अटलजी : सौहार्द के महान् दूत और नेता

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डॉ. मुरली मनोहर जोशी

प्रधानमंत्री अटल, विदेश मंत्री अटल, वक्ता अटल, राजनेता अटल और इन सारे विशेषणों के साथ-साथ मैं उस सामान्य मनुष्य अटल, सौहार्द के दूत अटल और ऐसे अटल को भी जानता हूं, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय जगत् में इंसानियत और मेल-मिलाप पर आधारित राजनीतिक आचार की शुरुआत की, जो एक नई मिसाल थी। वे स्थानीय और वैश्विक स्तर पर लोगों से जुड़ने में तथा मूल्य आधारित राजनीति में विश्वास रखते थे।

उनका मानवीय हृदय क्षणभर में उन्हें लोगों से जोड़ देता था और उन्होंने इस गुण को सांस्कृतिक, सभ्यता संबंधी, आध्यात्मिक, संरचनात्मक जुड़ाव में परिवर्तित किया। अटलजी ने लोगों, गांवों, शहरों, देशों और विविध राजनीतिक विचारधाराओं तक को भी आपस में जोड़कर भिन्न-भिन्न राजनीतिक दलों का एक ऐसा गठबंधन बनाया, जो राज-काज में एक नई शुरुआत थी और जिसका दूसरा उदाहरण नहीं मिलता।

वर्ष 2003 में नई दिल्ली में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से ‘सभ्यताओं के बीच बातचीत’ विषय पर आयोजित सम्मेलन में व्यक्त किए गए उनके विचार वैश्विक समस्याओं को लेकर उनकी चिंता का संकेत दे रहे थे। साथ ही, इस संसार में समन्वय और शांति की ओर निरंतर अग्रसर रहने वाली सभ्यता के लिए सभ्यताओं के बीच बातचीत की एक नई कला व विज्ञान को अनिवार्य साधन के रूप में विकसित करने की गहरी इच्छा की ओर भी इशारा कर रहे थे। वाजपेयी देशों, महादेशों, सभ्यताओं और इस संसार के लोगों के बीच सामंजस्य एवं मेल-जोल का एक जीवंत माहौल बनाने में विश्वास रखते थे। वे बातचीत के जरिए अंतरराष्ट्रीय मामलों को चलाने का एक उदाहरण दिखाना चाहते थे, जो विविधता की पहचान पर आधारित हो और मेल-मिलाप के जरिए विभिन्न दृष्टिकोणों के बीच सौहार्द कायम करता हो। मैं वाजपेयी को सौहार्द बनाने वाला और मेल-मिलाप बढ़ानेवाला आधुनिक भारत का एक सबसे महान् नेता मानता हूं।

सबको एक सूत्र में पिरोनेवाले महान् नेता के रूप में कनेक्टिविटी वाजपेयी का मूलमंत्र था। लोगों को जोड़ने के लिए उन्होंने बुनियादी संरचना का उपयोग एक मंच के रूप में किया, जब उन्होंने स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के अंतर्गत देश के चारों कोनों को आपस में जोड़ा। इसे दुनिया की सबसे लंबा जन-राजमार्ग परियोजनाओं में से एक कहा जाता है, जिसकी लंबाई 5846 कि.मी. है, जिसका लक्ष्य भारत के प्रमुख कृषि संबंधी, औद्योगिक और सांस्कृतिक केंद्रों को जोड़ना है। एक तरफ स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना थी तो दूसरी तरफ उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों को जोड़ने के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना’ को भी उतना ही महत्त्व दिया, जिससे अर्थव्यवस्था को बहुत बड़ी ताकत मिली। उन्होंने पूर्वोत्तर क्षेत्र के विकास का मंत्रालय भी बनाया, ताकि इस क्षेत्र को देश के बाकी हिस्सों से जोड़ा जा सके।

यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह संपर्क राजमार्गों के माध्यम से केवल ठोस बुनियादी संरचना तक ही सीमित न रहे, उन्होंने राष्ट्रीय ऑप्टिक फाइबर नेटवर्क के माध्यम से ‘कनेक्टेड इंडिया’ की नींव भी रखी, जो टेक्नोलॉजी हाइवे थी। इससे दुनिया का सबसे बड़ा और किफायती टेलीकॉम बाजार बनाने में मदद मिली, जिससे आई.टी. क्रांति को जबरदस्त प्रोत्साहन मिला। आज यदि भारत दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल ग्राहकों वाला देश है, तो यह अटलजी की उन नीतियों के कारण है, जिन्होंने टेलीकॉम सेक्टर के लिए रोडमैप बनाया।

भारत के प्रवासियों की संख्या 1.6 करोड़ है, जो दुनिया में सबसे अधिक है; ‘प्रवासी भारतीय दिवस’ अटल बिहारी वाजपेयी के दिमाग की ही उपज थी। वे दुनिया भर के प्रवासी भारतीयों को जोड़ना और भारत में उनकी दिलचस्पी को फिर से जगाना चाहते थे। यह दुनिया भर में बिखरे भारतीयों को जोड़ने वाला सबसे अनोखा कार्यक्रम था। इसका परिणाम भारतीयों के वापस लौटने या भारत में निवेश करने के रूप में भी सामने आया।
‘लुक ईस्ट पॉलिसी के माध्यम से संपर्क को सुनिश्चित करने के लिए। वाजपेयी ने क्षेत्रीय कूटनीति के महत्त्व को भी समझा। उनकी यह नीति दक्षिण-पूर्व के एशियाई देशों के साथ विस्तृत आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को बढ़ाने में मास्टर स्ट्रोक थी। इसने भारत की छवि एक क्षेत्रीय शक्ति के रूप में बढ़ाई तथा चीन के रणनीतिक प्रभाव के मुकाबले में ला खड़ा किया। उनकी विदेश नीति एक तरफ महाशक्तियों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध बनाने पर आधारित थी, तो दूसरी तरफ लुक ईस्ट पॉलिसी के माध्यम से पड़ोसियों को समान महत्त्व देती थी। इन सबका उद्देश्य सबको साथ लेकर चलना और भारत के हितों को सर्वोपरि रखना भी था।

बात जब एक सशक्त भारत को सुनिश्चित करने की आई, तब उन्होंने न केवल पोखरण में परमाणु विस्फोट करने का निर्णायक कदम उठाया, बल्कि वे अपने फैसले पर अडिग रहे और भारत का कद एक परमाणु शक्ति का बना दिया, जिसे सात दशकों तक हासिल नहीं किया जा सका था। पोखरण के धमाके के बाद भारत को कठोर वैश्विक प्रतिबंध से डराया गया। पर्याप्त परिपक्वता और कौशल के साथ उन्होंने देश को इस स्थिति से निकाला, अमेरिका के साथ एक विजन डॉक्यूमेंट तथा रूस के साथ मास्को समझौते पर दस्तखत किए। वाजपेयी ने चीन से भी बातचीत की और सीमा विवाद के शांतिपूर्ण निपटारे के लिए एस.आर. जैसी प्रणाली को स्थापित किया। उन्होंने पूरी दृढ़ता के साथ इराक में भारतीय सेना को भेजने के अमेरिकी आग्रह को ठुकरा दिया।
‘अंत्योदय’ को लागू करने के लिए उन्होंने किसानों को उच्च प्राथमिकता दी। किसानों का कल्याण उनके दिल के बेहद करीब था और उन्होंने सुनिश्चित किया कि क्रेडिट कार्ड केवल अमीर लोगों की हैसियत की पहचान ही न रहे, बल्कि एक गरीब किसान की बुनियादी जरूरत बने, इसलिए किसानों को भी किसान क्रेडिट कार्ड दिए गए। लोक कल्याण और शासन में वाजपेयी ने एकदम नई सोच का परिचय दिया।

अटलजी ने विकास के लिए शिक्षा और तकनीक के महत्त्व को समझा तथा शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाते हुए ‘सर्व शिक्षा अभियान’ की शुरुआत की और लोगों को शिक्षा के माध्यम से जोड़ा। यह संसार में प्राथमिक शिक्षा को सार्वभौमिक बनाने की दिशा में सबसे बड़ा शैक्षिक कार्यक्रम था। उनके प्रधानमंत्री रहने के दौरान ही पहली बार विभिन्न स्थानों पर भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान’ खोले गए और ज्ञान संपन्न समाज की रचना के बीज बोए गए। उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री के ‘जय जवान जय किसान’ के नारे को आगे बढ़ाते हुए ‘जय जवान-जय किसान-जय विज्ञान’ का नारा दिया।

अटलजी के युग को उनकी नीतियों और कार्यक्रमों के कारण भारत के विकास को तेजी से आगे बढ़ाने वाला माना जाता है। एवं इसके फलस्वरूप भारत की जी.डी.पी. आठ प्रतिशत की स्थिर दर से बढ़ती चली गई, जो देश के इतिहास में पहली बार हुआ था। मुद्रास्फीति नियंत्रित थी और विदेशी मुद्रा भंडार लगातार बढ़ रहा था, जबकि यह वैश्विक अनिश्चितताओं का दौर था तथा निश्चित रूप से यह एशियाई संकट के दौरान कोई कम बड़ी उपलब्धि नहीं थी।
अटल युग सबको शामिल करने वाले दृष्टिकोण के लिए जाना गया, जहां विचारों में अंतर हो सकता था, लेकिन आखिर में आम सहमति होती थी। उन्होंने देश को उस जड़ता की स्थिति से निर्णायक ढंग से बाहर निकाला, जिसमें वह दशकों से जकड़ा हुआ था। उन्होंने न केवल विभिन्न विचारधाराओं को आपस में जोड़ा, बल्कि विविधता भरे गठबंधन में तालमेल बिठाते हुए व्यापक सुधारों पर भी अमल किया। वे मौलिक भारतीय दृष्टिकोण ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’, ‘अनेकता में एकता’ और ‘एकं सद् विप्रा बहुधा वदन्ति’ (एक ही सत्य को विद्वान् लोग बहुत प्रकार से बताते हैं) में विश्वास करते थे। उनका राजनीतिक व्यवहार इन्हीं सिद्धांतों को दर्शाता था।

अटल बिहारी वाजपेयी अपने अभियान में जुटे रहने वाले व्यक्ति थे, जो अपनी दृष्टि, शब्दों और कर्मों से आम सहमति बनाने वाले महान् नेता बने। वे गठबंधन वाली सरकार, सामंजस्य की राजनीति तथा समावेशी विकास के जनक बने। अटलजी ने दुनिया को ‘अटल की मिसाल’ के एक नए राजनीतिक व्यवहार को दिखाया है। अटलजी अमर रहेंगे और उनके योगदानों ने नए भारत के भविष्य को स्वरूप दिया है। अटलजी के साथ मेरे संबंध को किसी एक लेख में, केवल आमने-सामने के अनुभवों से नहीं बताया जा सकता, बल्कि इतनी बहुमुखी हस्ती, एक महान् राजनेता को, उनकी सोच, उनके विचारों, राजनीति की उनकी शैली और सच कहूं तो उन सारी बातों से समझा जा सकता है, जिन्होंने एक गौरवशाली युग की दिशा में हमें आगे बढ़ाया है।

(साभार : साहित्य अमृत)
(लेखक भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)