राष्ट्र की सुरक्षा के प्रश्न को सर्वोपरि महत्त्व दिया जाए

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गतांक का शेष..

-दीनदयाल उपाध्याय

पाकिस्तान और चीन इस समय भारत के भूभाग को दबाए हुए बैठे हैं। युद्धविराम रेखा समझौते के कारण कश्मीर का एक-तिहाई भूभाग पाकिस्तान के क़ब्ज़े में है। चीन ने भारतीय भूभाग के विशाल क्षेत्र पर अपना दावा उपस्थित कर उसके कुछ अंश को हस्तगत कर लिया है और सभी समझौतों को तोड़ते हुए वह अपनी ज़िद पर अड़ा है। भारत सरकार ने भी उक्त क्षेत्र को मुक्त करने की दृष्टि से कोई भी पग नहीं उठाया है। जहां तक पाकिस्तान का संबंध है, उसने युद्ध विराम रेखा का बड़े पैमाने पर उल्लंघन नहीं किया है। यद्यपि समय-समय पर पाकिस्तानी उक्त रेखा को पारकर भारतीय ग्रामों में लूटमार करते रहते हैं और पाकिस्तान ‘जेहाद’ की धमकियां देता रहता है। पूर्वी सीमा पर भी तुकेरग्राम और पथरिया जंगल के क्षेत्र में फायरिंग आदि की घटनाएं हई हैं और पाकिस्तान ने अपना अनुचित अधिकार वहां पर बना रखा है। किंतु चीन भारत को बराबर धमकियां देने के साथ आगे भी बढ़ता जाता है और भारतीय विरोध-पत्रों को उसने कभी भी मान्य नहीं किया है।

कम्युनिस्टों द्वारा वाक्छल का सहारा

स्वतंत्र पार्टी पाक-अधिकृत कश्मीर के भूभाग को मुक्त कराने के प्रश्न पर मौन है। प्र.स. दल ने अपनी विदेश नीति का विवेचन करते हए कहा है कि जब पाक और चीन ने इस क्षेत्र पर आक्रमण किया है तो प्रतिरक्षा मंत्रालय और विदेश-विभाग का इन क्षेत्रों को मुक्त करना प्राथमिक कर्तव्य है। पश्चिमी क्षेत्र में भारत की सीमाओं की चर्चा करते हुए कम्युनिस्ट पार्टी ने कहा है कि ‘संपूर्ण जम्मू और कश्मीर राज्य, जिसमें पाक अधिकृत भूभाग भी सम्मिलित है, भारत का भाग है।’ इसके अतिरिक्त चीनी आक्रमण की ओर से लोगों का ध्यान हटाने के लिए कम्युनिस्ट पार्टी पाकिस्तान के काले कारनामें का उल्लेख कर रही है। परंतु अपने घोषणा-पत्र में वे अपेक्षाकृत शांत और नम्र इसका कारण यह है कि यदि पाकिस्तान के विरुद्ध उस कार्रवाई की मांग उन्हान का उन्हें भय है कि कहीं चीन का प्रतिकार करने की भी भावना समाज में उत्पन्न न हो जाए और इसलिए वे शब्दाडंबर करते हुए वाक्छल कर रहे हैं। कांग्रेस ने अपने घोषणा-पत्र में पाक और चीन अधिकृत भूभाग के लिए पैराग्राफ दिया है और आशा प्रकट का इन क्षेत्रों को मुक्त करा लिया जाएगा। उन्होंने अपनी बात को पुनः दुहराया है कि ‘अब और आगे आक्रमण’ हम बरदाश्त नहीं करेंगे। पर आक्रमण को समाप्त करने के लिए शक्ति प्रयोग करने के विषयों में चुप हैं। अत: कांग्रेस के विषय में यह कहा जा सकता है कि इन प्रश्नों पर उसकी वही नीति रहेगी जो अब तक है।

स्वतंत्र पार्टी की यह मांग

स्वतंत्र पार्टी चीन के ख़तरे को अनुभव करती है और उसे पाकिस्तान के संकट से भयानक भी मानती है। इसलिए उन्होंने पाकिस्तान से संयुक्त सुरक्षा संधि की बात भी कही थी। उनका शायद यह भी मत है, कम्युनिस्ट चीन की चुनौती के कारण हमें अपनी तटस्थ नीति का परित्याग कर पश्चिमी गुट में सम्मिलित हो जाना चाहिए। फिर भी चीन के विरुद्ध सैनिक शक्ति का प्रयोग करने के वे विरुद्ध हैं और उनके आगरा-अधिवेशन में इस आशय के एक संशोधन का उत्तरदायी अधिकारियों ने विरोध किया था और वह अस्वीकृत हो गया था।

कम्युनिस्ट चीन को आक्रामक नहीं मानते

चीनी आक्रमण के प्रश्न पर कम्युनिस्ट विचित्र संकट में पड़ जाते हैं। यद्यपि कम्युनिस्ट पार्टी को मैकमोहन रेखा और परंपरागत सीमाओं को मानने के लिए तो बाध्य होना पड़ा है और उनके महामंत्री श्री अजय घोष ने यह भी कहा है कि यदि चीनी मैकमोहन रेखा को पार करते हैं और उस अवस्था में भारत सरकार जो भी क़दम उठाएगी, उसका वे समर्थन करेंगे। परंतु वे जानते हैं कि चीनी ऐसा करनेवाले नहीं हैं और वे यह भी समझते हैं कि वर्तमान भारत सरकार चीन के विरुद्ध शस्त्र उठाने वाली नहीं है। अतः वैसे भी और विशेषकर अब इस निर्वाचन-काल में वह उक्त कथन कहकर भारत सरकार को आश्वस्त कर सकते हैं। किंतु कम्युनिस्ट पार्टी चीन को आक्रामक कहने को तत्पर नहीं है। दिनांक 18 दिसंबर, 1961 के ‘स्टेट्समैन’ के अनुसार जलपाईगुड़ी की एक सभा में भाषण करते हुए संसद् सदस्या श्रीमती रेणु चक्रवर्ती ने यही बात दुहराई है और कहा है कि यह ग़लतफ़हमी वार्ता द्वारा दूर की जा सकती है। इतना ही नहीं वार्ता की विफलता के लिए भी उन्होंने भारत को दोषी ठहराया है, पर यह उनका निजी मत न होकर पार्टी का मत है। उनके घोषणपत्र में कहा गया है कि ‘हम सदा से कहते आए हैं कि भारत और चीन के इस ‘विवाद’ (आक्रमण नहीं) का समाधान शांतिपूर्ण वार्ता के जरिए होना चाहिए और यह बात राष्ट्रों के बीच विवाद के संबंध में भारत के दृष्टिकोण से पूरी तरह मेल रखती है। इसमें संदेह नहीं कि भारत और चीन के बीच आज खड़ी हो गई समस्याओं के समाधान के लिए भारत का एकमात्र सही नीति पर आरूढ़ रहना हमारे राष्ट्र की महानता का प्रतीक है। हमारी पार्टी को विश्वास है कि चीन के साथ शांतिपूर्ण वार्ता, जिसे अब राजनीतिक आधार पर आगे बढ़ने की ज़रूरत है और जिसमें देश की सार्वभौमिक अखंडता और दोनों देशों के बीच मैत्री को स्वभावतः सर्वोच्च महत्त्व दिया जाएगा, सफल होगी और वर्तमान दु:खद अध्याय समाप्त होगा।

चीन और पाक दोनों आक्रामक

भारतीय जनसंघ का मत इस विषय में पूर्णरूपेण स्पष्ट है। उसका कहना है कि चीन और पाकिस्तान दोनों के आक्रमण समाप्त होने चाहिए। उसने सीमा सुरक्षा को सर्वाधिक महत्त्व दिया है। वह भारत के प्रत्येक इंच भूभाग की अक्षरश: मुक्ति का समर्थन है। उसके घोषणा-पत्र में कहा गया है कि ‘भारत की सीमाओं का अतिक्रमण हुआ है। एक ओर पाकिस्तान ने तो दूसरी ओर चीन ने हमारे देश में काफ़ी बड़े क्षेत्र को अपने क़ब्जे में कर लिया है। राष्ट्र द्वारा आक्रमण का सफल प्रतिकार करने की क्षमता के बावजूद अपनी तुष्टीकरण और ढुलमुल नीति के फलस्वरूप कांग्रेस सरकार ने देश का मनोबल क्षीण किया है और शत्रु को अपनी स्थिति सुदृढ़ करने का मौक़ा प्रदान किया है। भारतीय जनसंघ देश की स्वतंत्रता और सार्वभौमिकता को दी गई, इस चुनौती का मुक़ाबला प्रत्येक उपाय से करेगा और भारत के प्रत्येक इंच भूभाग को मुक्त कराएगा।’

कश्मीर के संबंध में अपनी प्रतिज्ञा को उसने निम्न शब्दों में दुहराया है-
‘भारतीय जनसंघ कश्मीर पर किए गए किसी भी आक्रमण को भारत पर आक्रमण समझता है और इस कारण पाकिस्तान और चीन के क़ब्ज़े में पड़े भूभाग को मुक्त कराने के लिए वह प्रत्येक उपाय का सहारा लेगा।’

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद् गठित की जाए

जहां तक सैन्य सेवाओं के संगठन का प्रश्न है, कम्युनिस्ट और कांग्रेस पूर्णतः चुप हैं। जनसंघ और प्र.स. दल ‘राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद्’ (National Defence Council) की स्थापना के समर्थक हैं और स्वतंत्र पार्टी का मत है कि सेनाओं में घुसे राजनीतिक प्रभाव को, जिससे सेना में कमज़ोरी आती है, समाप्त करना चाहिए। (संभवतः यह निर्देश कृष्ण मेनन की ओर है) और सेनाओं को योग्य रीति से सुसज्जित कर सेना के पुराने कर्मचारियों की कठिनाइयों को हल किया जाना चाहिए।

सुरक्षा योजना पंचवर्षीय योजना का अंग बने

जनसंघ और प्र.स. दल प्रादेशिक सेना और एन.सी.सी. के विस्तार के समर्थक हैं। पर जनसंघ पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत एक सुरक्षा योजना की भी आवश्यकता अनुभव करता है, क्योंकि किसी भी राष्ट्र की आर्थिक प्रगति उस देश की रक्षा क्षमता से जुड़ी रखती है। हम उनको पृथक रीति से नहीं देख सकते। सैनिक विषयों में हम चीन और पाकिस्तान के मुक़ाबले संतुलन प्रस्थापित करना चाहते हैं। घोषणा-पत्र में कहा गया है कि ‘चीन और पाकिस्तान दोनों के ही आक्रामक एवं गर्हित मंतव्यों को देखते हुए देश की सुरक्षा व्यवस्था में पर्याप्त सुधार करना आवश्यक है। सेनाओं को आधुनिकतम शस्त्रों से सज्ज करना चाहिए। प्रक्षेपास्त्र, पनडुब्बियां, युद्धक-विमान आदि का निर्माण अथवा उन्हें किसी भी शक्ति गुट में सम्मिलित हुए बिना उपलब्ध कराना हमारा अभीष्ट है।’

तैयारी चाहिए

आज की स्थिति सर्वाधिक तैयारी चाहती है। अतः हमारा नारा ‘राष्ट्र का सैनिकीकरण’ और सेना का आधुनिकीकरण करो’ होना चाहिए। इसी भांति सीमाओं के विषय में हमारी नीति उनकी रक्षा की होनी चाहिए, न कि वार्ता और विवाद की और यदि आक्रमण किया जाता है तो आक्रामकों को खदेड़ देना चाहिए, न कि उनके प्रति तुष्टीकरण की नीति अपनाई जाए। हमें आज योद्धा चाहिए, केवल विरोध करनेवाले नहीं। देश की अखंडता उन लोगों के द्वारा सुरक्षित नहीं रह सकती, जो केवल बैठकर हिसाब जोड़ते हैं और जिनमें साहस एवं शक्ति के साथ परिस्थिति का सामना करने की क्षमता नहीं है। उसकी रक्षा तो वही कर सकते हैं, जिनमें देश के प्रति श्रद्धा और आत्मगौरव का भाव है और जो पवित्र मातृभूमि के लिए सर्वस्व की बलि चढ़ा देने का संकल्प रखते हैं। (समाप्त)

-पाञ्चजन्य, जनवरी 22, 1962, संघ शिक्षा वर्ग, बौद्धिक वर्ग : लखनऊ