किसान कल्याण के नए मापदंड

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अमित शाह

प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार अपने पहले कार्यकाल से ही किसानों के हितों के प्रति प्रतिबद्ध रही है। किसानों को लुभाने वाली घोषणाओं के बजाय प्रधानमंत्री का जोर कृषि क्षेत्र को समृद्ध और किसानों को सशक्त बनाने पर रहा है। सरकार किसानों की आय दोगुना करने के लक्ष्य को लेकर चल रही है और इस दिशा में अनेक कदम उठाए गए हैं। इसी कड़ी में कृषि सुधार से संबंधित तीन विधेयक सदन में लाए गए। पहला विधेयक देश के अन्नदाता को बिचौलियों के चंगुल से मुक्ति दिलाने के साथ-साथ उसे अपनी उपज को इच्छानुसार मूल्य पर बेचने की आजादी देगा। पहले हमारे किसानों का बाजार सिर्फ स्थानीय मंडी तक सीमित था, उनके खरीदार सीमित थे, बुनियादी ढांचे की कमी थी और मूल्यों में पारदर्शिता नहीं थी। इस कारण उन्हें अधिक परिवहन लागत, लंबी कतारों, नीलामी में देरी और स्थानीय माफिया की मार झेलनी पड़ती थी। अब उन्हें राष्ट्रीय बाजार में अवसर मिलने के साथ-साथ बिचौलियों से सही मायनों में मुक्ति मिलेगी। किसानों का ‘एक देश-एक बाजार’ का सपना भी पूरा होगा।

दूसरा विधेयक बोआई के समय ही बाजार से संपर्क प्रदान करता है, जिससे किसान के उत्पादन और मूल्य, दोनों से जुड़े जोखिम घटेंगे। इसके तहत किसान कृषि आधारित उद्योगों, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा विक्रेताओं, निर्यातकों आदि के साथ अनुबंधित कृषि कर सकेंगे। अनुबंधित किसानों को ऋण की सुविधा, तकनीकी सहायता, बीज की उपलब्धता, फसल बीमा सुविधाएं आदि उपलब्ध कराई जाएंगी। कृषि क्षेत्र में निजी निवेश आने से स्टोरेज, परिवहन तथा एग्रो इंडस्ट्री लगने का रास्ता खुलेगा। इसका सीधा लाभ किसानों को मिलेगा। वे कैश क्रॉप्स और एग्रो-इंडस्ट्री की जरूरतों के अनुसार खेती कर अपनी आमदनी असीमित रूप से बढ़ा सकेंगे। यह अधिनियम किसानों के मालिकाना हक और खेती के अधिकार को पूर्ण रूप से सुरक्षित रखेगा। किसानों को किसी भी समय इस करार से बिना किसी पेनाल्टी के निकलने की आजादी होगी और जमीन की बिक्री, लीज और गिरवी रखना निषिद्ध होगा।

कई राज्यों में बड़े किसान कॉरपोरेट के साथ मिलकर कैश क्रॉप का लाभ ले रहे थे। अब यह लाभ छोटे किसान भी ले सकेंगे, पर जिन विपक्षी दलों ने उन्हें हमेशा अंधकार और गरीबी में रखा, उन्हें यह बदलाव अच्छा नहीं लगा। वे सड़क से संसद तक इसका विरोध कर रहे हैं। इस दौरान राज्यसभा में उनका आचरण लोकतंत्र और संसदीय मर्यादा को शर्मसार करने वाला था। ये वही लोग हैं जिनके शासन में किसानों की हालत बद से बदतर होती गई। वे बिचौलिये और साहूकारों द्वारा शोषित होते रहे और आर्थिक विकास का उन्हें कोई लाभ नहीं मिला।

आज जब प्रधानमंत्री उन्हें वे अधिकार दे रहे हैं जो 70 वर्ष पूर्व ही मिलने चाहिए थे, तो इन नेताओं को अच्छा नहीं लग रहा। वे यह कहकर भ्रम फैला रहे हैं कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) खत्म करने जा रही है, जबकि ऐसा कोई प्रावधान इन विधेयकों में नहीं है। वह व्यवस्था यथावत रहेगी। वास्तव में अब किसानों के पास एमएसपी के अतिरिक्त भी उपज बेचने के कई विकल्प होंगे।

विपक्षी दल भूल जाते हैं कि स्वामीनाथन आयोग की जिन सिफारिशों को कांग्रेस सरकार ने 2006 में ठंडे बस्ते में डाल दिया था, उन्हें मोदी सरकार ने पूरा किया है। मोदी सरकार एमएसपी में लगातार वृद्धि कर रही है, जिसकी एक बानगी गत दिवस भी देखने को मिली। अब 2014 की तुलना में गेहूं की एमएसपी 41 प्रतिशत, धान की 43, मसूर की 73, उड़द की 40, मूंग की 60, अरहर की 40, सरसों की 52, चने की 65 और मूंगफली की 32 प्रतिशत ज्यादा हो गई है। यही नहीं, 2014 की तुलना में गेहूं और धान की खरीद मात्रा में भी क्रमश: 73 और 114 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।

2009-14 तक कांग्रेस सरकार ने किसानों से मात्र 1.52 लाख मीट्रिक टन दालें खरीदीं, वहीं मोदी सरकार ने 2014-19 में 76.85 लाख मीट्रिक टन दालों की खरीद की। यह 4962 प्रतिशत का फर्क विपक्ष के ढोंग और मोदी जी के समर्पण को साफ दर्शाता है। स्पष्ट है कि राहुल गांधी, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल समेत दूसरे विपक्षी नेता न सिर्फ एमएसपी पर भ्रम फैला रहे हैं, बल्कि किसानों के विकास में रोड़ा भी बन रहे हैं।

जहां कई विपक्षी पार्टियों ने वर्षों तक किसानों के नाम पर केवल राजनीति की, वहीं मोदी सरकार ने शास्त्री जी के ‘जय जवान-जय किसान’ नारे को आगे ले जाते हुए दर्जनों ऐसे काम किए हैं, जिनसे किसान तेजी से खुशहाली के मार्ग पर अग्रसर हैं। मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कृषि बजट में 35.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई, 16.38 करोड़ किसानों को सॉइल हेल्थ कार्ड दिए गए, माइक्रो इरिगेशन में 39.4 फीसद वृद्धि हुई, कृषि यंत्रीकरण का बजट 1248 गुना किया गया, कृषि ऋण 57 फीसद अधिक दिया गया और कृषि ऋण में दी जाने वाली छूट में निवेश 150 फीसद बढ़ा।

इसी कारण मोदी सरकार के छह वर्षों के कार्यकाल में खाद्यान्न उत्पादन 7.29, बागवानी का 12.4 और दलहन का 20.65 फीसद बढ़ा है। इसके अतिरिक्त फसल बीमा योजना से किसानों को सुरक्षा कवच प्रदान किया गया है। इससे बीमित किसानों की संख्या 6.66 करोड़ से बढ़कर 13.26 करोड़ हो गई है। पीएम किसान सम्मान निधि और पीएम किसान पेंशन योजना के माध्यम से किसानों को सीधी सहायता देने का भी काम किया गया है। अब तक 10.21 करोड़ से अधिक किसानों को किसान सम्मान निधि योजना का लाभ मिला है। 94 हजार करोड़ रुपये से अधिक धनराशि सीधे उनके खातों में भेजी गई है। पेंशन योजना से भी अब तक 19.9 लाख किसान जुड़ चुके हैं। मोदी सरकार ने एक लाख करोड़ रुपये की कृषि मूलभूत संरचना निधि के अंतर्गत वित्तपोषण की एक नई केंद्रीय योजना भी शुरू की है।

मोदी सरकार ने आरसेप से बाहर आकर भी किसानों को चीन के नकारात्मक प्रभाव से बचाया। सरदार पटेल का कहना था, ‘इस धरती पर अगर किसी को सीना तानकर चलने का हक है तो वह धन-धान्य पैदा करने वाले किसान को है।’ मुझे यह कहते हुए गर्व है कि मोदी सरकार ने किसानों को यह अधिकार देने का काम किया है। किसानों के कल्याण के लिए उठाए जा रहे इन कदमों का सुपरिणाम शीघ्र ही देश के समक्ष आएगा और आत्मनिर्भर भारत के लिए हो रहे प्रयासों में हमारे अन्नदाता किसानों की बराबर की भूमिका होगी।

                       ( लेखक केंद्रीय गृह मंत्री हैं )