कांग्रेस का पतन सुनिश्चित

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अब जबकि स्वयं कांग्रेस एवं विपक्ष का एक वर्ग संसद की कार्यवाही बाधिक करता रहा, राहुल गांधी के ‘भूकंप’ से देश बच गया। इस पूरे प्रकरण में एक बार फिर कांग्रेस पूरे देश में हंसी की पात्र बन गई। यदि राहुल गांधी के पास सचमुच ‘भूकंप’ जैसा कुछ था तो कांग्रेस ने पूरे सत्र संसद को रोके क्यों रखा? और यदि वे इस मुद्दे पर ईमानदार थे, तब संसद में चर्चा की मांग क्यों नहीं की? यह ‘भूकंप’ तो मीडिया द्वारा भी लाया जा सकता था, लेकिन ऐसा कुछ वे कर नहीं पाये। असल में शायद अब तक राहुल गांधी समझ नहीं पाए कि वे राजनीति कर रहे हैं, ठिठोली नहीं। उनके पास ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे देश हिल जाता। हां वे चाहते जरूर थे कि वास्तविक मुद्दों से देश भटक जाये। कांग्रेस की सरपरस्ती में इस देश में जमा काला धन, बड़े-बड़े घपले एवं घोटाले जिससे इस देश की जनता का धन लूटा गया, निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा बुना गया समानांतर अर्थतंत्र का जाल तथा कांग्रेस काल में बना भारी-भरकम लूटतंत्र अब कांग्रेस का पीछा कर रही है। जन-जन के द्वारा जो समर्थन विमुद्रीकरण पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मिल रहा है, उसने कांग्रेस की नींद हराम कर रखी है। कांग्रेसी लूटतंत्र में विकसित निहित स्वार्थी तत्वों को राहुल गांधी आश्वस्त करना चाहते हैं कि वे अब भी उनका हित सुरक्षित रख सकते हैं।

वंशवाद की जंजीर ने कांग्रेस के हाथ-पांव बांधकर उसे पंगु बना दिया है। अब जबकि देश के पास संघर्ष की भट्टी से तपकर निकला नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रूप में मौजूद है। वंशवादी राजनीति में जकड़ी कांग्रेस आये दिन अपमान झेलने पर मजबूर होगी ही। कांग्रेस नेतृत्व द्वारा झूठ-फरेब एवं झांसे की राजनीति का सहारा लेने से उसका पतन एवं पराजय सुनिश्चित हो चुका है।

राहुल गांधी के कारण जब-तब कांग्रेस को अपमान का घूंट पीना पड़ रहा है। बार-बार आधारहीन एवं बेतुका बयान देकर वे कांग्रेस के लिए रोज नई मुसीबत खड़ी कर देते हैं। एक जिम्मेदार विपक्ष बनने की जगह वे कांग्रेस को उस राह पर धकेल रहे हैं, जहां से उसे लौटना मुश्किल है। अब तक तो उन्हें समझ लेना चाहिए था कि झूठ और फरेब की राजनीति के हाथ-पांव नहीं होते। इस तरह की राजनीति से पार्टी का दिवालियापन ही जनता के सामने बार-बार आ रहा है। विपक्ष की जिम्मेदारी उठाने से बचने के लिए कांग्रेस देश को गुमराह करने के लिये तरह-तरह की झूठी कहानियां गढ़ने में लगी है, लेकिन जनता अब पूरी तरह से जान चुकी है कि कांग्रेस किस तरह की राजनीति कर रही है यही कारण है उसे जनता के द्वारा कठोर से कठोर दंड भुगतना पड़ रहा है। यदि हाल में देश भर में हुए उपचुनावों यथा, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात एवं चंडीगढ़ के स्थानीय निकायों के चुनावों से कांग्रेस कोई सबक ले सकती है, तब उसे दिल पर हाथ रखकर अपनी करतूतों के लिए देश से माफी मांगनी चाहिए। कांग्रेसी संस्कृति को सुधारने की जगह इसके नेतृत्व द्वारा घपलेबाजों, भ्रष्टाचारियों, हवाला कारोबारियों के हितों को बनाये रखने की जद्दोजहद से कांग्रेस का असली चरित्र पुनः उजागर हुआ है।

लोकतंत्र में जनता ही किसी भी पार्टी का भाग्य लिखती है। जन समर्थन पार्टी एवं नेतृत्व की विश्वसनीयता के आधार पर ही तय होता है। भाजपा एवं इसके नेतृत्व की विश्वसनीयता वर्षों की कठोर परीक्षा, वैचारिक प्रतिबद्धता एवं अथक प्रयासों से सुदृढ़ हुई है। कांग्रेस के विपरीत भाजपा का नेतृत्व पारिवारिक या वंशानुगत राजनीति द्वारा तैयार नहीं हुआ है। भाजपा नेतृत्व वैचारिक कार्यप्रणाली, मूल्य आधारित राजनीति, राष्ट्रीय निष्ठा तथा सुशासन एवं विकास के प्रति समर्पण के आधार पर तैयार हुआ है। यदि किसी पार्टी का नेतृत्व वंश एवं परिवार आधारित हो जाय तो उसका भी वही हाल होगा जो कांग्रेस का हुआ है। वंशवाद की जंजीर ने कांग्रेस के हाथ-पांव बांधकर उसे पंगु बना दिया है। अब जबकि देश के पास संघर्ष की भट्टी से तपकर निकला नेतृत्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के रूप में मौजूद है, वंशवादी राजनीति में जकड़ी कांग्रेस आये दिन अपमान झेलने पर मजबूर होगी ही। कांग्रेस नेतृत्व द्वारा झूठ-फरेब एवं झांसे की राजनीति का सहारा लेने से उसका पतन एवं पराजय सुनिश्चित हो चुका है।

 

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