भारत के विपक्ष के पास सीखने के लिए बहुत कुछ है


Posted in:
18 Mar, 2019
Posted in:
18 Mar, 2019

अरुण जेटली

कांग्रेस ने साल 2004 से 2014 तक यूपीए सरकार का नेतृत्व किया और एक भयानक सरकार चलाई। वहीं साल 2014 से 2019 तक विपक्ष में कांग्रेस की भूमिका को इसी श्रेणी में रखना गलत नहीं होगा। इतिहास में ऐसे अवसर भी आए, जहां राष्ट्र एक स्वर में बोलता है। राजनेता और नेता के स्तर तक बढ़ जाते हैं। वे संकीर्ण पक्षपात से ऊपर उठते हैं। 1971 के युद्ध के दौरान श्री अटल बिहारी वाजपेयी और जनसंघ का सरकार को समर्थन, इसी की एक सर्वश्रेष्ठ मिसाल है।

पुलवामा में 14 फरवरी, 2019 को आतंकवादियों ने एक बर्बर हमले को अंजाम दिया, जिसकी योजना सीमा पार बनाई गई थी। कई पाकिस्तानी नागरिक इसमें शामिल थे। कुछ को पहले ही समाप्त किया जा चुका है। इस मामले में भी पर्याप्त सबूत हैं जो इस हमले में पाकिस्तान का हाथ होने का इशारा करते हैं। इन सबूतों को पाकिस्तान के साथ साझा भी किया गया है।

इस हमले से भारत में आतंकवादियों और उसके प्रायोजकों के खिलाफ जनाक्रोश पैदा हुआ। अब भारत की जनता चाहती है कि हमारे शहीद जवानों के हर खून के कतरे का हिसाब हो और उनका यह बलिदान हमें आतंकवाद के खत्में के लिए निरंतर प्रेरित करता रहें।

सीमा पार बालाकोट में हमारी वायु सेना ने भारत की संप्रभुता की रक्षा करने के लिए एक योजनाबद्ध हमला किया। यह हमला आतंकवादी ठिकानों पर था जो एक सफल ऑपरेशन था। किसी भी नागरिक या सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना नहीं बनाया गया – यह प्रहार केवल आतंकवादियों पर था।

पाकिस्तान के एफ-16 द्वारा किया गया जवाबी हमला एक बेहद ही कमजोर ऑपरेशन साबित हुआ। संक्षेप में, हमले और बचाव दोनों ने हमारी वायु सेना के पेशेवर रवैये और वीरता का प्रमाण दिया। पाकिस्तान विश्व स्तर पर अलग-थलग पड़ गया। यहां तक कि आईओसी ने भी इस पर तवज्जो देने से इनकार कर दिया। वहीं, हमारे बहादुर विंग कमांडर अभिनंदन के संबंध में जेनेवा कन्वेंशन के हर सिद्धांत का उल्लंघन किया। इस घटना के बाद न केवल पाकिस्तान को विश्व स्तर पर अलग-थलग कर दिया गया, बल्कि पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवाद का मुद्दा सुरक्षा परिषद तक पहुंच गया। पाकिस्तान इतना असहाय था कि बालाकोट में हुए हमले को स्वीकार करने की भी स्थिति नहीं थी। यदि उसने हमले और उसके परिणामों को स्वीकार किया होता, तो उसकी जमीन पर चल रहे आतंकवादी शिविरों के सबूत और मृत आतंकवादियों की सूची अंतरराष्ट्रीय मुद्दा होता।

इस हमले पर पूरा भारत एक स्वर में बोल रहा था। जनता ने सरकार के फैसले और वायु सेना की कार्रवाई को भारी समर्थन दिया।

हालांकि, विपक्ष में अपने अन्य साथियों की तरह, कांग्रेस पार्टी इससे कुछ सीखने को तैयार नहीं थी। प्रारंभिक प्रतिक्रिया में वायु सेना की कार्रवाई का समर्थन करने के बाद, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर भारत के राजनीतिक राय में एक विभाजन बनाने की कोशिश की। कांग्रेस और उसके राजनैतिक साथियों के हवाले से हमने हाल ही में तीन बयान देखे हैं।

इस मुद्दे पर 21 विपक्षी दलों की बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें प्रधानमंत्री पर पुलवामा और बालाकोट की घटनाओं का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया गया। हालांकि, सरकार ने दो बार विपक्षी दलों के नेताओं के साथ बैठक कर उनको विश्वास में लिया था। वहीं, विपक्षी दल इस मुद्दे के राजनीतिकरण का कोई प्रमाण नहीं दे पाए। यह बयान अनुचित था। लेकिन इस बयान ने दुश्मन को एक संभाल जरूर दिया। पाकिस्तानी मीडिया ने 21 विपक्षी दलों के इस बयान को ट्रम्प कार्ड के रूप में इस्तेमाल किया। इस बयान ने पाकिस्तान के उस दावें को हवा दी, जिसमें वह भारत पर आरोप लगा रहा था कि बालाकोट की कार्रवाई भारत ने अपनी घरेलू राजनीतिक मजबूरी के कारण की थी, न कि आतंकवाद के खिलाफ देश की रक्षा करने के तहत।

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री तो एक कदम और आगे बढ़ गई। वह घटना की सत्यता पर संदेह करने लगी और इस हमले की कार्रवाई का विवरण मांगने लगी। सरकार और हमारी वायु सेना दोनों की विश्वसनीयता पर संदेह किया जा रहा है। यहां तक कि कांग्रेस नेताओं ने भी ऐसे ही सवाल उठाए हैं।

मैं पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के एक संक्षिप्त लेकिन बेहद आपत्तिजनक बयान से बहुत निराश था। पी.वी. नरसिम्हा राव पुरस्कार प्राप्त करते समय उन्होंने कहा कि वह दो देशों द्वारा “आपसी आत्म-विनाश की इस पागल होड़” से परेशान थे। उन्होंने तर्क दिया कि गरीबी, अज्ञानता और बीमारियां दोनों देशों में वास्तविक समस्याएं है और दोनों पक्षों के बीच इस मुद्दे पर विचार करने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिए। यह कथन क्या दर्शाता है? कथन का मेरा विश्लेषण इस प्रकार है:-

पूर्व प्रधानमंत्री ने भारत के हित के बारे में चिंतित होने के बजाय खुद को एक तटस्थ पक्ष के रूप में प्रस्तुत किया।

उन्होंने भारत और पाकिस्तान दोनों के बीच समानता का सिद्धांत विकसित किया। आतंकवाद को बढ़ावा देने वाला और आतंकवाद का शिकार दोनों एक कैसे हो सकते है।

स्पष्ट रूप से, वह उन लोगों से अपनी संप्रभुता की रक्षा करने के लिए भारत के अधिकार पर संदेह करते है जो आतंकवाद के माध्यम से भारत को नुकसान पहुंचाना चाहते हैं।

उस भाषण में आतंकवाद की कोई निंदा नहीं है। उनकी नजर में केवल गरीबी, अज्ञानता और बीमारियां भारत की मौजूदा चुनौतियां है। उनके आकलन में हिंसा और आतंकवाद को कोई तरजीह नहीं मिलती है।

हर दृष्टि से उपरोक्त तीनों कथन सही नहीं है। उन्होंने भारत के राष्ट्रीय हित पर चोट की। न केवल वे पाकिस्तान को मुस्कुराने का अवसर देते हैं, बल्कि भारत को बदनाम करने के लिए पाकिस्तान का एक महत्वपूर्ण साधन बन जाते हैं। क्या विपक्ष चाहता है कि वायु सेना बालकोट हमले के ऑपरेशन विवरण जारी करे? विपक्ष विरोध करने और सवाल पूछने का हकदार है, लेकिन संयम और राजनीतिज्ञता भी सार्वजनिक जीवन का एक अनिवार्य घटक है। मुझे उम्मीद है, भारत का विपक्ष अपनी स्थिति का आंकलन करेगा और अपने गैरजिम्मेदाराना बयानों से देश को निराश नहीं करेगा।

                                                                                                                                                                          (लेखक केंद्रीय मंत्री है)