधिक नागरिकों की चेतना में समाहित हो गया है.

गांधी जी के बाद आज़ादी से अब तक यह सोचना भी अजीब था कि देश का कोई मुखिया कभी शौचालय और सफाई आदि की बात करेगा. लेकिन न केवल इसकी बात की गयी बल्कि आज लगभग समूचा देश खुले में शौच के अभिशाप से मुक्त होने की तरफ अग्रसर है. नमामि गंगे अभियान के तहत मां गंगा समेत सभी नदियों की सफाई के अभियान को भी आज एक हम इसी नज़रिए से देख सकते हैं. गांधी जी ने 1919 में ही इलाहाबाद में फिरंगी सरकार को यह ताकीद की थी कि शहर की गंदगी और औद्योगिक कचरा गंगा में नहीं गिरनी चाहिये, परन्तु साठ वर्षों में इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया. अब भारत की सभी नदियों को सदानीरा बनाए रखने के प्रयास को न केवल सरकार ने बल्कि भाजपा ने भी अपने मुख्य विषय के रूप में शामिल किया है.

गांधी जी की तरह पंडित दीनदयाल उपाध्याय भी समाज के सबसे अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति का उत्थान चाहते थे. पंडित जी कहा करते थे कि ‘गरीब ही हमारे नारायण हैं, जब हम इन्हें पक्के घर उपलब्ध करायेंगे, तभी हमारा भ्रातृभाव व्यक्त होगा.’ इन्हीं भावनाओं का प्रकटीकरण मोदी जी ने अपनी योजनाओं से किया. उन्होंने तय किया कि प्रधानमंत्री आवास योजना का लक्ष्य, महात्मा गांधी की 150 वीं जयंती के उपलक्ष्य में 20 मिलियन घरों का निर्माण करके ‘सब के लिए घर’ के अपने उद्देश्य को प्राप्त करना है. यह लक्ष्य आज पूरे हो रहा है. करोड़ों लोगों को उनके पक्के घर का सपना न केवल इस योजना से बल्कि अन्य शासकीय अनुदानों के माध्यम से भी लगातार साकार हो रहे हैं.

इसी तरह बात चाहे समाज के सबसे अंतिम व्यक्ति के उत्थान को प्राथमिकता देने के गांधी-दीनदयाल स्वप्न की हो या फिर लघु और कुटीर उद्योगों में जान फूंकने की, मोदी जी की सरकार ने मुद्रा योजना से लेकर एमएसएमई के लिए अन्य तमाम योजनायें, आपदा में अवसर का आह्वान, आत्मनिर्भर भारत का नाद, कोरोना की कठिन परिस्थितियों में भी बीस लाख करोड़ के पैकेज के माध्यम से भारत के नवनिर्माण की नींव रखी है, निस्संदेह यह गांधी-दीनदयाल के विचारों का प्रस्फुटन ही है.

भारत के राष्ट्रपति श्री रामनाथ कोविंद ने शपथ ग्रहण के दौरान अपने भाषण में कहा था- ‘हमें तेजी से विकसित होने वाली एक मजबूत अर्थव्यवस्था, एक शिक्षित, नैतिक और साझा समुदाय, समान मूल्यों वाले और समान अवसर देने वाले समाज का निर्माण करना होगा. एक ऐसा समाज जिसकी कल्पना महात्मा गांधी और दीनदयाल उपाध्याय जी ने की थी.’ मोदी जी की सरकार इस भावना के अनुरूप ही अपने इन दोनों मनीषियों के बताये रास्ते पर चल रही है. जिन भी लोगों को गांधी और भाजपा के विचारों में कोई अंतर नज़र आता हो, उन्हें शायद पता नहीं होगा कि भाजपा का संविधान स्वयं इन दोनों महापुरुषों के विचारों का ही प्रतिरूप है. पार्टी के संविधान का अनुच्छेद 3 जहां दीनदयाल जी के ‘एकात्म मानववाद’ को अपना मूल दर्शन मानता है, वहीं अनुच्छेद 4 में वर्णित पंचनिष्ठाओं में भाजपा ने अपने स्थापना काल से ही ‘सामाजिक व आर्थिक विषयों पर गांधीवादी दृष्टिकोण’ को आत्मार्पित किया है ‘जिससे शोषणमुक्त और समतायुक्त समाज की स्थापना हो सके.’

विडंबना है कि आज़ादी के बाद से लगातार लम्बे समय तक जिस दल ने सत्ता सम्हाला, उनके लिए गांधी महज़ वोट मांगने का उपक्रम बना दिए गए और वही दल यह दुष्प्रचार भी करते रहे कि भाजपा गांधी जी के विचारों की विरोधी है. जबकि यह सच अब कम से कम सबको समझ जाना चाहिए कि गांधी जी ने कांग्रेस को ख़त्म कर देने का ही विचार रखा था, भाजपा के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ आह्वान को भी उन्हीं विचारों का प्रकटीकरण कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.

आज का भारत निस्संदेह भारतीय सनातन संस्कृति के महान व्याख्याकार गांधी और दीनदयाल की स्थापनाओं पर आधारित राष्ट्र है. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के प्रो. कौशल किशोर मिश्र अपने पुस्तक ‘समाज प्रबोधन: पं.दीनदयाल उपाध्याय विचार’ में लिखते हैं– ‘ज्यादातर बिंदुओं पर दोनों महान व्यक्तियों की सोच राष्ट्रहित में एकाकार होती प्रतीत होती है. दोनों का ही मानना था कि धर्मविहीन राजनीति अमर्यादित हो जाती है. भारतीय समाज के लिए धर्म आधारित राजनीति की आवश्यकता पर दोनों के विचार समान थे. बापू और पं. दीनदयाल दोनों ग्रामोदय के प्रबल समर्थक थे. दोनों रामराज्य चाहते थे लेकिन दोनों के ही रामराज्य का आशय एक आदर्श शासन व्यवस्था से है. समाज के एकीकरण और आध्यात्मिक राष्ट्रवाद पर दोनों के विचार समान थे.’

समानता के इन्हीं सूत्रों को पकड़ कर भविष्य के भारत की नींव रखा जाना संभव है, जैसा कि मोदी जी के नेतृत्त्व में किया भी जा रहा है. ‘सेवा और समर्पण’ के इन बीस दिनों में भाजपा के सभी अभियान इन्हीं दोनों मनीषियों के विचारों और मोदी जी के कृतित्व पर आधारित है. इस अभियान के दौरान पार्टी ने कार्यकर्ताओं और लोगों का आह्वान किया है कि वे खादी का उपयोग अवश्य करें. आज़ादी के बाद से लगातार सत्ताधीशों ने जहां खादी को महज़ सफ़ेद हाथी बना कर छोड़ा हुआ था, वहां आज यह उपक्रम वास्तव में भारत की आन-बान का प्रतीक बन गया है. पार्टी के बीस दिनी इस अभियान के तहत गरीबों को राशन वितरण, रक्तदान, पर्यावरण सुरक्षा, जलाशयों की सफाई, प्लास्टिक हटाना, अन्य स्वच्छता अभियान, टीकाकरण, दिव्यांगों-बीमारों की सहायता, वृक्षारोपण .. समेत सभी गतिविधियों का मूल हमारे इन दोनों पुरखों के दिए मंत्र ‘सेवा और समर्पण’ ही है. इसी मूलमंत्र के सहारे मोदी जी आज विश्व में भारत के पुरा वैभव की पुनर्स्थापना के कार्य में अहर्निश जुटे हैं. हमारी इस विकास यात्रा के पाथेय निस्संदेह गांधी और दीनदयाल के विचार ही हैं.

-विष्णुदेव साय
(लेखक, छत्तीसगढ़ प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष और पूर्व केन्द्रीय मंत्री हैं)