सरदार पटेल अपने कामों से ही अजर-अमर और अटल हैं: अमित शाह

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सरदार बल्लभभाई पटेल पुण्यतिथि (15 दिसंबर) पर विशेष

केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह द्वारा 31 अक्टूबर, 2022 को
सरदार पटेल विद्यालय, नई दिल्ली में दिए गए भाषण का संपादित पाठ :

रदार वल्लभभाई पटेल कल्पना को जमीन पर उतारने के लिए कठोर परिश्रम और पुरूषार्थ करने वाले कर्मयोगी थे। सरदार पटेल ने अपना पूरा जीवन भारत की आज़ादी, अखंड भारत के निर्माण और नए भारत की नींव डालने में लगा दिया। काफी लंबे समय तक सरदार पटेल को भुलाने का प्रयास किया गया। सरदार वल्लभभाई पटेल को भारत रत्न मिलने, उनका स्मारक बनाने और उनके विचारों को संकलित करके युवा बच्चों की प्रेरणा बनाने में कई साल लग गए। सरदार पटेल अपने कामों से ही अजर-अमर और अटल हैं।

हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं और सरदार पटेल के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने 19वीं सदी में थे। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी ने आज सुबह दुनिया के सबसे ऊंचे, स्टैच्यू ऑफ यूनिटी पर सरदार पटेल को श्रद्धांजलि अर्पित की। मोदी जी के नेतृत्व में देश के 3 लाख से ज्यादा गांव के करोड़ों किसानों के खेती के औजारों के लोहे को पिघलाकर Statue of Unity बनाया गया है। मोदी जी ने देश के लोगों की आशा, अपेक्षा और स्वप्नों को सरदार साहब की प्रतिमा में संजोने का काम किया है।

ज़मीनी समस्याओं के निवारण में सरदार पटेल जैसी मूल विचारधारा किसी के पास नहीं थी। देश में सहकारिता आंदोलन को जमीन पर उतारने का काम भी सरदार पटेल ने ही किया था। बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि सरदार पटेल ने ही अमूल का बीज बोया और त्रिभुवनदास पटेल जी ने सरदार साहब के विचार, मार्गदर्शन व प्रेरणा से ही अमूल की स्थापना की। 1920 से 1930 के बीच देश में किसानों के शोषण के खिलाफ आवाज़ उठ रही थी और जिस बखूबी से सरदार पटेल ने किसानों को एकत्रित किया, उसे देखकर गांधी जी ने उन्हें सरदार का नाम दिया। लक्षद्वीप, अंडमान निकोबार, जोधपुर, जूनागढ़ और हैदराबाद आज अगर भारत का हिस्सा हैं, तो वो सरदार पटेल के ही कारण हैं। सरदार पटेल के कारण ही भारत माता का मुकुट मणि कश्मीर भी आज भारत के पास है। सरदार पटेल ने ही निर्णय कर वहां सेना भेजने का काम किया था, जिसने पाकिस्तान के सैनिकों को परास्त कर कश्मीर को भारत के साथ जोड़ा।

सरदार पटेल न होते तो भारत का मानचित्र जैसा आज है वैसा न होता। आज़ादी के बाद सरदार पटेल ने पूरे भारत की 500 से ज्यादा रियासतों और राजाओं-रजवाड़ों को एकत्रित करने का काम किया। खराब स्वास्थ्य के बावजूद देशभर की यात्रा कर 500 से ज्यादा रियासतों को भारतीय संघ में जोड़ने का काम सरदार पटेल ने किया। आजादी के बाद भारत में लोकतंत्र की नींव डाली गयी और सरदार वल्लभभाई पटेल के अथक प्रयासों से भारत को एक किया गया। आजादी के समय ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल ने कहा था कि अंग्रेजों के जाते ही भारत खंड-खंड हो जाएगा। भारतीय नेता कम क्षमता वाले है वो सत्ता के लिए लड़ेंगे, लेकिन सरदार साहब ने पूरे देश को एक किया और आज भारत उसी ब्रिटेन को पीछे छोड़ विश्व की 5वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया।

भारत में लोकतंत्र की नींव 75 सालों में बहुत गहरी हुई है और इसी का परिणाम है कि आजादी के बाद लोगों द्वारा शांति से वोट द्वारा लिए गए फैसले को सभी ने माना और बिना किसी रक्तपात के देश में कई बार सत्ता परिवर्तन हुए। लौह पुरुष सरदार वल्लभभाई पटेल ने अथक परिश्रम कर रियासतों का एकीकरण तो किया ही, साथ ही साथ अखिल भारतीय सेवाओं और आसूचना ब्यूरो की नींव डाली, केंद्रीय पुलिस की कल्पना की और प्रशासनिक सेवाओं के सारे नियम भारतीय स्वरूप में ढालने का कार्य भी किया। सरदार वल्लभभाई पटेल के ही प्रयासों का परिणाम है कि भारत में केंद्र-राज्य के ढांचे में इस प्रकार विभाजन किया गया है कि किसी भी प्रकार का कोई मतभेद न हो और इसी का नतीजा है कि केंद्र-राज्यों के मध्य आज कोई अंतर्विरोध नहीं है।

सरदार पटेल के अहिंसा के विचार भी बहुत वास्तविक थे और उन्होंने हर समस्या का समाधान खोजकर यश पाने की इच्छा ना रखते हुए परिणाम लाने का काम किया। देश को एक ओर जहां महात्मा गांधी जी का आदर्शवादी और आध्यात्मिक नेतृत्व मिला, तो वहीं दूसरी तरफ सरदार पटेल जैसे व्यवहारिक, दूरदर्शी और वास्तविक नेता का साथ मिला। इन दोनों के कॉम्बिनेशन ने भारत को बहुत कुछ दिया है। भारत के संविधान निर्माण की प्रक्रिया के दौरान सरदार पटेल ने कई अहम फैसले लिए। उन्होंने बाबासाहेब डॉ. बी. आर. अंबेडकर को संविधान का प्रारुप बनाने और संकलन करने का काम देने की पैरवी की और संविधान को संतुलित बनाने के लिए कई बार अपने विचार संविधान सभा के सामने रखे। इन सबके बारे में जानने और संविधान की आत्मा को समझने के लिए सरदार पटेल, के. एम. मुन्शी और बाबासाहेब डॉ. बी. आर. अंबेडकर की संविधान चर्चाओं को पढ़ना चाहिए।

आजादी के बाद के 75 साल बहुत कठिन रहे। कभी युद्ध तो कभी आतंकवाद का सामना करना पड़ा, कई वैश्विक और आर्थिक समस्याओं से भी गुजरना पड़ा, लेकिन इन सब कठिनाइयों के बावजूद भारत ने विगत 75 वर्षों में सर्वस्पर्शी और सर्वसमावेशी विकास करते हुए लोकतंत्र की नींव को गहरा किया। देश को संविधान की स्प्रिट के अनुसार चलाया और देश की सुरक्षा को सुनिश्चित किया जिसके चलते दुनिया में कोई भी भारत की सीमा और सेना का अपमान करने का दुस्साहस नहीं कर सकता। भारत ने

सरदार वल्लभभाई पटेल कल्पना को जमीन पर उतारने के लिए कठोर परिश्रम और पुरुषार्थ करने वाले कर्मयोगी थे। सरदार पटेल ने अपना पूरा जीवन भारत की आज़ादी, अखंड भारत के निर्माण और नए भारत की नींव डालने में लगा दिया

विकास को गति देते हुए दुनियाभर में अपने अर्थतंत्र को मज़बूती के साथ आगे बढ़ाया है और कुछ ही सालों में इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में भी भारत दुनिया के प्रमुख देशों के नजदीक पहुंच जाएगा। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आजादी के अमृत महोत्सव को मनाने का निर्णय तीन उद्देश्य से किया। एक, देश की आने वाली युवा पीढ़ी आजादी के आंदोलन और संघर्ष को समझे, दूसरा, 75 साल में हमने जो प्राप्त किया है हम उसको जानें और तीसरा, हम सब आजादी की शताब्दी वर्ष का लक्ष्य तय करें। कोई भी एक छोटा सा संकल्प लें और उसे पूरा करने के लिए कटिबद्ध रहना चाहिए।

सरदार पटेल विद्यालय में पूरी प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में होती है, हिंदी के साथ-साथ तमिल, उर्दू और बांग्ला को भी सीखने का अवसर मिलता है। हम भारत की किसी भी भाषा व बोली को लुप्त नहीं होने देंगे। हम कोई भी भाषा सीखें मगर अपनी मातृभाषा कभी मत छोड़ें, क्योंकि व्यक्ति की क्षमता बढ़ाने, निर्णय पर पहुंचने व विश्लेषण की प्रक्रिया करने का सबसे अच्छा माध्यम उसकी मातृभाषा होती है। देश में अंग्रेजी की जानकारी को बौद्धिक क्षमता के साथ जोड़ा जाता है परन्तु भाषा मात्र अभिव्यक्ति का माध्यम है, भाषा आपकी क्षमता की परिचायक नहीं है और अगर आपके अंदर क्षमता है तो दुनिया को आपको सुनना ही पड़ेगा। अभिभावकों से बच्चों के साथ अपनी मातृभाषा में बात करना चाहिए। युवाओं की यह जिम्मेदारी है कि वे भाषा के कारण बने इंफेरियारिटी कॉम्प्लेक्स के माहौल को तोड़ें। देश के विकास में योगदान का श्रेय यदि हम केवल अच्छी अंग्रेजी बोलने वाले कुछ ही लोगों को देते हैं तो अपनी भाषा में सोचने, बोलने, लिखने, रिसर्च एंड डेवलपमेंट करने वाले अधिकांश बच्चों को विकास की प्रक्रिया से काटकर सोसाइटी के अंदर दो हिस्से कर देते हैं। भाषा से हम अपनी संस्कृति और साहित्य को जानते हैं और सोचने की प्रक्रिया को ज्यादा प्रबल व प्रखर बनाते हैं। मोदी सरकार की नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का भी महत्वपूर्ण आयाम है कि बच्चों की प्राथमिक शिक्षा अपनी भाषा में होनी चाहिए, टेक्निकल एजुकेशन, अनुसंधान और मेडिकल एजुकेशन भी स्थानीय भाषा में उपलब्ध होनी चाहिए।

हमें महात्मा गांधी और सरदार पटेल की कल्पना का आत्मविश्वास से भरपूर ऐसा भारत बनाना है जो दुनिया की स्पर्धा में सबसे आगे निकले और ऐसा भारत तभी बन सकता है जब हम भाषा की हीन भावना को छोड़ें। कुछ लोगों द्वारा भुलाने के किए गए लाख प्रयासों के बावजूद सरदार पटेल आज भी देश के हर व्यक्ति के मन में बसे हुए हैं, क्योंकि वे भारत की मिट्टी की सुगंध से उपजे एक व्यावहारिक नेता और भारतीय संस्कृति के प्रतीक थे, जिन्होंने कभी कुछ प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखी। लौह पुरुष सरदार पटेल ने आजादी के समय कांग्रेस की वर्किंग कमेटी में सबसे ज्यादा वोट मिलने के बाद भी देश के प्रधानमंत्री पद का त्याग कर दिया, ताकि देश के अंदर बन रही नई सरकार में विवाद न उपजे और हमारे दुश्मन मजबूती न हों। सरदार वल्लभभाई पटेल के बारे में पढ़ने और उनके बताए मार्ग पर चलने का प्रयास करना चाहिए, ताकि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के आजादी की शताब्दी में भारत को दुनिया में नंबर एक बनाने के लिए चलाए गए अभियान को ताकत मिले।