संसद ने 25 जुलाई को सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून में संशोधन संबंधी एक विधेयक को मंजूरी प्रदान कर दी। भाजपानीत केंद्र की राजग सरकार ने कहा कि केन्द्र की नरेन्द्र मोदी सरकार पारदर्शिता, जन भागीदारी और सरलीकरण के लिए प्रतिबद्ध है।
राज्यसभा
विधेयक ध्वनिमत से पारित
राज्यसभा ने सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 को चर्चा के बाद ध्वनिमत से पारित कर दिया। साथ ही सदन ने इस विधेयक को प्रवर समिति में भेजने के लिए लाये गये विपक्ष के सदस्यों के प्रस्तावों को 75 के मुकाबले 117 मतों से खारिज कर दिया।
इस विधेयक में प्रावधान किया गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त एवं सूचना आयुक्तों तथा राज्य मुख्य सूचना आयुक्त एवं राज्य सूचना आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा के अन्य निबंधन एवं शर्ते केंद्र सरकार द्वारा तय किए जाएंगे।
विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कार्मिक एवं प्रशिक्षण राज्य मंत्री श्री जितेन्द्र सिंह ने कहा कि आरटीआई कानून बनाने का श्रेय भले ही कांग्रेस अपनी सरकार को दे रही है किंतु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के शासन काल में सूचना के अधिकार की अवधारणा सामने आयी थी। उन्होंने कहा कि कोई कानून और उसके पीछे की अवधारणा एक सतत प्रक्रिया है जिससे सरकारें समय समय पर जरूरत के अनुरूप संशोधित करती रहती हैं।
उन्होंने कहा कि मोदी सरकार के शासनकाल में एक ऐप जारी किया गया है। इसकी मदद से कोई रात बारह बजे के बाद भी सूचना के अधिकार के लिए आवेदन कर सकता है। श्री सिंह ने कहा कि आरटीआई अधिनियम में पहले ही केंद्र को नियम बनाने का अधिकार दिया गया है, आज भी वही व्यवस्था है।
विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि आरटीआई अधिनियम की धारा-13 में मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों की पदावधि और सेवा शर्तो का उपबंध किया गया है। इसमें कहा गया है कि मुख्य सूचना आयुक्त और सूचना आयुक्तों का वेतन, भत्ते और शर्ते क्रमश: मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के समान होंगी।
इसमें यह भी उपबंध किया गया है कि राज्य मुख्य सूचना आयुक्त और राज्य सूचना आयुक्तों का वेतन क्रमश: निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव के समान होगा। मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों के वेतन एवं भत्ते एवं सेवा शर्ते उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के समतुल्य हैं।
वहीं, केंद्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग, सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के उपबंधों के अधीन स्थापित कानूनी निकाय है। ऐसे में इनकी सेवा शर्तो को सुव्यवस्थित करने की जरूरत है।
लोकसभा
सरकार पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध
लोकसभा ने 22 जुलाई को सूचना का अधिकार (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित कर दिया।
इस विधेयक की बहस में भाग लेते हुए केन्द्रीय कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन राज्य मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने कहा कि यह सरकार पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। इस सिद्धांत का अनुपालन करते हुए सरकार ने आरटीआई की संख्या कम करने के लिए सरकारी विभागों को अधिकतम जानकारी देने के विस्तार को सरकार ने स्वत: प्रोत्साहित किया है।
इसके अलावा सरकार नागरिकों की भागीदारी के माध्यम से शिकायतों के निवारण पर ध्यान दे रही है। इसने आरटीआई के प्रमुख सिद्धांत को मजबूत किया है और पिछले पांच वर्षों के दौरान आरटीआई आवेदनों के लंबित मामले काफी कम हुए हैं।
सदस्यों को आश्वासन देते हुए उन्होंने कहा कि सरकार राज्य सूचना आयोगों के संबंध में नियमों को लागू करने के लिए अपने अधिकारों का दुरुपयोग नहीं कर रही है। उन्होंने बताया कि 2005 के मूल आरटीआई अधिनियम के अनुसार सूचना आयुक्तों के संबंध में नियम लागू करने का अधिकार न तो केंद्र न राज्य और न ही समवर्ती सूची के दायरे में आता है, इसलिए राज्य सूचना आयोगों के संबंध में भी कानून बनाना केंद्र सरकार के शेष अधिकारों के अंतर्गत आता है।