राष्ट्रीयता के उद्घोषक डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी

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   श्रद्धांजलि: डॉ. मुकर्जी जन्मदिवस (6 जुलाई)       

                                  (6 जुलाई, 1901 – 23 जून, 1953)

डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी राष्ट्रीयता के उद्घोषक एवं प्रखर विद्वान् थे।
डॉ. मुकर्जी का जन्म 6 जुलाई, 1901 को एक प्रसिद्ध बंगाली परिवार में हुआ था। उनके पिता सर आशुतोष बंगाल के एक जाने-माने व्यक्ति थे। डॉ. मुकर्जी ने कलकत्ता से स्नातक डिग्री प्राप्त की। वे 1923 में सीनेट के सदस्य (फैलो) बन गये। उन्होंने अपने पिता की मृत्यु के बाद सन् 1924 में कलकता उच्च न्यायालय में एडवोकेट के रूप में नाम दर्ज कराया। बाद में वे सन् 1926 में ‘लिंकन्स इन’ में अध्ययन करने के लिए इंग्लैंड चले गए और 1927 में बैरिस्टर बन गए।

33 वर्ष की उम्र में सन् 1934 में वे कलकत्ता विश्वविद्यालय के सबसे युवा उपकुलपति बने और उन्होंने यह दायित्व 1938 तक संभाला। उन्होंने विश्वविद्यालय में विज्ञान की शिक्षा को प्रोत्साहित किया और डॉ. एस. राधाकृष्णन को बंगलोर से कलकत्ता प्राध्यापक के नाते आमन्त्रित किया। उन्होंने लगभग 22 विश्वविद्यालयों (जिनमें मद्रास, बनारस, आगरा और दिल्ली विश्वविद्यालय सम्मिलित हैं) में दीक्षान्त व्याख्यान दिये। डॉ. मुकर्जी भारत में महाबोधि समाज के संस्थापक अध्यक्ष थे।

भारतीय राष्ट्रध्वज की सम्प्रभुता कश्मीर में स्थापित करने के प्रयास में उन्होंने मई, 1953 में कश्मीर में बिना परमिट प्रवेश करने की घोषणा की और एक निशान, एक विधान, एक प्रधान की मांग को लेकर कश्मीर में प्रवेश किया। 11 मई 1953 को लखनपुर में शेख अब्दुल्ला की सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और श्रीनगर की एक जेल में काराबद्ध रखा

महात्मा गांधी के सुझाव पर पं. जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें स्वातन्त्र्योत्तर भारत की प्रथम अन्तरिम केन्द्रीय सरकार में उद्योग और आपूर्ति मन्त्री बनाया। उन्होंने सिन्दरी उर्वरक कारखाना, भाखड़ा नांगल बांध और भिलाई इस्पात उद्योग को स्वीकृति दी। 6 अप्रैल, 1950 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी ने 1949 में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री लियाकत अली खां से की गई दिल्ली सन्धि के विरोध में मन्त्रिमण्डल से इस्तीफा दे दिया। वे पूर्वी पाकिस्तान से आनेवाले लाखों हिन्दू शरणार्थियों की दुर्दशा के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार मानते थे और उन शरणार्थियों पर राज्य सत्ता समर्थित अत्याचार के विरुद्ध प्रबलता से खड़े हुए।

संघ के द्वितीय सरसंघचालक परम पूजनीय श्री गुरुजी (श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर) से परामर्श कर डॉ. मुकर्जी ने 21 अक्टूबर, 1951 को दिल्ली में भारतीय जनसंघ की स्थापना की और सर्वसम्मति से उसके पहले अध्यक्ष चुने गए। भारतीय राष्ट्रध्वज की सम्प्रभुता कश्मीर में स्थापित करने के प्रयास में उन्होंने मई, 1953 में कश्मीर में बिना परमिट प्रवेश करने की घोषणा की और एक निशान, एक विधान, एक प्रधान की मांग को लेकर कश्मीर में प्रवेश किया। 11 मई 1953 को लखनपुर में शेख अब्दुल्ला की सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और श्रीनगर की एक जेल में काराबद्ध रखा। जहां 23 जून, 1953 को उनकी रहस्यमयी परिस्थितियों में मृत्यु हो गई। कमल संदेश भारत मां के इस महान सपूत व भारतीय जनसंघ के संस्थापक को उनकी जयंती पर भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

राजनीतिक और सामाजिक न्याय के लिए किसी देश का विघटन आवश्यक नहीं है, न ही पहल, बुद्धिमत्ता और प्रेरणा देनेवाले वर्ग का विनाश या अपमान। बल्कि सभी के लिए अवसर की समानता, आत्मनिर्भर होने के लिए पूर्ण स्वतंत्रता की जरूरत होती है, जिसे सभी जाति या पंथ के लोगों के साथ साझा किया जा सकता है।
                             -डॉ. श्यामा प्रसाद मुकर्जी