राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 राष्ट्र की आकांक्षाओं को पूरा करेगी

Posted in:
23 Aug, 2020

पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने कहा था कि बिना सांस्कृतिक चेतना के कोई राष्ट्र जीवित नहीं होता, वह मात्र जमीन का टुकड़ा होता है। सांस्कृतिक चेतना से राष्ट्र में प्राण होता है।

शिक्षा का आधार स्थिर है, परंतु शिक्षा गतिशील है। समयानुकूल इसमें परिवर्तन होते रहना चाहिये। यह परिवर्तन देश को मजबूत बनाने के साथ-साथ देश की पहचान स्थापित करने में महत्वपूर्ण कारक भी होना चाहिये।

माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में भारत सरकार की नई शिक्षा नीति जिसे ‘‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020’’ कहा गया है। इसमें वे सारी विशेषताएं हैं जो एक राष्ट्र को उसके सांस्कृतिक मूल्यों के साथ ही वैश्विक लीडर बनाती है।

पं. दीनदयाल उपाध्याय जी ने कहा था कि बिना सांस्कृतिक चेतना के कोई राष्ट्र जीवित नहीं होता, वह मात्र जमीन का टुकड़ा होता है। सांस्कृतिक चेतना से राष्ट्र में प्राण होता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 व्यक्तियों व समाज के सर्वांगीण विकास के साथ ही साथ सांस्कृतिक चेतना के जागरण का भी ख्याल रख रही है।

इस शिक्षा नीति में बच्चों के नैसर्गिक विकास के साथ इसकी विशेषता यह है कि बच्चों के स्वाभाविक बालपन और उसकी मासूमियत के साथ किसी तरह का अत्याचार न हो, ताकि आने वाले वर्षों की अंधी प्रतियोगिता का जो दबाव आज उन पर है वह समाप्त हो और जिससे रट्टा मार पढ़ाई से उबरकर बच्चे स्वयं के भीतर निहित प्रतिभा को सहज रूप से निखार सकें।

यदि हम आज की शिक्षा नीति पर विचार करें तो विद्यालयों में अत्यधिक दबाव के कारण छात्र-छात्राओं में एक तरह की नकारात्मकता उत्पन्न होती हुई दिखाई देती है, क्योंकि भाषा का दबाव, पाठ्यक्रम का दबाव, परीक्षा का दबाव आदि ये सभी दबाव बच्चों के सहज कल्पनाशील मन को गंभीर रूप से उद्वेलित करते रहे हैं, जिससे अनेक मानसिक विकृतियों का जन्म होता रहा है। लेकिन अब इस शिक्षा नीति के लागू होने के पश्चात् छात्र-छात्राएं अपनी मातृभाषा या स्थानीय भाषा में शिक्षा गृहण कर पायेंगे और पाठ्यक्रम का अतिरिक्त बोझ न होने से समाज व राष्ट्र की अक्षुण्ण सांस्कृतिक व शैक्षणिक परम्पराओं को समझ कर अपनी नीति से सही मायने में लगाव महसूस कर पायेंगे।

इस शिक्षा नीति में भारतबोध संबंधित एक विषय का प्रावधान है जो 100 अंक का होगा और प्राथमिक कक्षा से उच्च कक्षा तक यह विषय होगा। इसमें भारत की सांस्कृतिक, भौगोलिक जानकारियां भी दी जायेंगी। बोर्ड की परीक्षाओं में भी अत्यन्त सकारात्मक परिवर्तन होंगे। शिक्षा नीति के लागू होने के साथ ही छात्र-छात्राओं में अनेकानेक परिवर्तन होंगे और यह परिवर्तन रटने की परम्परा से हटकर ज्ञान व संकल्पना पर आधारित होंगे।

इस शिक्षा नीति में पहली बार बच्चों के स्कूली शिक्षा के अंक या ग्रेड के लिए क्रेडिट बैंक के निर्माण का अद्वितीय निर्णय लिया गया है। अब स्कूली शिक्षा में कक्षा 6 से ही स्किल डेवलपमेन्ट बहुभाषिकता, मल्टी डिसीप्लिनरी सिस्टम, क्रेडिट स्कोर बैंक जैसी विशेषताएं मील का पत्थर साबित होंगी।

उच्च शिक्षा में अनेक ऐसे सकारात्मक बिन्दु समाहित किये गये हैं जो उच्च शिक्षा व अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को विश्व शैक्षणिक क्षेत्र जगत में अग्रणीं पंक्ति में लाकर खड़ा कर देंगे। इस नीति में एक और महत्वपूर्ण निर्णय अखिल भारतीय स्तर पर उच्च शिक्षा के मानकीकरण का है। साथ ही छात्र-छात्राओं को भी एक विषय में विशेषज्ञता हासिल करने के चक्कर में अपनी रूचि के अन्य विषयों की बलि नही चढ़ानी होगी। यदि कोई विद्यार्थी विज्ञान की पढ़ाई करते-करते महसूस करता है कि उसकी रूचि दर्शन में भी है तो दर्शन शास्त्र पढ़ने से उसे रोका नही जा सकेगा। दोनों विषयों का अध्ययन साथ ही साथ वह कर सकेगा।

इस नीति के तहत राष्ट्रीय शोध फण्ड भी बनाये जाने का प्रावधान है, ताकि विज्ञान के शोध के साथ सामाजिक विज्ञान के भी शोध पर विशेष ध्यान दिया जा सके। आर्थिक कठिनाईयाँ या अन्य कारणों से यदि किसी की शिक्षा बीच में ही छूट जाती है तो ऐसा छात्र कभी भी पुनः पूर्वक्रम से ही शिक्षा प्रारंभ कर सकता है।

यह शिक्षा नीति सबका साथ सबका विकास की परिकल्पना पर आधारित है। प्रधानमंत्री जी के द्वारा कहे गये वोकल फाॅर लोकल पर जोर देते हुए अनुवाद और व्याख्या को लेकर अलग संस्थान के गठन का प्रावधान है ताकि जो भारतीय साहित्य है, भारतीय ज्ञान या दर्शन है उसका अनुवाद और व्याख्या भारतीय द्वारा ही किया जाये और विश्व के दूसरे हिस्सों तक मूल भावना के साथ उसे पहुंचाया जा सके। अभी तक ज्यादातर अनुवाद और व्याख्याएं जो देश के बाहर गयी हैं वे विदेशियों के द्वारा की गई हैं। परिणामस्वरूप कई बार उनका स्वरूप विकृत हो गया है। अतः यह शिक्षा नीति भी अवसर प्रदान करेगी कि भारत और भारतीयता के संदर्भ में विश्व को सही और सटीक जानकारी उपलब्ध हो सके।

मानव संसाधन विकास मंत्रालय अब शिक्षा मंत्रालय के नाम से जाना जा रहा है, इसके पीछे हमारे नेतृत्व की अत्यंत गहरी व दूरगामी सोच है, ताकि दुनिया को संदेश दे सकें कि मनुष्य को बाजार के लिये तैयार करना, यही हमारा उद्देश्य नहीं है बल्कि उसमें मानवीय मूल्यों और संस्कृति/संस्कार का सम्मिश्रण एवं संस्कारों की शक्ति भी अंतरर्निहित है।

इस शिक्षा नीति को राष्ट्रीय शिक्षा नीति कहा गया है क्योंकि इसमें सम्पूर्ण राष्ट्र की भागीदारी है, जो राष्ट्र की ही आकांक्षाओं को पूरा करेगी। इसे बनाने के पहले बड़े पैमाने पर लोगों से राय मशविरा किया गया है, जिनमें 2.50 लाख ग्राम पंचायतें, 6600 विकासखंड और 676 जिलों से आये हुए सुझाव शामिल हैं। हम भारतीयों के गौरव का केन्द्र और विज्ञान व संस्कृति से संपन्न संस्कृत भाषा अब सभी स्तरों पर पढ़ाई जायेगी। इसके अतिरिक्त अन्य भारतीय भाषायें भी विकल्प के रूप में रहेगी। प्रत्येक राज्य का यह अधिकार होगा कि वे अपने राज्य में किन्हीं तीन ऐसी भाषाओं का चयन कर सकेंगे जिनमें वहां के बच्चे सहज (कम्फर्टेबल) हों।

कुल मिलाकर यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति अत्यंत दूरगामी परिणाम तक पहुंचाने वाली और देश को ज्ञान की दृष्टि से ऊंचाईयों के शिखर तक पहुंचाने वाली होगी।

(लेखक लोकसभा में भाजपा के मुख्य सचेतक हैं।)