राष्ट्र सर्वोपरि के मंत्र को चरितार्थ कर रहे हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी

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गुरु नानक देव के ‘प्रकाश पर्व’ के अवसर पर तीनों कृषि कानूनों के निरस्त करने के निर्णय से प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी का अद्भुत मानवीय, लोकतांत्रिक, विश्वसनीय एवं कर्तव्यनिष्ठ चेहरा देश के सामने पुनः आया है। इस निर्णय को अनेक प्रकार से देखा जाएगा तथा विशेषकर आलोचक अपनी राजनीति को ध्यान में रखकर इसकी नकारात्मक विवेचना करने का प्रयास करेंगे, परंतु वास्तव में यह निर्णय प्रधानमंत्री को पुनः एक बार सर्वाधिक प्रभावशाली नेता के रूप में दर्शाता है जो किसी भी परिस्थिति में अपने संवेदनशील पहलों से किसी भी गतिरोध का समाधान कर सकते हैं। एक प्रधानमंत्री जो सुनता है, ख्याल रखता है तथा कमजोर से कमजोर व्यक्ति को शक्ति देता है तथा अत्यंत विपरीत परिस्थिति में भी धैर्य और संयम नहीं खोता है, इन गुणों के साथ आज देखा जाए तो वे सही अर्थों में देश के ‘प्रधानसेवक’ बन गए हैं तथा ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ के मंत्र को चरितार्थ कर रहे हैं। अनेक ऐसे अवसर आए जब उन्होंने ‘राष्ट्र प्रथम, पार्टी उसके बाद एवं स्वयं सबसे अंत में’ के पवित्र सिद्धांत को स्वयं के उदाहरण से साकार किया है।

गरीब, पीड़ित, वंचित एवं शोषित के हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नेता के रूप में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राजनीति के आयामों को अपने असाधारण सेवाभाव, पूर्ण समर्पण एवं अद्भुत दायित्व बोध से पुनः परिभाषित किया है

इन कृषि सुधारों पर देश में लंबे समय से चर्चा चलती रही है तथा अनेक किसान नेता, विशेषज्ञ, कृषि वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री एवं विभिन्न राजनैतिक दल अलग-अलग मंचों पर छोटे एवं सीमांत किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए इनकी वकालत करते रहे हैं। यही कारण रहा कि जिन लोगों ने बाद में इन सुधारों का विरोध किया, उनमें वे लोग थे जो वास्तव में न केवल इनकी मांग करते रहे, बल्कि संसद में जब ये विधेयक लाए गए तब इनका समर्थन किया और इन विधेयकों के पारित होने पर इनका स्वागत किया था। लक्ष्य शुरू से ही स्पष्ट था– गांव, गरीब एवं किसान के जीवन में सुधार लाने के लिए कृषि क्षेत्र का व्यापक विकास। किसान नेताओं के एक वर्ग ने जिस प्रकार का तर्कहीन, असंगत एवं जिद्दी रवैया अपनाया, उससे कांग्रेस एवं इसके सहयोगी इन महत्वपूर्ण कृषि सुधारों पर गंदी राजनीति करने तथा छोटे एवं सीमांत किसानों के हित के विपरीत कार्य करने के दाग से अपना दामन नहीं बचा सकते।

देश में अब तक ‘कांग्रेस-कम्युनिस्ट’ मॉडल का ‘लोकतंत्र’ चल रहा था जिसमें जनता को शासकों द्वारा ‘शासित’ समूह के रूप में देखा जाता है, विपक्ष को कुचला जाता है, विरोध का दमन होता है, असहमत स्वरों को दबाया जाता है, विरोधियों पर लाठी-गोली चलायी जाती है और यहां तक कि पूरे देश पर आपातकाल तक थोप दिया जाता है। इसके ठीक विपरीत प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने देश में सच्चे अर्थों में लोकतंत्र की स्थापना की है जिसके अंतर्गत विरोध के स्वर एवं विपक्ष को सुना जाता है, राष्ट्र के व्यापक हित में उन्हें समायोजित किया जाता है तथा विकट परिस्थितियों में भी अत्यंत धैर्य एवं संयम का शासन द्वारा परिचय दिया जाता है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में आप देश में ‘सहयोगात्मक संघवाद’ का उदय हुआ है जिसमें विपक्ष द्वारा शासित राज्य सरकारें भी आज केंद्र से सभी प्रकार के सहयोग एवं सहायता प्राप्त कर रही हैं। आज जब उन पर पूरे देश का असीम विश्वास है तथा राष्ट्र का अजेय जनादेश उन्हें प्राप्त है, वे किसानों के एक छोटे वर्ग की बात को सुनना अपना लोकतांत्रिक कर्तव्य समझते हैं और यहां तक कि कानून को वापस लेने तक का निर्णय करते हैं। जिस प्रकार से गणतंत्र दिवस पर लालकिले की घटना को अत्यधिक धैर्य एवं संयम से संभाला, वह श्री नरेन्द्र मोदी के लोकतांत्रिक मूल्यों पर अटूट आस्था एवं विश्वास का परिचय देता हैं।

गरीब, पीड़ित, वंचित एवं शोषित के हितों के लिए प्रतिबद्ध एक नेता के रूप में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने राजनीति के आयामों को अपने असाधारण सेवाभाव, पूर्ण समर्पण एवं अद्भुत दायित्व बोध से पुनः परिभाषित किया है। इसका परिणाम कोविड-19 महामारी के दौरान उनके अद्भुत नेतृत्व क्षमता एवं रिकाॅर्ड समय में 100 करोड़ टीकाकरण के रूप में आज पूरा विश्व देख रहा है। राष्ट्रहित के लिए पूर्ण प्रतिबद्ध एवं लोकतांत्रिक मूल्यों पर अटूट आस्था के कारण आज वे करोड़ों देशवासियों की आंखों के तारे बन गए हैं। आज जब प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जीरो-बजट कृषि, देश की आवश्यकतानुसार फसल उपज में परिवर्तन तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य को अधिक पारदर्शी एवं प्रभावी बनाने के लिए एक समिति बनाने की घोषणा की है, तब इसमें कोई संदेह नहीं कि गांव, गरीब एवं किसान के कल्याण के लिए राष्ट्र निरंतर कृतसंकल्पित है।

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