उजाला योजना : आवश्यक बदलावों की ओर एक कदम

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     प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने सात साल पहले सभी के लिए सस्ती एलईडी योजना ‘उजाला’ का शुभारंभ किया, जो ऊर्जा के कुशल उपयोग को बढ़ावा देने और पर्यावरण पर व्यापक प्रभाव डालने में अहम भूमिका निभा रही है। इस योजना को अब ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने के लिए दुनिया के सबसे बड़े कार्यक्रम में एक कहा जा रहा है और भारत में हजारों परिवार इस योजना से लाभान्वित हुए हैं जो न केवल उनके जीवन को बदल रही है, बल्कि राष्ट्र निर्माण और विकास पथ पर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

हाल ही में ग्लासगो में कॉप26 जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि भारत 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा, ”उन देशों पर दबाव डालना समय की आवश्यकता है जो जलवायु को लेकर अपनी प्रतिबद्धता को निभाने में विफल रहे हैं।” और इस लक्ष्य को प्राप्त करने में उजाला योजना ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिसे 5 जनवरी, 2015 को प्रधानमंत्री द्वारा शुरू किया गया था। इसको लेकर प्रधानमंत्री श्री मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार ने दोतरफा दृष्टिकोण अपनाया है। जिसमें अपने नागरिकों की ऊर्जा मांग को पूरा करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयास शामिल थे। इसके लिए सरकार ने एक ओर नवीकरणीय संसाधनों के अधिक से अधिक उपयोग पर बल दिया, जबकि दूसरी ओर सरकार ने पुरानी शैली के तापदीप्त लैंप को ऊर्जा कुशल एलईडी बल्बों से बदलने का काम किया।

उजाला कार्यक्रम ऊर्जा दक्षता की अवधारणा को बढ़ावा देने और क्रियान्वित करने में सरकार की एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है। प्रधानमंत्री कार्यालय में एक लाइट बल्ब को एलईडी में बदलकर इस आंदोलन को शुरू किया गया था। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एलईडी बल्ब को ‘प्रकाश पथ’ यानी ‘प्रकाश मार्ग’ के रूप में वर्णित किया।

भारत में कुल ऊर्जा खपत में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 20 प्रतिशत है और एलईडी न केवल प्रकाश के स्तर में सुधार करते हैं बल्कि 50 प्रतिशत से 88 प्रतिशत तक ऊर्जा और लागत बचत को भी कम करते हैं। एक 7 वॉट की एलईडी न केवल 60 वॉट के तापदीप्त लैंप के समान ही रोशनी देता है, बल्कि यह बेहतर रोशनी प्रदान करता है।

      इस योजना के तहत केंद्र सरकार ने पिछले सात वर्षों में 36.78 करोड़ एलईडी लाइटें वितरित की हैं, जिससे प्रति वर्ष 47,778 मिलियन यूनिट बिजली की बचत हुई है। बहुत ही कम समय में यह कार्यक्रम दुनिया की सबसे बड़ी शून्य-सब्सिडी घरेलू प्रकाश योजना के रूप में विकसित हुआ है जो उच्च विद्युतीकरण लागत और उच्च उत्सर्जन जैसी चिंताओं को दूर करता है।

इस कार्यक्रम की सफलता ने हजारों लोगों के जीवन को बदल दिया है, जो ऊर्जा दक्षता के लिए इसके अद्वितीय रणनीतिक दृष्टिकोण में निहित है। ‘उजाला योजना’ एलईडी बल्बों के खुदरा मूल्य जो 350 —300 रुपये प्रति बल्ब थी, उसे कम कर 70-80 रुपये प्रति बल्ब लाने में भी सफल रही। सस्ती ऊर्जा को सभी के लिए सुलभ बनाने के अलावा, इस कार्यक्रम के लागू होने के बाद बड़े पैमाने पर ऊर्जा की बचत भी हुई। इस योजना के बाद कार्बन उत्सर्जन में 3,86 करोड़ टन की कमी आयी और 9,565 मेगावाट की पीक डिमांड को रोका गया।

उजाला घरेलू उत्पादकों के लिए वरदान बन गई है, जो मेक इन इंडिया को प्रोत्साहित करती है। इस प्रयास से एलईडी बल्ब का घरेलू उत्पादन 1 लाख प्रति माह से बढ़कर 40 मिलियन प्रति माह हो गया है। उजाला के तहत नियमित थोक खरीद, अब इन निर्माताओं को नये अवसर भी प्रदान कर रही है। यह निर्माताओं को खुदरा क्षेत्र में बेचे जाने वाले एलईडी की लागत को कम करने में सक्षम बनाता है। इससे खरीद लागत में लगभग 90 प्रतिशत की कमी देखी गयी है।

इस कार्यक्रम ने भारत के शीर्ष प्रबंधन स्कूलों का भी ध्यान आकर्षित किया है। यह अब आईआईएम, अहमदाबाद में लीडरशिप केस स्टडी का एक हिस्सा है। इसके अलावा, इसे हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने पर भी विचार किया जा रहा है।

ग्राम उजाला योजना

जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूकता फैलाने और बिजली बचाने के लिए भारत सरकार द्वारा मार्च, 2021 में ग्राम उजाला की शुरुआत की गई थी। ऐसा माना जाता है कि इस कदम से प्रति वर्ष 2025 मिलियन किलोवाट ऊर्जा की बचत होगी, जबकि कार्बन उत्सर्जन में प्रति वर्ष 16.5 लाख टन की कमी आएगी। इस पहल के तहत, बिहार, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के पांच राज्यों के 2,579 गांवों में 10 रुपये की दर पर एलईडी बल्ब वितरित किए जाएंगे। इस योजना के तहत स्थानीय निवासी अधिकतम 5 एलईडी बल्ब खरीद सकते हैं। इस योजना के तहत पहले ही बिहार और उत्तर प्रदेश में 33 लाख से अधिक एलईडी बल्ब उपलब्ध कराने का मुकाम हासिल कर लिया है।

      विपुल शर्मा